कोलकाता में मोहन भागवत ने तीखे सवालों पर युवाओं से लेकर विदेश नीति और हिंदुत्व तक पर रखी संघ की स्पष्ट सोच

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कोलकाता में मोहन भागवत ने तीखे सवालों पर युवाओं से लेकर विदेश नीति और हिंदुत्व तक पर रखी संघ की स्पष्ट सोच


कोलकाता, 21 दिसंबर (हि.स.)।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोलकाता व्याख्यानमाला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ के दौरान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत से समाज के विशिष्ट वर्गों से आमंत्रित अतिथियों की ओर से पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए संघ की वैचारिक दिशा, सामाजिक दृष्टि और भविष्य की प्राथमिकताओं को सामने रखा। युवाओं की भूमिका, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, कूटनीति, सुरक्षा, हिंदुत्व और सामाजिक समरसता जैसे विषयों पर किए गए सवालों के जवाब उनके में संघ की मूल सोच स्पष्ट रूप से दिखाई दी।

युवाओं से जुड़े सवालों पर सरसंघचालक ने कहा कि आज की पीढ़ी सोशल मीडिया, नशे और भटकाव के प्रभाव में आ रही है, जिससे अपराध और सामाजिक विघटन बढ़ रहा है। संघ का मानना है कि युवाओं को केवल रोजगार नहीं, बल्कि चरित्र, अनुशासन और राष्ट्रबोध से जोड़ना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जब युवा अपने जीवन को केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित नहीं रखते, बल्कि समाज और देश के प्रति उत्तरदायित्व समझते हैं, तभी वे सशक्त नागरिक बनते हैं। विदेश पलायन पर उन्होंने कहा कि यदि देश में अर्थपूर्ण अवसर और सम्मानजनक कार्य संस्कृति बने, तो प्रतिभा स्वतः देश से जुड़ी रहेगी।

भारतीय शास्त्रीय संगीत, कला और संस्कृति के प्रश्न पर डॉ. भागवत ने कहा कि परंपरागत कलाएं केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज की आत्मा हैं। संघ का प्रयास है कि कलाकारों को सम्मान मिले और युवाओं में भारतीय कला के प्रति गर्व की भावना विकसित हो। इसके लिए समाज, शिक्षण संस्थानों और सांस्कृतिक मंचों के आपसी समन्वय की आवश्यकता है।

हिंदुत्व पर पूछे गए सवालों के जवाब में उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदुत्व कोई संकीर्ण धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि जीवन पद्धति है। उन्होंने कहा कि भारत की नैतिक, सामाजिक और बौद्धिक चेतना का आधार हिंदू स्वभाव रहा है। विविधता को स्वीकार करना और सबको साथ लेकर चलना ही इसकी विशेषता है। युवाओं को उपदेश से नहीं, बल्कि आचरण और उदाहरण से हिंदुत्व से जोड़ा जा सकता है।

नगरीय अव्यवस्था, स्टेशनों और सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्जे को लेकर उन्होंने कहा कि यह केवल प्रशासन की नहीं, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है। नागरिकों में स्वच्छता, अनुशासन और सार्वजनिक संपत्ति के प्रति अपनत्व का भाव जागे, तभी स्थायी समाधान संभव है।

शिक्षा और संस्कृत भाषा के प्रश्न पर सरसंघचालक ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ना समय की मांग है। विज्ञान और अध्यात्म को अलग नहीं, बल्कि पूरक मानते हुए पाठ्यक्रम विकसित होने चाहिए। इससे आत्मविश्वासी और मूल्यनिष्ठ पीढ़ी तैयार होगी।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता, तकनीक और उद्यमिता पर उन्होंने कहा कि भविष्य की तैयारी केवल कौशल तक सीमित नहीं होनी चाहिए। नैतिक मूल्य, कर्तव्यबोध और सामाजिक संवेदनशीलता के बिना तकनीकी प्रगति अधूरी है। संघ का दृष्टिकोण है कि युवा तकनीक के साथ संस्कार भी सीखें।

स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा पर डॉ. भागवत ने कहा कि उपचार सुलभ और मानवीय होना चाहिए। सेवा भाव के बिना चिकित्सा केवल व्यवसाय बनकर रह जाती है। उन्होंने सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को राष्ट्रीय आवश्यकता बताया।

विदेश नीति, पड़ोसी देशों और वैश्विक संघर्षों पर पूछे गए सवालों में उन्होंने कहा वर्तमान विदेश नीति में सुधार की नहीं बल्कि और अधिक सजगता और गति लाने की जरूरत है। रूस, यूक्रेन, इस्रायल में जो चल रहा है, उसकी चर्चा करते हुए संघ प्रमुख ने कहा- समरथ को नहीं दोष गुंसाई। जो शक्तिशाली है, उसके लिए कोई नियम नहीं। इसलिए भारत को आर्थिक समेत सब प्रकार सामर्थ्य जुटाना चाहिए। भारत को इतना आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनना होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता मांगनी न पड़े बल्कि वे स्वयं कहेंगे कि भारत को हमारा स्थायी सदस्य होना चाहिए।

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बांग्लादेश पर बोले - सीमा की स्थिति पर गंभीरता जरूरी

बांग्लादेश, अवैध घुसपैठ और बंगाल की संवेदनशील स्थिति पर उन्होंने कहा कि सीमा सुरक्षा, जनसंख्यात्मक संतुलन और सामाजिक सौहार्द पर गंभीरता से विचार आवश्यक है। समाधान केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता से भी निकलेगा। बांग्लादेश के हिन्दुओं की दुर्दशा कब समाप्त होगी, इसके लिए यही समाधान है कि वहां के जितने भी हिन्दू हैं वे संगठित रहें। भारत और दुनिया के देशों को चाहिए कि वे मर्यादा में रहकर बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा के लिए जो कर सकते हैं वह करें।

अंत में सरसंघचालक ने कहा कि संघ समाज को बांटने नहीं, जोड़ने का कार्य करता है। 100 वर्षों की यात्रा के बाद संघ का लक्ष्य और अधिक समर्पित, संस्कारित और राष्ट्रनिष्ठ समाज का निर्माण है, जिसमें विचार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन मन और उद्देश्य एक हों।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

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