खजुराहो नृत्य समारोहः भारतीय संस्कृति की आबोहवा में निकली लय-ताल की अमृत यात्रा
भोपाल, 24 फरवरी (हि.स.)। खजुराहो नृत्य समारोह नृत्य और समकालीन कलाओं का एक ऐसा गुलदस्ता है, जिसके गुलों की सुगन्ध दिन-प्रतिदिन कलानुरागियों के मानस को तिलिस्मी दुनिया में ले जा रही है। एक ऐसी दुनिया जहां की आबोहवा में भारतीय संस्कृति के संस्कार हैं, जहां आकार को साकार किया जाता है, जहां सात्विकता है, शुद्धता है, नव रसों और भावों का समावेश है। इस आबोहवा में चाक पर हाथों से मिट्टी को आकृति प्रदान करना हो या कला साधकों से सीखने की बात, लोक का सजीला संसार हो या लय-ताल की यात्रा, सब कुछ समाहित है।
विश्व धरोहर खजुराहो में चल रहे 50वें खजुराहो नृत्य समारोह के पांचवें दिन शनिवार को पंचानन भुयान, आराधना ओडिसी डांस फाउंडेशन, दिल्ली का छाऊ-ओडिसी, अमीरा पाटनकर एवं साथी पुणे का कथक, राजश्री होल्ला एवं रेखा सतीश बैंगलोर का कुचिपुड़ी और अनु सिन्हा एवं साथी दिल्ली का कथक देख दर्शक मुग्ध हो गए।
समारोह में शनिवार की संध्या शुरुआत गुरु पंचानन भुयान और उनके समूह के छाऊ-ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति से हुई। पंचानन ने अपने नृत्य की शुरुआत मंगलाचरण से की। शांताकारं भुजगशयनम श्लोक पर भगवान विष्णु को याद किया गया। मर्दल की ताल पर नर्तकों ने भाव प्रवण ढंग से यह प्रस्तुति दी। अगली प्रस्तुति में उन्होंने नृत्य और ताल के अनूठे संगम को पेश किया। रावण नृत्य नाटिका के एक अंश को इस प्रस्तुति में लिया गया था, जिसमें रावण शिव को प्रसन्न करने यज्ञ कर रहा है। इसमें ओडिसी के साथ मयूर भंज और छाऊ नृत्य शैलियों को भी समाहित किया गया था। इस प्रस्तुति में पंचानन के साथ सुमित मंडल, दीपक कांदारी, जय सिंह, रोहित लाल ने भी नृत्य में साथ दिया। रतिकांत महापात्र की यह नृत्य रचना खूब पसंद की गई। उन्होंने नृत्य का समापन लोकनाथ पटनायक द्वारा रचित उड़िया के भक्ति गीत सजा कंजा नयना कुंजे आ री से किया। राग आहिरी और ताल खेमटा की यह रचना खूब सराही गई। नृत्य रचना गुरु पंचानन और प्रिय सामंत राय की थी। इन प्रस्तुतियों में स्निग्ध शिखा पत्त जोशी, बनीता पंडा, इशिता गांगुली, सुदेशना दत्ता, आस्था पांडा, पूजित कटारी, सुमित मंडल, जय सिंह, दीपक कांदारी एवं रोहित लाल ने साथ दिया। जबकि मर्दल पर प्रफुल्ल मंगराज, गायन पर प्रशांत कुमार बेहरा, वायलिन पर गोपीनाथ, बांसुरी पर धीरज कुमार पाण्डे एवं मंजीरा पर प्रशांत कुमार मंगराज ने साथ दिया।
दूसरी प्रस्तुति पुणे की अमीरा पाटनकर और उनके साथियों की कथक नृत्य की रही। उन्होंने राम वंदना से अपने नृत्य का आरंभ किया। मंगलाचरण स्वरूप की गई इस रचना में सीता स्वयंवर सेतु लंघन, रावण दहन की लीला को अमीरा व साथियों ने बड़े ही सलीके से नृत्य भावों से पेश किया। अगली प्रस्तुति चतुरंग की थी। राग देश की इस रचना में तराना सरगम, साहित्य, नृत्य के बोलों का अनोखा और सुंदर समन्वय देख दर्शक मुग्ध हो गए। अमीरा ने अगली प्रस्तुति में राग पीलू में निबध्द ठुमरी - ऐसी मोरी रंगी है श्याम पर भाव नृत्य पेश किया। इसके बाद त्रिविधा में शुद्ध नृत्य के कुछ तत्व दिखाए जिनमें परमेलु और नटवरी बोलों की अनूठी बंदिशें शामिल थी। इन नृत्य रचनाओं की कोरियोग्राफी शमा भाटे की थी। जिनमें अवनि, ईशा, श्रद्धा, श्रेया, परिचिति प्रमोद व नयन ने साथ दिया। जबकि चारुदत्त फड़के ने तबला, सुमित्रा क्षीरसागर ने हारमोनियम, विनय रामदासन ने गायन और अनूप ने वायलिन पर साथ दिया।
तीसरी प्रस्तुति में बैंगलोर से आईं राजश्री होल्ला और रेखा सतीश की जोड़ी ने भी अपने कुचिपुड़ी नृत्य से खूब रंग भरे। उन्होंने बतौर मंगलाचरण गणेश वंदना से नृत्य का आगाज किया। आदत और सेत्तो नाता रागम की इस रचना में राजश्री और रेखा ने भगवान गणेश की बुद्धिमता को भावों से सब के सामने रखा। अगली प्रस्तुति में उन्होंने राग मलिका में पगी और मिस्त्र चापू ताल में निबद्ध भक्त प्रहलाद पट्टाभिषेकम की कहानी को नृत्य के जरिए पेश किया। इसमें प्रहलाद की भक्ति हिरण्यकश्यप के वध को ओजपूर्ण भावों से पेश किया गया। राजश्री और रेखा ने दुर्गा तरंगम में महिषासुर मर्दिनी की कहानी को कुचीपुड़ी शैली में अभिव्यंजक अंग संचालन से प्रदर्शित किया। राग सनमुखप्रिया और आदिताल की इस रचना के अंत में नृत्यांगनाओं ने कांस्य थाली पर नृत्य किया। राजश्री और रेखा ने राग अहीर भैरव और आदि ताल की रचना पिबारे राम रसम से राम स्तुति कर नृत्य का समापन किया। ये रचना सदाशिव भ्रमेंद्र की थी जबकि डांस कोरियोग्राफी रेखा सतीश की थी।
सभा का समापन दिल्ली से पधारीं डॉ. अनु सिन्हा और उनके साथियों के कथक नृत्य से हुआ। उन्होंने मंगलाचरण में गणेश वंदना से नृत्य का आरंभ किया। राग देश और चोटी की बंदिश - प्रथम सुमिरन श्री गणेश.... के जरिए उन्होंने भगवान गणेश की बुद्धिमता शक्ति और समृद्धि को भावों में पिरोकर पेश किया। अगली प्रस्तुति में उन्होंने जय राम रमा पर भगवान राम की महिमा को सामने रखा। भैरवी की इस रचना में प्रेम समर्पण को सलीके से उन्होंने पेश किया। अगली पेशकश शिव आराधना की थी। शंकर अति प्रचंड मालकौंस के सुरों में भीगी और चोटी में बंधी इस रचना में उन्होंने शिव के प्रति आस्था और भक्ति के भावों को बड़े ही सजीव भावों में पिरोया। नृत्य का समापन उन्होंने ठुमरी -ऐसी हठीलो छैल पर भाव नृत्य से किया। राधा कृष्ण के प्रेम को इस ठुमरी से सजीव करते हुए अनु ने रसिकों को मुग्ध कर दिया। कुछ प्रस्तुतियों में उनके साथ मुल्ले अफसर खां ने भी नृत्य किया। जबकि कोमल मिश्र, बृजेश कुमारी, श्रुति गुप्ता, अंशिका भदौरिया, अमान पांडे ने भी नृत्य में सहयोग किया।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/प्रभात
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