खजुराहो नृत्य समारोहः मंच को मंदिर बनाकर नित्यानंद दास ने एक पैर से 30 मिनट तक किया नृत्य
- कलाकार की साधना देख भाव विभोर हुए कलानुरागी
भोपाल, 23 फरवरी (हि.स.)। खजुराहो नृत्य समारोह जैसे आयोजन तब कलाओं के तीर्थ की तरह नजर आने लगते हैं जब फिजिकली चैलेंज्ड ओडिसी नर्तक नित्यानंद दास जैसे कलाकार अपनी साधना से मंच को मंदिर बना देते हैं। जब वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण के छायाचित्र के सामने दंडवत होकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर एक पैर पर अनवरत 30 मिनट तक स्फूर्ति और ऊर्जा के साथ नृत्य करते हैं तो प्रतीत होता है कि ईश्वर से बड़ी कोई शक्ति नहीं और मनुष्य के हौसले से बढ़कर कुछ नहीं। तब वो सारी आंखें नम हो जाती है जो ईश्वर के इस चमत्कार की चश्मदीद बनती हैं।
विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में चल अंतरराष्ट्रीय नृत्य समागम 50वें खजुराहो नृत्य समारोह की अनुषांगिक गतिविधि लयशाला की तीसरी सभा में शुक्रवार को एक ऐसा नजारा देखने को मिला जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। इस सभा के दूसरे वक्ता भुवनेश्वर के ओडिसी नर्तक नित्यानंद दास का संवाद सह प्रदर्शन हुआ जिसमें उन्होंने एक पैर पर 30 मिनट का प्रदर्शन प्रिय सखा प्रस्तुत किया।
नित्यानंद दास ने बताया कि कई वर्ष पहले एक दुर्घटना में उन्होंने अपना दाहिना पैर खो दिया। उनका नृत्य छूट गया। वे दूसरे कलाकारों को नृत्य करता देखते तो मन उस ओर भागने लगता। एक दिन वे अपने गुरु बिंदाधर दास के पास पहुंचे और उनसे नृत्य करने की बात कही। गुरु मां के कहने पर गुरुजी एक पैर पर नृत्य सिखाने के राजी हुए। तब अपने शिष्य की खातिर खुद अपना एक पैर बांधकर नृत्य सिखाया। इधर, नित्यानंद दास अपने आराध्य श्री कृष्ण भगवान से रात दिन ये प्रार्थना करते कि उन्हें नृत्य करने की शक्ति दें। तब 2005 में रवीन्द्र मंडप में पहली प्रस्तुति दी। प्रिय सखा प्रदर्शन उनके अपने जीवन की कहानी है जो एक पैर पर नृत्य कर वे प्रदर्शित करते हैं।
लयशाला के प्रथम वक्ता पियाल भट्टाचार्य ने कथकली नृत्य की बारीकियों और प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। उनके साथ शिष्य आकाश ने प्रदर्शन में सहयोग किया। उन्होंने बताया कि कथकली महाभारत की लोक कथाओं पर आधारित है। भट्टाचार्य ने कथकली में अंग संचलन पर चर्चा की। उन्होंने बताया की कथकली में पद संचलन काफी मुश्किल होता है।
कलावार्ता
50वें खजुराहो नृत्य समारोह में आयोजित कलावार्ता गतिविधि की तीसरी सभा शुक्रवार को सुप्रसिद्ध नृत्यांगना एवं गुरु सुचित्रा हरमलकर की नृत्य यात्रा, अनुभव एवं नृत्य विविध आयामों के प्रकाश में सजी। इस अवसर पर उन्होंने अपनी नृत्य यात्रा के शुरुआती दिनों का स्मरण कर अपने संघर्ष और कला के प्रति समर्पण के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि एक नृत्यकार सम्पूर्णता को तब प्राप्त करता है जब वह सहायक विधाओं को भी आत्मसात करता है। नृत्य कला में साधना और श्रद्धा की जरूरत होती है। गुरु को न सिर्फ सूचना का तंत्र समझना गलत है, उनके प्रति अटूट श्रद्धा रखना आवश्यक है। गुरु को स्वार्थ पूर्ति का साधन न मानें, क्योंकि कलाओं में कोई शार्टकट नहीं होता है। एक प्रष्न का उत्तर देते हुये सुचित्रा हरमलकर ने कहा कि खजुराहो नृत्य समारोह हर नृत्यांगना का सपना होता है। क्योंकि यह साधना स्थली है और यदि हम यहां अपनी नृत्यांजलि अर्पित कर दें तो यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
लोकरंजन
संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन, दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र नागपुर के सहयोग से खजुराहो नृत्य समारोह परिसर में 20 से 26 फरवरी तक प्रतिदिन शाम 5 बजे से लोकरंजन का आयोजन किया जा रहा है। इसमें चौथे दिन महाराष्ट्र का सोंगी मुखौटा एवं सतपाल वडाली एवं साथी, पंजाब द्वारा सूफी एवं पंजाबी लोकगायन की प्रस्तुति दी गई। शुरुआत सौंगी मुखौटा नृत्य से की गई। सौंगी मुखौटा नृत्य महाराष्ट्र और गुजरात के बीच सीमांत गाँवों में निवास करने वाले जनजातियों का मूल नृत्य है। यह अत्यन्त आकर्षक रंग-बिरंगी वेशभूषा और हाथ में रंगीन डंडे लेकर प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद सतपाल वडाली एवं साथी, पंजाब द्वारा सूफी और पंजाबी गायन किया गया। उन्होंने तू माने या ना माने दिलदारा..., तुझे देखा तो लगा मुझे ऐसे..., कि जैसे मेरी ईद हो गई..., छाप तिलक सब छीनी..., तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी..., मेरे रश्के कमर..., मस्त नजरों से अल्लाह बचाए..., दमा दम मस्त कलंदर... जैसे कई गीतों की प्रस्तुति दी।
व्यंजन मेला एवं हुनर
खजुराहो नृत्य समारोह समकालीन कलाओं के साथ-साथ व्यंजन और हुनर जैसी गतिविधियां भी कलानुरागियों को प्रफुल्लित कर रही हैं। कार्यक्रम परिसर में प्रवेश के साथ ही लोक और जनजातियों के स्वाद की खुशबू यहां आने वालों के लिए रुचि का विषय बन रहा है। समारोह में व्यंजन मेले का आयोजन किया गया है जहां देशज व्यंजन परोसे जा रहे हैं। इनमें बुंदेली के अलावा बघेली, मालवा, निमाड़ अंचलों के व्यंजनों के अलावा कोल, गोंड, बैगा इत्यादि जनजातियों के व्यंजन विशेष हैं। मूंग के बरे, कुर्थी दाल, बाजरा-मक्का-ज्वार की रोटियां, भर्ता, मालपुआ, दाल बाफला/बाटी, कोदू पुलाव, मक्का ढोकला, कड़ी और विभिन्न प्रकार की चटनियां खास हैं। साथ ही हस्तकलाओं से परिचित कराने हुनर का आयोजन भी इस समारोह में किया गया है, जिसमें हाथ से निर्मित उत्पादों को विक्रय हेतु प्रदर्शित किया जा रहा है। इनमें जरी-जरदोजी, मेटल उत्पाद, गौ-शिल्प, माटी शिल्प, हस्तनिर्मित आभूषण, बाग, महेश्वरी, चंदेरी की साड़ियां-सूट, मिट्टी के खिलौने इत्यादि भी कलानुरागियों का मन मोह रहे हैं। इस तरह के 140 स्टॉल लगाए गए हैं।
चित्रकला शिविर
50वां खजुराहो नृत्य समारोह के अंतर्गत चित्रकला शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें लक्ष्मीनारायण भावसार भोपाल, वनिता श्रीवास्तव इंदौर, प्रवीणा खरे इंदौर, हरिकांत दुबे भोपाल, शंकर शिंदे इंदौर, देवीलाल वर्मा जयपुर, नीना खरे, तृप्ति गुप्ता, बलवंत भदौरिया, मनीष ग्वालियर, सुष्मिता सांची एवं उमेंद्र वर्मा ग्वालियर शामिल हुए हैं। इस शिविर में विभिन्न मीडियम में चित्रकला कार्य किया जा रहा है। यहां मूर्त तथा अमूर्त चित्र उकेरे जा रहे हैं।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में विश्वविख्यात 50वें खजुराहो नृत्य समारोह के चौथे दिवस शुक्रवार को कला के विविध आयामों का संगम हुआ। इस अवसर पर उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत भिसे ने आमंत्रित कलाकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/प्रभात
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