मंदिरों पर बनाई गयी मस्जिदों को स्वयं तोड़ें मुसलमान: उदयराजे होलकर

WhatsApp Channel Join Now
मंदिरों पर बनाई गयी मस्जिदों को स्वयं तोड़ें मुसलमान: उदयराजे होलकर


लोकमाता के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वर्षभर होंगे विभिन्न कार्यक्रम

लखनऊ, 26 दिसंबर (हि.स.)। आक्रांताओं द्वारा नष्ट-भ्रष्ट किए गए मंदिरों का जीर्णोद्धार इस देश की शांति के लिए परम आवश्यक है। इसलिए देशभर में मंदिरों को ध्वस्त कर बनायी गई मस्जिदों को मुस्लिमों को स्वयं तोड़ देना चाहिए। देश में विकास को लेकर सकारात्मक वातावरण है और इस नाते जहां भी कोई विधर्मी आक्रांताओं द्वारा मंदिरों को ध्वस्त किया गया है और उस पर खुद की मान्यता के अनुसार पूजा स्थल बना लिए, उस भयंकर गलती के परिमार्जन के लिए उनके मजहबी नेताओं को आगे आकर उन स्थलों को स्वयं हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। इसी से देश में स्वस्थ वातावरण बनेगा, जो विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह बातें अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह समिति के कार्यकारी अध्यक्ष एवं अहिल्याबाई होलकर के वंशज उदयराजे होलकर ने कही।

उदयराजे होलकर से हिन्दुस्थान समाचार ने अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह समिति के उद्देश्य एवं वर्षभर होने वाले कार्यक्रमों समेत कई बिंदुओं पर बातचीत की। उदयराजे ने बताया कि अहिल्यादेवी होलकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सारा देश परिचित हो इस उद्देश्य से अखिल भारतीय स्तर पर लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह समिति का गठन किया गया है। समिति में देशभर के प्रख्यात कलाकार, वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद, साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। समिति की ओर से लोकमाता के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वर्षभर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे।

उदयराजे होलकर ने बताया​ कि समिति द्वारा वर्षभर में अनेक कार्यशालाएं, सेमिनार तथा सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। यह आयोजन देश के प्रमुख महानगरों एवं विश्वविद्यालयों में संपन्न होंगे। देवी अहिल्याबाई ने देशभर के 100 से अधिक तीर्थस्थानों पर धर्मशालाएं, बावड़ी, अन्न क्षेत्र आदि के निर्माण करवाए थे, उन स्थानों पर भी विशेष आयोजन किए जाएंगे। इंदौर, लखनऊ व वाराणसी जैसे महानगरों में बड़े कार्यक्रम संपन्न भी हो चुके हैं। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में लोकमाता के साहित्य का प्रकाशन भी किया जाएगा। लोकमाता के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के साथ तीर्थ स्थलों के चित्रों सहित एक कॉफ़ी टेबल बुक का भी प्रकाशन होगा। ललित कलाओं जैसे संगीत, नाटक, चित्रकला आदि के माध्यम से देवी अहिल्याबाई के जीवन को जन-जन तक पहुंचाया जाएगा।

उन्होंने बताया कि अखंड भारत एवं सनातन अहिल्याबाई के चिंतन में समाया था। वह दिन-रात आने वाली पीढ़ियों और भारत वर्ष के भविष्य के चिंतन में लगी रहती थीं। राष्ट्र और संस्कृति को क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर मानती थीं। अहिल्याबाई ने महेश्वर राज्य की सीमा को लांंघते हुए पूरे देश में सनातन धर्म के लिए काम किया। देवी अहिल्याबाई ने देशभर के शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। बद्रीनाथ से रामेश्वरम तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त मंदिरों का उन्होंने पुनर्निर्माण करवाया।

सामाजिक समरसता के आधार पर शासन किया

उदयराजे होलकर ने बताया कि अहिल्याबाई के जीवन के असंख्य पहलू हैं। त्रिशताब्दी समारोह समिति लोकमाता की अखिल भारतीय दृष्टि, सामाजिक समरसता का भाव, कुशल प्रशासक व महिला सशक्तीकरण जैसे बिंदुओं पर अधिक फोकस करेगी। उनके जीवन में समरसता का भाव था। महेश्वर में प्रतिदिन 300 लोगों की पंगत बैठती थी। उसमें राजपरिवार से लेकर सेना के सरदार व स्वच्छताकर्मियों से लेकर सब शामिल होते थे। वह सबको मां समान लगती थी। इसलिए सभी उनको मातोश्री के संबोधन से पुकारते थे। सामाजिक समरसता का श्रेष्ठ उदाहरण उन्होंने अपने जीवन में प्रस्तुत किया। उन्होंने अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहित किया। न्याय प्रियता का धर्म उन्होंने अपने जीवन के अंतिम श्वास तक निभाया। उनके शासन में बिना भेदभाव के सबको न्याय मिलता था। गलती करने पर राजवंश के सदस्य को भी वह दंडित करती थीं। उन्होंने अपने पति को आर्थिक कदाचार के लिए दंडित किया था। इसी कारण जन साधारण उन्हें देवी मानने लगा था। उस समय न्यायालय बहुत कम थे। होलकर राज्य में न्यायालयों की शुरुआत अहिल्याबाई के समय में ही हुई। उनकी डाक व्यवस्था में सुदृढ़ थी।

महिला सशक्तीकरण

देवी अहिल्याबाई ने महिलाओं को आगे लाने व स्वावलंबी बनाने का महत्वपूर्ण काम किया। उन्हें समाज में उचित स्थान दिलाया। उनके मान सम्मान का ध्यान रखा। अपने शासनकाल में उन्होंने नदियों पर जो स्नान घाट बनवाए उनमें महिलाओं के लिए स्नान की अलग व्यवस्था की। विधवा महिलाओं को अपने पति की संपत्ति लेने का अधिकार दिया। महिलाओं को युद्ध कौशल सिखाए और महिला सेना का गठन किया। वे स्वयं भी रणक्षेत्र में जाया करती थीं। जब समाज में फैली कुरीतियों के विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठाता था उस समय अहिल्याबाई ने सती प्रथा का विरोध किया।

------------

हिन्दुस्थान समाचार / बृजनंदन

Share this story