Ramotsav 2024 : योगी सरकार जीआरसी स्कल्पचर्स से सजा रही 'नव्य-भव्य अयोध्या'
- -अयोध्या में ग्लासफाइबर रीइनफोर्स्ड कॉन्क्रीट (जीआरसी) के इस्तेमाल के जरिए इको फ्रेंडली तरीके से विभिन्न अवसंरचनाओं का किया जा रहा है विकास
- -जीआरसी इंफ्रास्ट्रक्चर्स को पत्थरों के मुकाबले तराशे जाने से कम होता है वायु प्रदूषण, हल्का होने के साथ ही यह पत्थरों जैसी मजबूती प्रदान करता है
- -श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की बाहरी दीवारों समेत कई जगह किया जा रहा है जीआरसी का इस्तेमाल, इनके बने शिल्पों को इनबिल्ड डेकोरेटिव लाइटिंग से किया जाएगा लैस
- -सीएम योगी की मंशा के अनुरूप एडीए ने जीआरसी शिल्पों को डेकोरेटिव लाइटों से लैस करने की प्रक्रिया की शुरू, प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम तक इस कार्य को कर लिया जाएगा पूरा
अयोध्या। सप्तपुरियों में प्रथम पुरी के तौर पर विख्यात अयोध्या के त्रेतायुगीन वैभव को लौटाने का जो कार्य सीएम योगी के दिशानिर्देशन में क्रियान्वयन में हो रहा है, उसे अब नए आयाम पर ले जाने की तैयारी की जा रही है। उल्लेखनीय है कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य भवन के समीप व बाहरी दीवारों पर ग्लास फाइबर रीइन्फोर्स्ड कॉन्क्रीट (जीआरसी) मटीरियल का इस्तेमाल किया जा रहा है। जहां बाहरी दीवारों पर उकेरी गई परकोटों जैसी विभिन्न आकृतियों को जीआरसी कॉम्पोजिट फ्रेम इंस्टॉलेशन के जरिए पूरा किया गया है, वहीं मंदिर समेत अयोध्या में विभिन्न स्थानों पर जीआरसी के बने स्कल्पचर्स को बाहरी व इनबिल्ट डेकोरेटिव लाइटों से युक्त कर नई क्रांति प्रदान करने की कोशिश की जा रही है। उल्लेखनीय है कि सीएम योगी की मंशा के अनुरूप अयोध्या के समेकित विकास के लिए विजन 2047 का खाका खींचा गया है। इसके तहत वर्ष 2027 तक अयोध्या क्षेत्र को देश की आध्यात्मिक राजधानी के तौर पर विकसित करने की कोशिश की जा रही है। इस क्रम में सीएम योगी के मार्गदर्शन में विकास प्राधिकरण (एडीए) द्वारा नव्य-भव्य अयोध्या के विकास के लिए इस विजन के क्रियान्वयन की शुरुआत कर दी गई है।
क्या होता है जीआरसी और कैसे है यह अन्य मटीरियल्स से खास
ग्लास फाइबर कॉन्क्रीट यानी जीआरसी एक प्रकार का कंपोजिट मटीरियल है। इसे हाइड्रॉलिक सीमेंट, सिलिका सैंड, एल्केलाइन रेजिस्टेंट ग्लास फाइबर व पानी के मिश्रण के जरिए बनाया जाता है। यह पत्थरों की ही तरह टिकाऊ होता है, मगर वजन में उससे हल्का होता है। इसे ढालकर, तराशकर और आमतौर पर कंपोजिट फ्रेम्स में काटकर शिल्प को तैयार किया जाता है। पत्थरों की अपेक्षा इसे आकार देना आसान होता है और एक ओर जहां बड़ी परियोजनाओं में पत्थरों को तराशे जाने से इलाके की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) में पर्टिकुलेट मैटर बढ़ जाते हैं जिससे स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है, वहीं इसके मुकालबे जीआरसी के प्रयोग से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता है। यही कारण है कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर व अयोध्या तीर्थ क्षेत्र में तमाम अवस्थापनाओं के विकास में जीआरसी का प्रयोग किया जा रहा है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की बाहरी दीवारों पर परकोटों और कलाकृतियों की जो आकृतियां दी गई हैं, उनमें से ज्यादातर में इसी जीआरसी कॉम्पोजिट फ्रेमिंग टेक्निक का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में अयोध्या विकास प्राधिकरण की योजना है कि अब शहर के सौंदर्यीकरण में पौराणिक किरदारों की प्रतिमाओं समेत अन्य सजावटी कलाकृतियों का निर्माण जीआरसी के जरिए किया जाए और इसे इनबिल्ट व बाहरी डेकोरेटिव लाइटों से युक्त किया जाए, जिससे अयोध्या के नगरीय विकास के अद्भुत सौंदर्य के प्रतिमान को स्थापित व प्रचारित किया जा सके।
लीक से हटकर साबित होगा योगी सरकार का प्रयास
योगी सरकार के मार्गदर्शन में एडीए की ओर से शहर में विभिन्न स्थानों पर आर्टिस्टिकली डिजाइन्ड जीआरसी स्कल्पचर्स का विकास किया जा रहा है, जिससे आधुनिक अयोध्या के सौंदर्य और वैभव का यशोगान हो सके। इस क्रम में एडीए द्वारा एक एजेंसी के निर्धारण की प्रक्रिया शुरू की गई है, जो इन सजावटी जीआरसी स्कल्पचर्स को इंटरनेशनल सर्टिफिकेशन और प्रतिमानों के अनुरूप आधुनिक रोशनी सज्जा से युक्त करेगी। एडीए द्वारा ई-निविदा माध्यम के जरिए टेंडर प्रस्तुत किया है। माना जा रहा है कि 22 जनवरी को होने वाले श्रीराम जन्मभूमि मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम के पूर्व इस प्रक्रिया को पूर्ण कर लिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि परियोजना के पूरा होने पर यह बेहद भव्य स्वरूप प्रस्तुत करेगा और इन सभी शिल्पों को देश-दुनिया से आने वाले तीर्थयात्री व पर्यटक न केवल निहारकर उसकी सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो जाएंगे, बल्कि यह सेल्फी प्वॉइंट व रील्स बनाने के लिए भी आकर्षण स्थल के तौर पर कार्य करेगा। इन स्कल्पचर्स में रामायण काल के प्रसंगों व पौराणिक किरदारों की कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं, जो अयोध्या के समृद्ध ऐतिहासिक वैभव की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करेंगी।
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