ममता ने अपने दम पर बंगाल के किले पर फतह बरकरार रखी, काम नहीं आई भाजपा की रणनीति

ममता ने अपने दम पर बंगाल के किले पर फतह बरकरार रखी, काम नहीं आई भाजपा की रणनीति
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ममता ने अपने दम पर बंगाल के किले पर फतह बरकरार रखी, काम नहीं आई भाजपा की रणनीति


कोलकाता, 05 जून (हि.स.)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर अपने मंझे हुए राजनीतिक अनुभव को लोकसभा चुनाव में साबित किया है। उन्होंने न केवल भाजपा के सपने को चकनाचूर किया, बल्कि अपने बलबूते बिना किसी सहयोगी दल के बंगाल के किले पर फतह बरकरार रखी है।

तृणमूल ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 29 पर जीत हासिल की है। पार्टी ने भाजपा को पिछली बार की 18 सीटों से पीछे धकेल कर उसे 12 तक ही सीमित कर दिया। भाजपा को 39 प्रतिशत से भी कम वोट मिले। हालांकि, दीदी ने जीत का श्रेय राज्य की जनता को दिया और चुनावी नतीजों को बंगाल के विरोधियों को जनता का ठेंगा करार दिया, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि ममता का राजनीतिक करिश्मा उनके समर्थकों के विश्वास को बनाए रखने में कहीं अधिक काम आया।

बनर्जी अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता के अलावा जिस कारण से जीत को बरकरार रखने में कामयाब रहीं, वह है लाभार्थी राजनीति। इसे उन्होंने राज्य में अपने कार्यकाल के दौरान सक्रिय रूप से अपनाया। इसने विपक्ष के बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों और सत्ता-विरोधी ज्वार को कम कर दिया। लक्ष्मी भंडार और कन्याश्री जैसी योजनाओं के लाभार्थियों ने भी बनर्जी को बड़े पैमाने पर समर्थन दिया।

उन्होंने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि तृणमूल प्रमुख के कई नेता जेल में हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियां उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी सहित कई अन्य लोगों पर शिकंजा कस रही हैं। केंद्रीय कोष पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जिससे राज्य की कल्याणकारी योजनाएं कथित तौर पर पटरी से उतर गई हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने खुले तौर पर पीड़ित कार्ड खेला और बाहरी लोगों से राज्य के लोगों की रक्षक के रूप में अपनी छवि को बढ़ावा दिया।

उन्हें शायद 2021 के राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा के जबरदस्त प्रभाव का सफलतापूर्वक प्रतिरोध करने के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाएगा, क्योंकि इस चुनाव में भाजपा ने अभूतपूर्व प्रचार अभियान चलाकर अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। चुनावी रणनीतियों के कारण तृणमूल 215 सीटों पर पहुंच गई और भाजपा को उसने 77 सीटों तक सीमित कर दिया।

हालांकि, भाजपा अपनी पिछली तीन सीटों की संख्या से कई गुना अधिक सीटें हासिल करने में सफल रही और उसने विधानसभा में एकमात्र विपक्ष के रूप में खुद को स्थापित किया, लेकिन राज्य में भाजपा की राजनीतिक आकांक्षाओं को करारा झटका देने का श्रेय बनर्जी और अभिषेक को दिया गया। मौजूदा लोकसभा चुनाव में ममता ने अपने बलबूते पर पश्चिम बंगाल में अपने सबसे मजबूत किले पर पकड़ बरकरार रखी है।

हिन्दुस्थान समाचार/ओम प्रकाश/गंगा/सुनीत

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