वार्षिकी 2025 : फूलों की खेती में मध्य प्रदेश की सशक्त पहचान, देश में सिरमौर की ओर कदम
भोपाल, 29 दिसंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश ने वर्ष 2025 में पुष्प (फूल) उत्पादन के क्षेत्र में एक नई और सशक्त पहचान बनाई है। पारंपरिक फसलों से आगे बढ़कर कैश-क्रॉप की दिशा में किसानों के बढ़ते रुझान, अनुकूल जलवायु, उन्नत तकनीक और शासन के निरंतर सहयोग ने प्रदेश को देश के अग्रणी पुष्प उत्पादक राज्यों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। आज स्थिति यह है कि मध्यप्रदेश देश में फूलों के उत्पादन में तीसरे स्थान पर आ गया है और उपलब्ध आंकड़े यह संकेत दे रहे हैं कि आने वाले वर्षों में प्रदेश इस क्षेत्र में देश का सिरमौर बन सकता है।
प्रदेश में उद्यानिकी की कुल 27.71 लाख हेक्टेयर भूमि में से 42 हजार 978 हेक्टेयर क्षेत्र में फूलों की खेती की जा रही है। यह भले ही प्रतिशत में कम दिखे, लेकिन उत्पादन और आर्थिक दृष्टि से इसका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। बात पिछले साल तक के वित्तीय वर्ष की करें तो वर्ष 2024-25 में प्रदेश के किसानों ने 5 लाख 12 हजार 914 टन फूलों का उत्पादन किया है, जो अब तक का रिकॉर्ड उत्पादन है। यह उपलब्धि निश्चित ही कृषि विविधीकरण की सफल रणनीति का प्रमाण कही जा सकती है।
यदि पिछले चार वर्षों पर नजर डालें तो फूलों के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिलती है। वर्ष 2021-22 में फूलों का रकबा 37 हजार 647 हेक्टेयर था, जो बढ़कर 2024-25 में 42 हजार 976 हेक्टेयर हो गया। इसी अवधि में उत्पादन में 86 हजार 294 टन की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह स्पष्ट करता है कि प्रदेश के किसान अब कम भूमि में अधिक आय देने वाली खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।
कैश-क्रॉप अपनाने को केंद्र व राज्य सरकारें किसानों को कर रहीं प्रेरित
किसानों की आय दोगुनी करने और खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के उद्देश्य से केंद्र और राज्य सरकार लगातार किसानों को कैश-क्रॉप अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। फूलों की खेती विशेष रूप से छोटी जोत वाले किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। एक से तीन एकड़ भूमि रखने वाले किसान भी फूलों की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, क्योंकि इसमें लागत की तुलना में आय अधिक और बाजार की मांग स्थिर बनी हुई है।
आज देखने में आ रहा है कि मध्य प्रदेश में उत्पादित फूलों की मांग अब देश के महानगरों तक सीमित नहीं रही है, अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच रही है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण राज्य के गुना जिले के गुलाब हैं, जिनकी खुशबू जयपुर, दिल्ली और मुंबई के बाद अब पेरिस और लंदन तक पहुंच रही है। यह प्रदेश के लिए गर्व की बात है कि यहां के किसान वैश्विक बाजार में अपनी पहचान बना रहे हैं।
फूलों की खेती में शिक्षित युवाओं की भागीदारी भी तेजी से बढ़ी है। साथ ही गांवों में रहने वाले परंपरागत किसान भी अब नई सोच के साथ आगे आ रहे हैं। राजधानी भोपाल के समीप ग्राम पंचायत बरखेड़ा बोदर की रहने वाली श्रीमती लक्ष्मीबाई कुशवाह इसका सशक्त उदाहरण हैं। उन्होंने धान, गेहूं और सोयाबीन जैसी पारंपरिक फसलों को छोड़कर गुलाब, जरबेरा और गेंदा की खेती अपनाई और आज वे हर महीने तीन से चार लाख रुपये की आय अर्जित कर रही हैं। ऐसे अनेक उदाहरण प्रदेश में फूलों की खेती को प्रोत्साहन दे रहे हैं।
प्रदेश में प्रमुख रूप से गेंदा, गुलाब, सेवेंती, ग्लेडूलस और रजनीगंधा जैसे फूलों का उत्पादन किया जा रहा है। इसके साथ ही औषधीय पुष्पों में इसबगोल, अश्वगंधा, सफेद मूसली और कोलिक्स का भी उत्पादन हो रहा है। क्षेत्रफल की दृष्टि से गेंदा प्रदेश का प्रमुख फूल है, जिसकी खेती 24 हजार 214 हेक्टेयर में की जा रही है। दूसरे स्थान पर गुलाब (4 हजार 502 हेक्टेयर), तीसरे पर सेवेंती (1 हजार 709 हेक्टेयर), चौथे पर ग्लेडूलस (1 हजार 58 हेक्टेयर)और पांचवें स्थान पर रजनीगंधा (263 हेक्टेयर) है। इसके अलावा अन्य फूल लगभग 11 हजार 227 हेक्टेयर क्षेत्र में उगाए जा रहे हैं।
प्रदेश में फूलों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 15.01 मैट्रिक टन है, जिसे फूल उत्पादन के लिहाज से उत्कृष्ट माना जाता है। इस उच्च उत्पादकता के पीछे प्रदेश की अनुकूल जलवायु, उपजाऊ मिट्टी, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और शासन की योजनाओं का बड़ा योगदान है।
फूलों के उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता सुधार और मार्केटिंग पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश शासन का उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग इस दिशा में लगातार कार्य कर रहा है। वर्ष 2024-25 में उद्यानिकी फसलों के क्षेत्र में 14 हजार 438 हेक्टेयर का विस्तार हुआ है, जिसमें से 5 हजार 329 हेक्टेयर क्षेत्र केवल फूलों का है।
उद्यानिकी विभाग द्वारा हाइटेक नर्सरी, प्रशिक्षण कार्यक्रम और तकनीकी मार्गदर्शन के माध्यम से किसानों को आधुनिक खेती से जोड़ा जा रहा है। केंद्र सरकार के सहयोग से ग्वालियर जिले में 13 करोड़ रुपये की लागत से हाइटेक फ्लोरीकल्चर नर्सरी विकसित की जा रही है। यह नर्सरी प्रदेश में गुणवत्तायुक्त पौध उपलब्ध कराने और पुष्प उत्पादन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मील का पत्थर साबित होगी।
इन सभी प्रयासों और उपलब्धियों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि वह दिन अब दूर नहीं, जब मध्य प्रदेश फूलों के उत्पादन में देश का सिरमौर बनकर उभरेगा और अपनी खुशबू से कई देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाएगा।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

