नशे की समस्या को सामाजिक जागरूकता से दूर किया जा सकता है : विरेन्द्र कुमार

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नशे की समस्या को सामाजिक जागरूकता से दूर किया जा सकता है : विरेन्द्र कुमार


नशे की समस्या को सामाजिक जागरूकता से दूर किया जा सकता है : विरेन्द्र कुमार


- चिंतन शिविर 2025 का समापन, - केंद्रीय मंत्री बोले, अलग-अलग राज्यों के अधिकारियों और मंत्रियों ने समाज कल्याण से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानकारी की साझा

देहरादून, 8 अप्रैल (हि.स.)। केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा देहरादून में आयोजित चिंतन शिविर 2025 का मंगलवार को समापन हो गया। कार्यक्रम के दूसरे दिन रचनात्मक संवाद, नीतिगत सामंजस्य और जमीनी स्तर पर बदलाव पर ध्यान केंद्रित किया गया। पहले दिन के विचार-विमर्श को आगे बढ़ाते हुए आयोजन के दूसरे दिन व्यावहारिक मुद्दों का समाधान खोजने, केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और अन्य कार्यान्वयन भागीदारों के बीच सहयोग करने, अधिक कारगर शासन और गहरा असर डालने का सूत्रपात करने, समावेशिता सुनिश्चित करने और मंत्रालय के तहत विभिन्न योजनाओं और पहलों में डिलीवरी तंत्रों को सशक्त बनाने पर चर्चा की गई।

चिंतन शिविर के समापन के बाद मीडिया से बातचीत में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ विरेन्द्र कुमार ने कहा कि शिविर का उद्देश्य स्पष्ट है कि केंद्र की योजनाओं को समग्र रूप से राज्यों में लागू किया जा सके ताकि जरूरतमंदों तक उसका लाभ पहुंचे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार का नशा मुक्ति पर विशेष ध्यान है। उन्होंने कहा कि सरकार, प्रशासन व पुलिस के अलावा नशे की समस्या को सामाजिक जागरूकता से दूर किया जा सकता है। नशा उन्मूलन के लिए सरकार और प्रशासन के साथ-साथ समाज की भागीदारी अहम है।

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इस दो दिवसीय चिंतन शिविर में अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आए अधिकारियों और मंत्रियों ने अपने-अपने राज्य में समाज कल्याण से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानकारी साझा की।

सामाजिक सशक्तिकरण पर सत्र से हुई शुरुआत

आज दिन की शुरुआत सामाजिक सशक्तिकरण पर एक सत्र से हुई, जिसमें नशीले पदार्थों की मांग में कमी लाने की राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीडीडीआर) और नशा मुक्त भारत अभियान (एनएमबीए) के तहत राष्ट्रीय प्रयासों पर प्रकाश डाला गया। राज्यों ने नशीले पदार्थों के सेवन से निपटने में फील्ड-स्तरीय चुनौतियों और नवाचारों को प्रस्तुत किया, जिसमें सामुदायिक लामबंदी और जागरूकता अभियानों की भूमिका पर जोर दिया गया। इसके बाद भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों के व्यापक पुनर्वास पर चर्चा हुई, जिसमें राज्यों ने जमीनी स्तर पर व्यावहारिक मुद्दों और समाज की मुख्यधारा में एकीकृत करने की कार्यनीतियों पर सुझाव दिए।

दीनदयाल दिव्यांगजन पुनर्वास योजना (डीडीआरएस) पर भी चर्चा की गई, जिसमें भाग लेने वाले राज्यों ने सर्वश्रेष्ठ कार्य-पद्धतियां प्रस्तुत की। तकनीकी सत्र में सिंगल नोडल एजेंसी (एसएनए) पद्धतियों, सामाजिक लेखा-परीक्षा और एनआईएसडी की अगुआई में क्षमता निर्माण पहलों पर विचार-विमर्श किया गया। इस विचार-मंथन से पारदर्शिता, निगरानी और योजनाओं के कुशल कार्यान्वयन में सुधार लाने के उद्देश्य से ’’सहयोग और समन्वय के प्रति सामूहिक दृष्टिकोण प्रतिबिंबित हुआ।

शिविर में सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभागों के प्रभारी राज्य मंत्रियों ने राज्यों की ओर से 11 और दूसरे दिन 10 प्रस्तुतियां दी। मंत्रालय के चार राष्ट्रीय वित्त एवं विकास निगमों- एनएसएफडीसी, एनबीसीएफडीसी, एनडीएफडीसी और एनएसकेएफडीसी की समीक्षा से एससी, ओबीसी, दिव्यांगजनों और सफाई कर्मचारियों के बीच आय सृजन और आजीविका संवर्धन प्रयासों के बारे में जानकारी मिली। समापन सत्र में राज्यों और संघ राज्य-क्षेत्रों के मंत्रियों ने संबोधन में संघीय सहयोग की भावना को मजबूत किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pokhriyal

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