डोडा में शहीद कैप्टन थापा का तीन पीढ़ी पुराना था भारतीय सेना से रिश्ता
- आखिरी सांस तक आतंकियों से लोहा लेकर थापा ने अस्पताल में तोड़ा दम
नई दिल्ली, 16 जुलाई (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर के डोडा में आतंकवादियों के हमले में शहीद हुए सेना के कैप्टन 26 वर्षीय बृजेश थापा की तीन पीढ़ियां सेना में रह चुकी हैं। बृजेश के पिता खुद कर्नल रैंक से रिटायर हुए हैं। पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग के बड़ा गिंग बाजार के रहने वाले कैप्टन थापा आखिरी सांस तक आतंकियों से लोहा लेते रहे। आतंकी ऊंची जगह पर छिपे हुए थे और उनके नेतृत्व में सेना के जवान नीचे से ऊपर की ओर बढ़ते हुए दहशतगर्दों का मुकाबला कर रहे थे।
बृजेश थापा अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 2019 में आर्मी में कमीशंड हुए थे। दो साल के लिए उनकी तैनाती 10 राष्ट्रीय राइफल्स में हुई थी। राष्ट्रीय राइफल्स के साथ डोडा मुख्यालय से करीब तीस किलोमीटर दूर जंगल और ऊंचे पहाड़ों से घिरे देसा इलाके में आतंकियों की तलाश में सोमवार को अभियान शुरू हुआ। इसी दौरान सोमवार शाम साढ़े सात बजे के करीब आतंकियों के साथ मुठभेड़ शुरू हुई। कुछ देर की गोलीबारी के बाद आतंकियों ने भागने का प्रयास किया, लेकिन कैप्टन बृजेश थापा के नेतृत्व में जवानों ने चुनौतीपूर्ण इलाके और घने जंगल के बावजूद उनका पीछा किया।
डोडा के घने जंगल में रात करीब 9 बजे आतंकियों के साथ फिर से गोलीबारी शुरू हो गई। इसके बाद अतिरिक्त बल को भी मौके पर बुलाया गया। मानसून के सीजन में ये इलाका धुंध से घिरा रहता है। इस चुनौती के साथ सेना के बहादुर जवान आतंकियों से लोहा लेते रहे। दरअसल, आतंकी ऊंची जगह पर छिपे हुए थे, इसलिए सेना के जवान नीचे से ऊपर की ओर बढ़ते हुए दहशतगर्दों का मुकाबला कर रहे थे। इसी दौरान कैप्टन बृजेश थापा, नायक डी राजेश, सिपाही बिजेंद्र और सिपाही अजय सिंह आतंकियों की गोली से घायल हो गए। इन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन सभी ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
बहादुर सैन्य अधिकारी थापा के शहीद होने की खबर जब उसके घर पर पहुंची तो दार्जिलिंग की पहाड़ियों में शोक की लहर दौड़ गई।कैप्टन बृजेश थापा की मां निलिमा थापा ने कहा कि 15 जनवरी को मेरे बेटे का जन्मदिन था। 15 जनवरी को ही आर्मी डे होता है। मेरा बेटा आर्मी की ड्यूटी करते हुए देश के लिए समर्पित हो गया। सेना में होने का उसको गर्व था। वह सेना को पसंद करता था। उसके पापा ने बोला था कि नेवी में चला जा, आर्मी में बहुत कठिन होता है, लेकिन उसे आर्मी में ही जाना था।
बेटे के साथ हुई आखिरी मुलाकात को याद करते हुए निलिमा थापा ने कहा कि बृजेश मार्च में घर आया था और फिर इसी महीने आने वाला था। वह हमेशा खुश रहता था। रविवार को उससे अंतिम बार बात हुई थी। सरकार हमेशा आतंकवाद रोकने की कोशिश करती है और जवान भी कभी नहीं डरते हैं, क्योंकि ये उनकी ड्यूटी का हिस्सा है। नीलिमा थापा ने कहा कि ब्रजेश बहुत ही सभ्य थे। वह हमेशा भारतीय सेना में शामिल होना चाहते थे। मुझे बहुत गर्व है कि उनके बेटे ने देश के लिए अपना बलिदान दिया और सरकार आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी।
हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत निगम
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