संस्कृत संस्कृति की पहचान और वाहक रही है : राष्ट्रपति

संस्कृत संस्कृति की पहचान और वाहक रही है : राष्ट्रपति
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संस्कृत संस्कृति की पहचान और वाहक रही है : राष्ट्रपति

 
संस्कृत का व्याकरण इस भाषा को अद्वितीय वैज्ञानिक आधार देता है। यह मानवीय प्रतिभा की अनूठी उपलब्धि है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संस्कृत आधारित शिक्षा प्रणाली में गुरु या आचार्य को अत्यधिक महत्व दिया गया है। 

नई दिल्ली, 05 दिसंबर (हि.स.)। ‘संस्कृत हमारी संस्कृति की पहचान और वाहक रही है। यह हमारे देश की प्रगति का आधार भी रही है।’ नई दिल्ली में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उक्त बात कही। राष्ट्रपति ने यहां दीक्षांत समारोह में 4423 उपाधियां प्रदान कीं, साथ ही सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छह छात्रों को स्वर्णपदक से विभूषित किया। इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक सहित अन्य गण्यमान्य लोग उपस्थित रहे।

राष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृत का व्याकरण इस भाषा को अद्वितीय वैज्ञानिक आधार देता है। यह मानवीय प्रतिभा की अनूठी उपलब्धि है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संस्कृत आधारित शिक्षा प्रणाली में गुरु या आचार्य को अत्यधिक महत्व दिया गया है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र इस परंपरा का पालन करेंगे और अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता के साथ आगे बढ़ेंगे और शिक्षक भी छात्रों को जीवन भर आशीर्वाद देंगे और प्रेरित करेंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि बुद्धिमान लोग सर्वोत्तम चीजों को स्वीकार करने के लिए अपनी बुद्धि का उपयोग करते हैं। नासमझ लोग दूसरों की सलाह पर कोई चीज अपना लेते हैं या अस्वीकार कर देते हैं। उन्होंने छात्रों को यह ध्यान रखने की सलाह दी कि हमारी परंपराओं में जो कुछ भी वैज्ञानिक और उपयोगी है उसे स्वीकार करना होगा और जो कुछ भी रूढ़िवादी, अन्यायपूर्ण और बेकार है उसे अस्वीकार करना होगा। विवेक को सदैव जागृत रखना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की परिकल्पना है कि हमारे युवा भारतीय परंपराओं में विश्वास रखते हुए 21वीं सदी की दुनिया में अपना उचित स्थान बनाएं। हमारे देश में सदाचार, धार्मिक आचरण, परोपकार और सर्व-मंगल जैसे जीवन मूल्यों पर आधारित प्रगति में ही शिक्षा की सार्थकता मानी जाती है। उन्होंने कहा कि इस दुनिया में उन लोगों के लिए कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं है जो हमेशा दूसरों के कल्याण में लगे रहते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि सर्वसमावेशी प्रगति किसी भी संवेदनशील समाज की पहचान होती है। उन्होंने श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय से छात्राओं को प्रोत्साहित करने और उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के अधिक अवसर प्रदान करने का आग्रह किया।

हिन्दुस्थान समाचार/ सुशील/दधिबल

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