नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन वास्तविकता में एक बहुत बड़ी चुनौती : अतुल कोठारी
कानपुर,27अक्टूबर(हि.स.)। भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए संस्कृति और प्रगति ही नहीं, बल्कि प्रकृति के अनुरूप भी कार्य करना होगा। नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन वास्तविकता में एक बहुत बड़ी चुनौती है।
यह बात शुक्रवार को छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का क्रियान्वयन तथा चुनौतियां व समाधान' विषय पर आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के महासचिव अतुल कोठारी ने कही।
उन्होंने कहा कि हमें अपने विचारों, बौद्धिकता और कार्य व्यवहार तीनों से प्रेरित होकर कार्य करना चाहिए तथा शिक्षा नीति पर क्रमबद्ध रूप से योजना बनाने की आवश्यकता है। जिससे हर व्यक्ति तक राष्ट्रीय शिक्षा नीति की पहुंच सुनिश्चित करायी जा सके। समाधान वहीं होता है जहां समस्या होती है, नई शिक्षा नीति क्रियान्वयन वास्तविकता में एक बहुत बड़ी चुनौती है। जिसे हम सभी को समझना होगा। पहले के समय में युवा नौकरी करने वाली पढ़ाई करते थे। इससे उन्हें नौकर बनने की लत लग गई और आज भी वह इस लंबी कतार में खड़े रहते हैं, लेकिन अब जब से राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई है तब से छात्र-छात्राओं को स्वावलंबी बनाने वाली पढ़ाई कराई जा रही है। इसे पढ़कर आने वाले समय में युवा स्वावलंबी बनकर दूसरों को रोजगार देने में सक्षम होंगे।
अतुल कोठारी ने कहा कि लोग जब बीए, बीएससी की पढ़ाई पूरी कर लेते हैं। उसके बाद शोध का कार्य शुरू करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। अब लोगों को प्रथम वर्ष से ही शोध का कार्य कराया जाने लगा है। शोध में थ्योरी के साथ-साथ प्रेक्टिकल पर भी जोर दिया जाना चाहिए, ताकि जो शोधार्थी हैं वह जमीनी स्तर पर कार्यों का अनुभव ले सके। देश के विकास में शोध का बड़ा योगदान है।
उन्होंने छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय एवं कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक की सराहना करते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय एनईपी लागू करने वाला पहला विश्वविद्यालय है, जिस तरह से एनईपी का टास्क फोर्स बनाया गया है। इसी तरह से एनईपी को समझने और समझाने के लिए छात्रों का भी एक टॉस्क फोर्स गठित करना चाहिए।
शिक्षा का भारतीयकरण बुनियादी आवश्यकता
अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा तो हम ग्रहण करते हैं, लेकिन अपनी भारतीय परंपरा को भी इस शिक्षा में लाना चाहिए। अगर हम अपनी सांस्कृतिक परंपरा से दूर होंगे तो ऐसी शिक्षा किस काम की। इसीलिए सभी पाठ्यक्रम में भारतीय भाषाओं का प्रयोग होना चाहिए। 2012 से मैं इस मांग को कर रहा हूं। उस समय लोग मेरा मजाक उड़ाते थे, लेकिन आज इसको लोग जरूरी समझ रहे हैं। इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम आज 12 भाषाओं में आ गया है। मध्य प्रदेश में मेडिकल की किताबें हिंदी में आ गई है।
कार्यक्रम में कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि विश्वविद्यालय के लिए यह गर्व का विषय है कि प्रदेश में सबसे पहले एनईपी लागू करने वाला वह विश्वविद्यालय है। हम डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ भारतीय ज्ञान परंपरा को भी साथ लेकर चल रहे हैं। आज विश्वविद्यालय की प्रगति को देखते हुए इसे एक मॉडल विश्वविद्यालय के तौर पर देखा जा रहा है।
इससे पहले विषय परिचय में प्रति कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी ने विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत किए गए कार्यो की प्रस्तुति दी। अतिथियों का स्वागत प्रो राजेश कुमार द्विवेदी, संचालन डॉ रत्नर्तु मिश्रा एवं धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ अनिल कुमार यादव ने किया। इस अवसर पर प्रो. रोली शर्मा, डॉ शशिकांत त्रिपाठी, संजय स्वामी, डॉ पुणेंदु मिश्रा, प्रो. यतींद्र कुशवाहा समेत विभिन्न कॉलेजों के प्राचार्य मौजूद रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/राम बहादुर
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