पहली बार वनवासी समाज के श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ के दरबार में लगायेंगे हाजिरी
-धर्म, संस्कृति एवं परम्परा के सरंक्षण और संवर्धन के लिए महादेव से करेंगे प्रार्थना
वाराणसी, 27 अक्टूबर (हि.स.)। जनजाति सुरक्षा मंच की पहल पर पहली बार वनवासी समाज के श्रद्धालु 29 अक्टूबर को बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगायेंगे। दर्शन-पूजन में वनवासी समाज के 111 प्रतिनिधि,13 जिले, 45 विकास खण्डों और 1828 गांवों के 18 जनजाति समूहों के लोग शामिल रहेंगे। समाज के लोग धर्म, संस्कृति एवं परम्परा के सरंक्षण और संवर्धन के लिए महादेव से प्रार्थना करेंगे।
जनजाति समाज के लोग पूर्वाह्न 10 बजे नमो घाट पर पहुंचेंगे। वहां पर गंगा स्नान करेंगे और उसके बाद नावों और बजड़ों पर सवार होकर ललिताघाट के रास्ते श्रीकाशी विश्वनाथ धाम आएंगे। यहां पर गंगा द्वार से उन्हें प्रवेश दिया जाएगा। समाज के लोगों के लिए विश्वनाथ धाम में सुलभ दर्शन पूजन की व्यवस्था होगी। यहीं पर उनके लिए भोजन की भी व्यवस्था की जाएगी।
यह जानकारी शुक्रवार को मंदिर परिसर में आयोजित पत्रकार वार्ता में जनजाति सुरक्षा मंच के संयोजक रामविचार टेकाम,महामंत्री देव नारायण खरवार,मंदिर न्यास के अध्यक्ष प्रो. नागेन्द्र पांडेय,मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा,सेवा समर्पण संस्थान वनवासी कल्याण आश्रम के पदाधिकारियों ने संयुक्त रूप से दी।
विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने बताया कि मंदिर प्रशासन सभी जनजातीय समाज के लोगों को अतिथि के तौर पर सम्मान देगा। मंदिर न्यास और वनवासी समूहों से जुड़ाव भी महसूस करेंगे। इसकी पूरी रूपरेखा तैयार कर ली गई है। उन्होंने बताया कि जनजाति समाज को यह अद्भुत धाम दिखाना और वह अपनी परम्पराओं से जुड़ाव महसूस कर सकें, इस कार्यक्रम का उद्धेश्य है।
वार्ता में जनजातीय सुरक्षा मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी में द्वादश ज्योर्तिर्लिंग में एक तीनों लोकों के स्वामी आदि विश्वेश्वर देवाधिदेव महादेव काशी विश्वनाथ व काशी विश्वनाथ न्यास सम्पूर्ण जगत में सनातन धर्म, संस्कृति, परम्परा के संरक्षण व संवर्धन का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि जब-जब देश में धर्म का क्षरण हुआ है तथा विधर्मी शक्तियों का उत्थान हुआ है। सम्पूर्ण देश को काशी से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और विपरीत परिस्थितियों में भी लम्बे संघर्ष के बाद अपनी धर्म, संस्कृति, परम्परा के आधार पर जीवन व्यतीत करने वाले समाज को संरक्षण प्राप्त हुआ है।
बताया कि लम्बी गुलामी के बाद जब देश स्वतंत्र हुआ तो देश चलाने के लिए बने संविधान के निर्माताओं ने प्राचीन सनातन,संस्कृति,परम्परा को साकार रूप में जीवन व्यवहार में जीने वाले गिरिवासी,वनवासी,आदिवासी,जनजाति समाज को उनकी धर्म,संस्कृति,परम्परा,रीति-रिवाज को सरंक्षण और संवर्धन् के लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जा के साथ विशेष अधिकार दिए गये। किन्तु कालांतर में सीधे-साधे आदिवासियों को प्राप्त विशेषाधिकार(आरक्षण) पर धर्म संस्कृति,परम्परा को न मानने वाले विधर्मी,मतांतरित,धर्मांतरित लोगों ने कूटरचित तरीके से कब्जा कर लिया।
उन्होंने बताया कि जनजाति समाज को प्राप्त 90 फीसद अधिकारों को हड़प लिया गया। जनजाति समाज के अज्ञानता का लाभ उठाया गया। पूर्व शासन की कार्यशैली से निराश वनवासी समाज के लोग श्री काशी विश्वनाथ दरबार की शरण में आ रहे हैं। दर्शन पूजन के बाद वनवासी समाज के लोग विधर्मियों को जनजाति सूची से बाहर कराकर न्याय दिलाने की मांग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से करेंगे। बाबा विश्वनाथ के धाम में जनजाति समाज के सरंक्षण और संवर्धन पर चर्चा होगी। उन्हें बताया जायेगा कि वह सनातन धर्म के एक अभिन्न अंग है।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/राजेश
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