श्री राम मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणामः आलोक कुमार

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श्री राम मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणामः आलोक कुमार


श्री राम मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणामः आलोक कुमार


श्री राम मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणामः आलोक कुमार


श्री राम मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणामः आलोक कुमार


श्री राम मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणामः आलोक कुमार


श्री राम मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणामः आलोक कुमार


धार, 17 फरवरी (हि.स.)। विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि इस वर्ष 22 जनवरी को दुनिया के 55 देशों के पांच लाख मंदिरों में नौ करोड़ से अधिक लोगों ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मनाया और भारत के करोड़ों लोगों की श्रद्धा ने मूर्ति में प्राण स्थापित किया है। भगवान श्री राम का मंदिर 25 पीढ़ियों और लाखों लोगों के बलिदान का परिणाम है।

आलोक कुमार शनिवार को धार में आयोजित नर्मदा साहित्य मंथन के दूसरे दिन रामराज्य की अवधारणा एवं स्वरूप विषय पर केंद्रित प्रथम सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राम जी के राज्य में धर्म आधारित जीवन था। समाज के संबंधों का निर्धारण पुलिस और कानून नहीं कर सकता। आतंकवाद और सभ्य समाज एक साथ नहीं रह सकते हैं।

उन्होंने राम राज्य में महिला सम्मान के प्रश्न पर कहा कि महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा, सहभाग और सम्मान ये सभी राम राज्य में भी थे और वर्तमान में इसके बिना हम विश्वगुरु नहीं हो सकते। अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना आदिपर्व था, परंतु भविष्य में ऐसे अवसर आते रहेंगे। आने वाले समय में मथुरा काशी और भोजशाला भी अपने मूल स्वरूप में स्थापित होगी।

इससे पहले नर्मदा साहित्य मंथन के दूसरे दिन का प्रारंभ हेरिटेज वॉक से हुआ। हेरिटेज वॉक प्रारंभ भोजशाला से हुई एवं समापन विजय मंदिर पर हुआ। इसमें विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार, पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर एवं सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय प्रमुख रूप से शामिल हुए। इनके साथ भोजपर्व में शामिल हुए प्रतिभागियों ने विजय मंदिर के इतिहास को जाना एवं प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त की।

नर्मदा साहित्य मंथन के द्वितीय सत्र में पद्मश्री रमेश पतंगे ने संविधान से राम राज्य का मार्ग विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि संविधान केवल पुस्तक में पढ़ने से आगे बढ़ाकर दैनिक जीवन में जीना पड़ेगा। सामाजिक समरसता का उल्लेख संविधान में मिलता हैं। हमारे देश में न्याय व्यवस्था इतनी श्रेष्ठ थी। इसका उदाहरण इसी बात से मिलता है कि पशु को न्याय देने के लिए अपने बच्चों को रथ के पहिये के नीचे कुचलने की सजा देने वाले न्यायप्रिय राजा भी इस देश में रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब तक समाज में सामाजिक समरसता का भाव नहीं होगा, समाज में राम राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। हमारे संविधान में भी सामाजिक समरसता को सर्वोपरि रखा गया है। संविधान में उल्लेखित अपने कर्तव्यों के पालन से राम राज्य की कल्पना को साकार किया जा सकता हैं।

तृतीय सत्र के मुख्य वक्ता सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने भारतीय न्यायपालिका में स्व की अवधारणा विषय पर बोलते हुए भारत की स्व आधारित न्याय व्यवस्था की स्थापना के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत में अभी गुलामी की मानसिकता वाली शिक्षण व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था एवं कार्यपालिका चल रही है, इसे बदलने की आवश्यकता है। न्याय यदि समय पर नहीं मिलता तो वो न्याय किसी काम का नहीं हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जस्टिस विथिन ए ईयर अर्थात् एक साल में न्याय वाली व्यवस्था लागू होना चाहिए। कानून कठोर होने से लोग अपराध नहीं करेंगे।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 से अब तक 1500 से अधिक अंग्रेजी के समय के अनुपयोगी कानूनों को ख्तम किया गया है, जबकि 2014 से पहले स्वतंत्रता के समय तक केवल 50 अंग्रेजी कानून समाप्त हुए हैं। अभी भी कई ऐसे काले कानून हैं जिन्हें समाप्त करने की आवश्यकता हैं। त्वरित न्याय के लिए ज्यूडीशियल रिफार्म की आवश्यकता हैं। जजों की नियुक्ति के लिए भी राष्ट्रीय स्तर की एक परीक्षा होनी चाहिए। न्याय करने वालों को विवादित जगहों पर जाकर अपने स्वाविवेक से देखकर निर्णय लें तो भोजशाला मंदिर जैसे मुकदमों का निर्णय कुछ दिनों में ही संभव हो सकेगा।

चतुर्थ सत्र में विवेकानंद केंद्र की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद्मश्री निवेदिता रघुनाथ भिड़े दीदी ने दैनिक जीवन में अध्यात्म विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत अध्यात्म का केंद्र रहा हैं। अध्यात्म के कारण ही भारत वैभव संपन्न राष्ट्र रहा है। धर्म ही राष्ट्र और समाज का आधार है, धर्म में हम सबके कर्तव्य निहित हैं, व्यक्तिवादी होने से सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा और परिवार का विघटन होता हैं। समाज के प्रति निःस्वार्थ भाव ही राष्ट्र के पुनरुत्थान का माध्यम बनेगा। हम सबको ये विचार करना चाहिए कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या हैं। व्यक्ति का विस्तारित रूप परिवार, परिवार का विस्तारित रूप समाज, समाज का विस्तारित रूप ही राष्ट्र हैं। इसलिए राष्ट्र प्रथम हैं।

उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म संपूर्ण विश्व को अध्यात्म सिखाने वाला माध्यम हैं। हिंदुत्व का व्याप्त बहुत बड़ा हैं। सूचिता, करुणा, तप, और धर्म ही अध्यात्म का आधार हैं। हमें प्रामाणिक होने की आवश्यकता हैं। आध्यात्मिकता के कारण ही हमारे राष्ट्र ने अपना स्वत्व नहीं छोड़ा, आध्यात्मिकता अपने स्व की रक्षा करने का साहस देती है।

पांचवें सत्र में पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने मंदिरों से मजबूत होता भारत का आर्थिक तंत्र विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि आपदा के समय मंदिर न सिर्फ़ संबल प्रदान करते हैं बल्कि संसाधन भी प्रदान करते हैं। इसका उदाहरण कोविड में देखने को मिला। देश भर के हजारों मंदिरों ने करोड़ों लोगों को भोजन और आश्रय प्रदान किया। मंदिर आर्थिक तंत्र के साथ साथ पर्यावरण को भी मजबूत करते हैं। कार्बन क्रेडिट बढ़ाने के लिए मंदिर क्षेत्र के वन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मंदिर और समाज एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों एक दूसरे का संरक्षण करते हैं। मंदिर की प्रसाद परंपरा समाज के पोषण का एक माध्यम हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/मुकेश/आकाश

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