राजनाथ सिंह ने देश के सैन्य इतिहास में कानपुर शहर के महत्व को याद किया
- राष्ट्र का अस्तित्व बनाए रखने के लिए मौत का भी सामना करने को तैयार रहते हैं सैनिक
- पूर्व सैनिकों या उनके परिवारों का सम्मान करना हर भारतीय का कर्तव्य होना चाहिए
नई दिल्ली, 14 जनवरी (हि.स.)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रविवार को सेना दिवस से ठीक एक दिन पहले सशस्त्र बल पूर्व सैनिक दिवस पर रविवार को देश के सैन्य इतिहास में कानपुर शहर के महत्व को याद किया। उन्होंने कहा कि यह किसी संयोग से कम नहीं है कि हम अपने पूर्व सैनिकों के सम्मान के लिए कानपुर जैसी जगह पर एकत्र हुए हैं। यहीं से 1857 के ग़दर की शुरुआत हुई थी और आजाद हिंद फौज की पहली महिला कैप्टन का भी कानपुर से बड़ा आत्मीय नाता रहा है।
कानपुर में वायु सेना स्टेशन पर सशस्त्र बल पूर्व सैनिक दिवस समारोह में रक्षा मंत्री ने कहा कि इस देश के सैन्य इतिहास की श्रेणी में कानपुर अपना एक अलग ही महत्व रखता है। 1857 में जब भारत के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई तो उस समय पेशवा नानासाहेब ने कानपुर के बिठूर से ही विद्रोह का नेतृत्व किया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जिस आजाद हिंद फौज का गठन किया, उसकी पहली महिला कैप्टन रहीं डॉ. लक्ष्मी सहगल जी का भी कानपुर से बड़ा आत्मीय नाता रहा। उन्होंने तो अपने जीवन का आखिरी क्षण भी कानपुर में ही बिताया। उनकी पार्थिव देह का अंतिम संस्कार नहीं हुआ, बल्कि देश सेवा के लिए कानपुर मेडिकल कालेज को दान में दे दी गई।
राजनाथ सिंह ने कहा कि सैनिकों के साथ हमारा आत्मीय संबंध तो है ही, लेकिन हम यदि कभी एक सैनिक के परिप्रेक्ष्य से सोचें, तो हमें देश के प्रति उनकी भावनाओं की गहराइयों में उतरने का मौका मिलेगा। अगर सेना का कोई जवान कारगिल की चोटियों पर तैनात है, तो नौसेना का कोई नाविक हिंद महासागर की गहराइयों में हमारी सुरक्षा कर रहा है। इसी तरह कोई वायु योद्धा किसी सुदूर एयरबेस में हमारे वायु क्षेत्र की सुरक्षा कर रहा है। एक सैनिक को इस राष्ट्र का अस्तित्व बनाए रखने के लिए, इस राष्ट्र की जीवंतता बनाए रखने के लिए वह नैतिक बल मिलता है, जिसके कारण वह मौत का भी सामना करने को तैयार रहता है। उस सैनिक का सबसे बड़ा धर्म यह हो जाता है कि मैं रहूं या ना रहूं, मेरा देश रहना चाहिए, क्योंकि अगर यह देश जीवित रहेगा तो उसका नाम भी जिंदा रहेगा।
उन्होंने आम लोगों से आह्वान किया कि एक राष्ट्र के रूप में हमारा कर्तव्य यह होना चाहिए कि हम उस सैनिक के साथ तथा उसके परिवार के साथ ऐसा व्यवहार करें कि आने वाली कई पीढ़ियों तक जब भी कोई व्यक्ति सैनिक बने, तो उसके मन में यह भाव रहे कि यह देश उसे अपना परिवार मानता है। यह देश उसे किसी भी मुसीबत में अकेला नहीं छोड़ने वाला। केंद्र सरकार ने पूर्व सैनिकों पर विशेष ध्यान दिया है। चाहे वह वन रैंक वन पेंशन लागू करने की बात हो या फिर उनके लिए स्वास्थ्य देखभाल करने की बात हो, उनके पुन: रोजगार की बात हो या फिर समाज में उनके सम्मान की बात हो, हम लगातार अपने पूर्व सैनिकों का ख्याल रख रहे हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि यदि ईश्वर हमारा रक्षक है, डॉक्टर ईश्वर स्वरूप हैं तो कहीं ना कहीं सीमाओं पर हमारी सुरक्षा करने वाले सैनिकों में भी ईश्वर का कोई अंश मौजूद होगा। इसलिए अपने भूतपूर्व सैनिकों का सम्मान करना तथा उनके परिवार की देखभाल करना, यह ईशपूजा से कम नहीं होता। कोई भी परिवार अपने संसाधनों के अनुरूप ही अपने परिजनों का ख्याल रखता है। ठीक उसी प्रकार एक राष्ट्र भी अपने संसाधनों के अनुरूप अपने भूतपूर्व सैनिकों का ध्यान रखता है। जैसे-जैसे यह राष्ट्र प्रगति करता जा रहा है, हम अपने पूर्व सैनिकों के हालातों को और अधिक मजबूत करते जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे भारतीय सैनिकों का शौर्य ऐसा है कि सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में भी उनका सम्मान होता है। प्रथम विश्व युद्ध या द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जो भारतीय सैनिक दूसरे देशों की रक्षा या स्वतंत्रता के लिए लड़ने गए थे, उनकी चर्चा सम्मानपूर्वक दुनियाभर में होती है। हमारे सैनिकों की बहादुरी, ईमानदारी, व्यावसायिकता और मानवता की चर्चा तो भारत से बाहर भी मशहूर है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ विदेशी ही हमारे सैनिकों का सम्मान करते हैं, बल्कि भारतीय अपने सैनिकों का सम्मान करने के साथ ही न्याय के पक्ष में खड़े दूसरे देशों के सैनिकों का भी सम्मान करते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत/पवन
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