विशेष त्वरित अदालतों में मामलों के निपटारे की दर 83 फीसदी, आईसीपी की रिपोर्ट में आए तथ्य सामने

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विशेष त्वरित अदालतों में मामलों के निपटारे की दर 83 फीसदी, आईसीपी की रिपोर्ट में आए तथ्य सामने


नई दिल्ली, 11 सितंबर (हि.स.)। विशेष त्वरित अदालतों के कामकाज पर इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की रिपोर्ट ‘फास्ट ट्रैकिंग जस्टिस : रोल ऑफ फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स इन रिड्यूसिंग केस बैकलॉग्स’ के अनुसार विशेष अदालतों में मामलों के निपटारे की दर 83 प्रतिशत रही जबकि अन्य अदालतों में सिर्फ 10 प्रतिशत रही। हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार अगर सभी विशेष त्वरित अदालतों (एफटीएससी) को संचालित रखने के अलावा अगर 1000 नई विशेष अदालतों का गठन नहीं हुआ तो शायद लंबित मामले कभी खत्म नहीं होंगे। रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ दो प्रतिशत मामलों के निपटारे की दर के साथ पश्चिम बंगाल देश में सबसे नीचे, राज्य में 123 विशेष अदालतों की स्वीकृति के बावजूद महज तीन विशेष अदालतें ही काम कर रही हैं।

रिपोर्ट ‘फास्ट ट्रैकिंग जस्टिस : रोल ऑफ फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स इन रिड्यूसिंग केस बैकलॉग्स’ ने लंबित मामलों के निपटारे के लिए देशभर में काम कर रही सभी विशेष त्वरित अदालतों को चालू रखने के अलावा एक हजार नई विशेष त्वरित अदालतों के गठन की सिफारिश की है। रिपोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि निर्भया फंड में पड़ी अप्रयुक्त राशि के उपयोग से दो साल में ये अतिरिक्त विशेष अदालतें गठित की जा सकती हैं।

बाल विवाह मुक्त भारत के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि बलात्कार व यौन शोषण के मामलों में न्याय के लिए पीड़ितों की अंतहीन प्रतीक्षा के खात्मे की दिशा में भारत अब उस बिंदु पर है जहां एक छोटा सा बदलाव किसी बड़े परिवर्तन का वाहक बन जाता है, तक पहुंच रहा है। यह एक बेहद अहम क्षण है जब हमें अपने बच्चों व महिलाओं की सुरक्षा व संरक्षण में निवेश करना चाहिए और अगले तीन साल में सभी लंबित मामलों के निपटारे के लिए एक हजार विशेष त्वरित अदालतों के गठन से हम पीड़ितों के लिए न्याय का अधिकार सुनिश्चित कर सकते हैं। यह वो क्षण है जब पीड़ितों के लिए पुनर्वास और क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करते हुए समाज में न्याय की प्रतिरोधक शक्ति को स्थापित करने के लिए लंबित मामलों व अपीलों के समयबद्ध निपटारे के बाबत एक नीति बनाई जाए ताकि न्याय वितरण प्रक्रिया में हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट सहित सभी अदालतों की जवाबदेही तय हो सके।”

रिपोर्ट के अनुसार अगर लंबित मामलों में एक भी नया मामला नहीं जोड़ा जाए तो भी विशेष त्वरित अदालतों में बलात्कार व पॉक्सो के 2,02,175 मामलों के निपटारे में अनुमानित तीन साल का समय लगेगा। इसके मद्देनजर तत्काल एक हजार नई विशेष त्वरित अदालतों के गठन के अलावा यह सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है कि मौजूदा सभी 1023 विशेष अदालतों में कामकाज सुचारु जारी रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि नई विशेष अदालतों के गठन के बगैर यदि मौजूदा अदालतों में नए मामले सुनवाई के लिए आते रहे तो लंबित मामलों के निपटारे में वर्षों लग सकते हैं। आज की तारीख में देश की 1,023 विशेष त्वरित अदालतों में सिर्फ 755 अदालतों में ही कामकाज हो रहा है। फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के बाद से इनमें सुनवाई के लिए आए 4,16,638 मामलों में से 2,14,463 मामलों का निपटारा हो चुका है। महाराष्ट्र (80 प्रतिशत) और पंजाब (71 प्रतिशत) मामलों के निपटारे में शीर्ष पर हैं जबकि महज दो प्रतिशत मामलों के निपटारे की दर के साथ देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल सबसे निचले स्थान पर है।

रिपोर्ट ने बलात्कार व पॉक्सो के मामलों में पूरे देश में अभियुक्तों की दोषसिद्धि और उनके बरी होने के आंकड़े रखने और इसे नियमित रूप से अद्यतन करने की भी सिफारिश की है। इसमें कहा गया है कि सभी विशेष अदालतों के सूचनापट पर मुकदमे के निपटारे की स्थिति भी अंकित की जाए ताकि इनके आधार पर पीड़ित या राज्य अभियुक्त की रिहाई को चुनौती दे सकें। साथ ही हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों से संबंधित आंकड़े भी उपलब्ध हो सकें।

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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी

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