Navratri: मां शारदा मंदिर के कपाट बंद होते ही आती हैं आवाजें, मंदिर खुलने से पहले ही हो जाती है पूजा

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 मध्य प्रदेश के मैहर में त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। माना जाता है कि यहां मां सती का हार गिरा था तब से इसे माइहार कहा जाने लगा कुछ समय बाद मैहर कर दिया गया। इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है। करीब 1,063 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता के दर्शन होते हैं। पूरे भारत में मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है।

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इस मंदिर की मान्यता है कि यहां शाम की आरती के बाद कपाट बंद कर जब सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं, तब मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाजें आती है। कहा जाता है कि मां के भक्त आल्हा अभी भी पूजा करने के लिए आते हैं। सुबह की आरती अक्सर वे ही करते हैं। मैहर मंदिर के महंत बताते हैं कि अभी भी मां का पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं और जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा की हुई मिलती है।

Chaitra Navratri Special: मां शारदा मंदिर के कपाट बंद होते ही आती हैं आवाजें,  मंदिर खुलने से पहले ही हो जाती है पूजा - Lalluram

कौन थे आल्हा ?

आल्हा और ऊदल दोनों भाई थे। ये बुंदेलखंड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था। जिसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्‍वीराज चौहान के साथ लड़ी थी। युद्ध में चौहान हार गए थे। कहा जाता हैं कि इस युद्ध में उनका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया था। गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था।
12 वर्षों तक की थी माता की तपस्या

पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी यह आखरी लड़ाई थी। मान्यता है कि मां के परम भक्त आल्हा को मां शारदा का आशीर्वाद प्राप्त था, लिहाजा पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था। मां के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है। यहां के लोग कहते हैं कि दोनों भाइयों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। आल्हा ने यहां 12 वर्षों तक माता की तपस्या की थी। आल्हा माता को शारदा माई कहकर पुकारा करते थे इसीलिए प्रचलन में उनका नाम शारदा माई हो गया। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदिगुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी।

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नवरात्रि के दौरान लगता है विशाल मेला

चैत्र नवरात्रि के 9 दिन अलग-अलग स्वरूप में पूजा अर्चना होती है। नवरात्रि के दौरान यहां विशाल मेला भी लगता है। मान्यता है कि मां के दरबार में जो भी व्यक्ति अर्जी लगाता है, वह पूर्ण होती है। इसलिए रोजाना देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु मां के दरबार में माथा टेकने के लिए पहुंचते हैं।

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