जस्टिस महेश्वरी ने किसी एक जेल को आदर्श रूप देकर बंदियों को सेहतमंद बनाने का दिया सुझाव

जस्टिस महेश्वरी ने किसी एक जेल को आदर्श रूप देकर बंदियों को सेहतमंद बनाने का दिया सुझाव
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जस्टिस महेश्वरी ने किसी एक जेल को आदर्श रूप देकर बंदियों को सेहतमंद बनाने का दिया सुझाव


जस्टिस महेश्वरी ने किसी एक जेल को आदर्श रूप देकर बंदियों को सेहतमंद बनाने का दिया सुझाव


जस्टिस महेश्वरी ने किसी एक जेल को आदर्श रूप देकर बंदियों को सेहतमंद बनाने का दिया सुझाव


- सेमीनार में मप्र मानव अधिकार आयोग की पहल को न्यायमूर्तियों ने सराहा

भोपाल, 10 दिसंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार महेश्वरी ने कहा कि समाज और सरकार की शुद्ध अंतकरणीय चेतना से बंदियों के नागरिक अधिकारों की सुरक्षा हो सकती है और वे देश के सभी मानव जैसे ही विकास में भागीदार हो सकते हैं। उन्होंने शासन को सुझाव दिया कि पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किसी एक जेल को आदर्श रूप देकर बंदियों को सेहतमंद बनाकर उनके सभी मौलिक अधिकारों को अमल में लाया जा सकता है।

न्यायमूर्ति महेश्वरी रविवार को भोपाल के प्रशासन और प्रबंधकीय अकादमी में मप्र मानव अधिकार आयोग द्वारा अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर आयोजित बंदियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा अधिकार मानव अधिकार विषय पर सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। न्यायमूर्ति महेश्वरी सहित अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर सेमीनार के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ किया।

न्यायमूर्ति महेश्वरी ने महात्मा गांधी के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि अपराधी भी मानव होता है और कुछ परिस्थितियां होती है, जो समाज के उसी मानव को अपराधी बनाती है। हमें अपराधी नहीं, अपराध से घृणा करना सिखाया गया है। उन्होंने कहा कि हमें एक सकारात्मक चेतना तंत्र विकसित करना होगा और उस पर अमल करके बंदियों को देश के विकास के लिए सहभागी मानव बनाना होगा। उन्होंने मध्यप्रदेश सहित अन्य जेल में वर्तमान की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए बंदियों को सेहतमंद बनाने के लिए ठोस और सुनियोजित प्रयासों की जरूरत बताई। उन्होंने मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग की इस पहल के लिए सराहना भी की।

मप्र उच्च न्यायालय जबलपुर के न्यायमूर्ति सुजाय पाल ने विशिष्ठ अतिथि के रूप में कहा कि नेल्सन मंडेला कहा करते थे कि किसी राष्ट्र की अच्छाई इस बात से परखी जाना चाहिए कि उसके बंदीगृह कैसे है। उन्होंने उपस्थित जनों से कहा कि दोषमुक्त या सजा पूरी कर चुके बंदी को समाज को अपनाने में भेद नहीं करना चाहिए। उन्होंने विध्वंस और सृजन को समझाते हुए लोगों से सभी मानवों को सामान्य रूप से अपनाने की अपील की। उन्होंने भगवान बुद्ध की एक सीख से 999 हत्या करने वाले अंगुलिमाल के संत बन जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि कोई भी अपराधी नहीं सुधरेगा, यह सही नहीं है। उन्होंने आयोग के इस सेमीनार को बंदियों के स्वास्थ और सुरक्षा अधिकार के लिए मील का पत्थर बताते हुए कहा कि आज के विमर्श से नई राह निकलेगी। उन्होंने आयोग को इस आयोजन के लिए बधाई भी दी।

उच्च न्यायालय ग्वालियर बेंच के न्यायमूर्ति संजीव एस कालगंवकर ने कहा कि जिला सत्र न्यायाधीश रहते हुए उन्होंने बंदियों के अधिकारों के हनन के कई गंभीर मामले देखे हैं और उन्हें ठीक भी करवाया है। उन्होंने कहा कि सुधार और नवाचार की हमेशा संभावना बनी रहती है। बंदियों को मानव मानकर उनके मूलभूत अधिकार उन्हे देना ही चाहिए। उन्होंने सभी से आत्म परीक्षण करने की अपील करते हुए कहा कि सरकारी नियम कायदे और जेल प्रशासन के उचित ओरियेटेंशन नही होने से भी मनमाफिक व्याख्या होती है, जिससे बंदी अधिकारो से वंचित होते हैं।

सेमीनार की अध्यक्षता करते हुए मप्र मानव अधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष मनोहर ममतानी ने कहा कि पिछले 5 वर्षों में प्रदेश की जेलों में 900 से अधिक बंदियों की मृत्यु में से अधिकतर तो सामान्य थी, पर कुछ स्वास्थ्य सेवाओ की कमी, समय पर उपचार न मिलने, रोग की पहचान नहीं होने और कुछ अवसाद के कारण हुई है, जो गंभीर है। आयोग ने बंदियों के नागरिक अधिकारों की सुरक्षा करते हुए उनके परिवारों को 3 करोड़ से अधिक की राशि दिलवाई है, पर असल बात बंदियों को समय पर संविधान में प्रदत्त अधिकार के अंतर्गत उनकी स्वास्थ्य और सुरक्षा के अधिकार दिलवाना है।

गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. राजेश राजौरा ने मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश की 132 जेलो में किए जा रहे सुधार कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि सुधार गृह में कारागारों को बदलने और कैदियों के अधिकारो के लिए सरकार पहले से ज्यादा गंभीर है। नवीन और आदर्श जेल बनाने के साथ ही आधुनिक सुविधा, पदों की पूर्ति, स्वास्थ्य परीक्षण, वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा, पढ़ाई, कौशल विकास सहित मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति पर सरकार का फोकस है।

कार्यक्रम के शुभारंभ पर श्रीराम लेडी कालेज दिल्ली के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ. वर्तिका नन्दा ने जेलों और वहां महिला, पुरुष और बाल अपराधियों की स्थिति पर शोधपरक अनेक दृष्टांत और कविताएं प्रस्तुत कर बंदियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की तस्वीर प्रस्तुत की। उन्होंने जेलों की स्थिति और बंदियों के अनुभव पर लिखी तीन पुस्तकों- तिनका तिनका तिहाड़, तिनका तिनका मध्यप्रदेश की जेल आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि शारीरिक स्वास्थ्य से ज्यादा बंदियों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना सर्वाधिक आवश्यक है। उन्होंने मीडिया संस्थान से भी आग्रह किया कि वे ऐसी रिपोर्ट न करें, जिससे एक मामले के कारण सभी बंदियों के मानव अधिकार प्रभावित होते हो।

इससे पहले बंदियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा अधिकार मानव अधिकार पर केंद्रित आयोग की पुस्तिका का विमोचन किया गया। आयोग के सदस्य राजीव टंडन ने स्वागत भाषण में विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए पुलिस, जेल और स्वास्थ्य विभागों से समन्वय पूर्ण क्रियान्वयन बंदियों के स्वास्थ्य अधिकार की रक्षा करने की अपील की। सेमीनार में प्रदेश के अनेक न्यायाधीश, पूर्व न्यायाधीश,वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जेल अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, अधिवक्ता गण, अशासकीय संगठनों के प्रतिनिधि, विधि विशेषज्ञ, विधि विद्यार्थी सहित बंदियों के परिजन भी उपस्थित थे। सेमीनार की लाइव स्ट्रीमिंग आयोग के यू-ट्यूब लिंक पर भी की गई। द्वितीय तकनीकी सत्र में गंभीर विमर्श हुआ। इस सत्र की अनुशंसाएं शासन को प्रेषित की जाएंगी।

हिन्दुस्थान समाचार/मुकेश/सुनीत

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