पिछले आठ साल से नहीं बदली ओबीसी क्रीमी लेयर की सीमा, उम्मीदवारों का हो रहा नुकसान: पी विल्सन
नई दिल्ली, 16 दिसंबर (हि.स.)। राज्य सभा में शून्य काल के दौरान डीएमके सांसद पी विल्सन ने ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा का मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा कि पिछले 8 साल से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) क्रीमी लेयर की आय सीमा में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है जिसके कारण लाखों उम्मीदवारों को नुकसान
हो रहा है।
पिछले 8 सालों में देश के हालात बहुत बदल गए हैं। महंगाई बढ़ गई है, पैसों की कीमत घट गई है, लेकिन ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की क्रीमी लेयर की आय सीमा आज भी 8 लाख रुपये सालाना ही है। यह सीमा साल 2017 में तय की गई थी। उस समय सोना 3,000 रुपये प्रति ग्राम था, जो आज 12,000 रुपये प्रति ग्राम हो गया है।
नियम के अनुसार क्रीमी लेयर की सीमा हर 3 साल में बदली जानी चाहिए, लेकिन अब तक सरकार ने इसमें कोई बदलाव नहीं किया है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी इसे बढ़ाने की सिफारिश की थी, जिसे सरकार ने नजरअंदाज कर दिया।
इसके अलावा, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) एक गलत तरीका अपना रहा है। वह परिवार की आय गिनते समय माता-पिता की सैलरी को भी जोड़ देता है, जबकि 1993 के सरकारी आदेश में साफ लिखा है कि सैलरी और कृषि आय को क्रीमी लेयर में नहीं जोड़ा जाना चाहिए। यही गलत तरीका यूपीएससी, सरकारी संस्थानों, पीएसयू और शैक्षणिक संस्थानों में अपनाया जा रहा है। इससे ओबीसी उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता।
2019 में ओबीसी संसदीय समिति ने इस गलत प्रक्रिया की आलोचना की थी और इसे तुरंत रोकने को कहा था, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इसका असर बहुत गंभीर है।
पी विल्सन ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी प्रोफेसरों के लगभग 80 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। 2537 प्रोफेसर पदों में से सिर्फ 423 (लगभग 16.7 प्रतिशत) ही ओबीसी के हैं, जबकि नियम के अनुसार 27 प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए।
आरटीआई से मिले आंकड़ों के अनुसार 21 आईआईटी में सिर्फ 11.2 प्रतिशत फैकल्टी ओबीसी, 6 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 1.6 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है। इसके साथ सरकार की नौकरियों में ग्रुप ए अधिकारियों में केवल 18 प्रतिशत ओबीसी हैं।
शीर्ष 90 अफसरों में सिर्फ 3 ओबीसी हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी

