मप्र को इस बार फिर मिलेगा कृषि कर्मण अवार्ड, गेहूं की बंपर होगी पैदावार
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भोपाल, 24 नवंबर (हि.स.)। गेहूं उपार्जन के मामले में कभी जुबान पर पंजाब और हरियाणा का नाम रहता था, लेकिन मध्यप्रदेश ने एक बार इसमें लीड लिया तो यह जैसे राज्य की परम्परा ही बन गया, अब लगातार मप्र गेहूं पैदा करने में देश का नंबर एक राज्य बनकर सामने आया है। हालांकि इस बार कुछ कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मध्यप्रदेश में गेहूं की पैदावार कम रहेगी, लू की चपेट में आ जाने के कारण बड़ा नुकसान किसानों को उठाना होगा और मौसम के पड़ने वाले प्रभाव के चलते इससे बचने का कोई रास्ता नजर नहीं आता।
कृषि विशेषज्ञों को डर है कि चालू रबी सीजन में गेहूं की बुआई में देरी चिंता का कारण है क्योंकि इससे फसल को लू जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ेगा, जिससे गेहूं की उत्पादकता और गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। पिछले दो वर्षों में भीषण गर्मी के कारण मुख्य खाद्यान्न उत्पादन पर गंभीर असर पड़ा है। इस बार भी गेहूं की बुआई में देरी से फसल को लू का खतरा बढ़ गया है। विशेषज्ञों का तर्क है कि अक्टूबर के तीसरे सप्ताह तक मानसून के फैलने से धान की कटाई और गेहूं की बुआई में देरी हुई। पूर्वी भारत में धान की कटाई अभी शुरू नहीं हुई है। गेहूं का रकबा पिछले वर्ष की तुलना में पांच प्रतिशत कम 86.02 लाख हेक्टेयर है, जबकि पिछले वर्ष यह 91.02 लाख हेक्टेयर था। वहीं, अल नीनो की घटना पिछले वर्ष ताकत के साथ घटी, जो गेहूं की फसलों के लिए प्रतिकूल रही।
मप्र के किसानों के लिए चिंता की बात नहीं, मेहनत रंग लाएगी
इन वैज्ञानिकों का तर्क है कि सर्दियों की फसल गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। यही कारण है कि फरवरी-मार्च का मध्यम तापमान गेहूं को फसल में तब्दील करने का कारण बनता है और मध्यप्रदेश में गेहूं मार्च के अंत तक कटाई के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए स्वभाविक है, गेहूं का रकबा पहले की तुलना में बहुत घट जाएगा। लेकिन इन वैज्ञानिक तथ्यों को वैज्ञानिकों का एक वर्ग जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर पहुंचना बता रहा है। इनका कहना है, मप्र के किसानों के लिए कोई चिंता की बात नहीं, उनकी मेहनत रंग लाएगी। राज्य लगातार कृषि क्षेत्र में रिकार्ड कायम कर रहा है।
देरी तक टिकने वाली यह ठंड गेहूं के लिए फायदेमंद
मप्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतीश परसाई ने विशेष बातचीत में बताया कि मौसम लगातार बदल रहा है, समय चक्र में इसका बड़ा प्रभाव हमारी फसलों पर भी हुआ है, अब नवम्बर-दिसम्बर के बजाय फरवरी अंत तक ठंड रहती है। देरी से बुआई होगी। लेकिन देरी तक टिकने वाली यह ठंड गेहूं के लिए फायदेमंद साबित होगी। इस बार बाद में जो वर्षा हुई और नदी-नाले उफान पर रहे, उसका असर गेहूं उपज पर फायदे का है। पूरे वर्ष भर का ऋतु चक्र उठाकर आप देख लें, पिछले कुछ वर्षों से यह अपने सही समय से शुरू न होकर देरी से चल रहा है, जिसका सीधा प्रभाव फसलों पर होता दिखा है।
खेत में जितने अधिक टिलर उतनी अधिक होगी पैदावार
इस संदर्भ में कृषि वैज्ञानिक नरेंद्र कुमार तांबे का कहना है कि बीज की मात्रा जो प्रति एकड़ 40 किलो होना चाहिए, इसे अधिक पैदावार के लालच में किसान ज्यादा बढ़ा कर 80 किलो तक डाल देता है, ऐसा वे न करें। क्योंकि गेहूं की बालियों को फुटान और फोटोसिंथेसिस की क्रिया के लिए भी पर्याप्त जगह चाहिए, जब ये नहीं होता तो फसल नीचे से पीली पड़ जाती है और किसान को लगता है कि उसकी फसल खराब हो गई । किसान समझ लें कि यदि टिलर की संख्या 25 प्रति वर्ग फुट से कम होगी तभी उपज क्षमता कम होती है।
उन्होंने कहा कि टिलर अतिरिक्त तने होते हैं जो पौधे की मुख्य शाखा से विकसित होते हैं। प्राथमिक टिलर मुख्य तने की पहली चार या अधिक पत्तियों की धुरी में बनते हैं। यदि परिस्थितियाँ टिलर के विकास के अनुकूल हों तो प्राथमिक टिलर के आधार से द्वितीयक टिलर विकसित हो जाते हैं। टिलर विशेष रूप से पतझड़ में विकसित होते हैं। प्रति एकड़ गेहूं में ये कल्ले जितने अधिक निकलते हैं, गेहूं की पैदावार उतनी अधिक होती है।
अच्छी पैदावार के लिए किसान करें डीबीडब्ल्यू 187 और डीबीडब्ल्यू 303 बीज का इस्तेमाल
वैज्ञानिक तांबे ने बताया कि गेहूं की फसल में एक एकड़ में एक बोरी डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) खाद जो 50 किलो तक है दी जानी चाहिए। छारीय प्रकृति वाला यह रासायनिक उर्वरक पौधों के अंदर नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को दूर करता है। क्योंकि इस खाद में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 परसेंट फास्फोरस है । यह पौधों की कोशिकाओं के विभाजन में बहुत अच्छा काम करता है। भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक ज्ञानेंद्र पी सिंह भी मप्र के वैज्ञानिकों के तर्क से सहमत नजर आ रहे हैं, इनका भी मानना है कि गर्मी सहन करने वाली गेहूं की दो बीज किस्में डीबीडब्ल्यू 187 और डीबीडब्ल्यू 303 आज हमारे पास पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। जोकि लू के किसी भी प्रभाव को बेअसर कर देने में सक्षम है।
लगातार सात बार मिला है मप्र को कृषि कर्मण अवार्ड
उल्लेखनीय है कि मप्र को गेहू में बंपर पैदावार के चलते लम्बे समय से कृषि कर्मण अवार्ड मिल रहा है। भारत सरकार द्वारा लगातार सातवीं बार यह पुरस्कार मप्र को पिछले साल मिला है। इतना ही नहीं तो प्रदेश को कृषि अधोसंरचना निधि का सबसे अधिक उपयोग किए जाने के कारण बेस्ट परफॉर्मिंग स्टेट का पुरस्कार, बेस्ट इमंर्जिंग स्टेट का पुरस्कार और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में एक्सीलेंस पुरस्कार मिला है। मध्य प्रदेश ने सतत एक दशक से 18 प्रतिशत की कृषि विकास दर हासिल कर रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार/ मयंक/संजीव
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