श्रवण, मनन और निदिध्यासन वेदांत को जानने का सबसे अच्छा मार्गः स्वामी सर्वप्रियानन्द
-एकात्म संवाद में स्वामी जी ने वेदांत पर शंकर दूतों के प्रश्नों का दिया जवाब
इंदौर, 28 फरवरी (हि.स.)। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि वेदांत का तात्पर्य दो चीजों से है, पहला हमारे अंदर का देवत्व और दूसरा ब्रहमांड की एकात्मकता। आप जीवन के प्रत्येक क्षण में खुद को वेदांत से जुड़ा हुआ पा सकते हैं। वेदांत का कहना है कि आपके पास असीमित चेतना है, जिसे आप महसूस कर सकते हैं। वेदांत को जानने के कई मार्ग हैं किंतु मुख्यत: दो हैं- मानों या जानों। पश्चिमी सहित अन्य देशों में मानने का मार्ग है। लेकिन वेदांत का संबंध मुख्यत: दूसरे मार्ग से है। पश्चिमी देशों में 'रिलीजन इज फेथ' लेकिन वेदांत में 'रिलीजन इज रियलाइजेशन'। वेदांत जो कुछ भी कहता है वो कोई थ्योरी नहीं है, बल्कि वह अभी और तत्क्षण से संबंध रखता है। श्रवण, मनन और निदिध्यासन वेदांत को जानने का सबसे अच्छा मार्ग है। यह विचार बुधवार को न्यूयॉर्क वेदांत सोसाइटी के रेसीडेंट मिनिस्टर स्वामी सर्वप्रियानन्द ने अद्वैत वेदांत की जिज्ञासा को लेकर पूछे गए प्रश्नों के जवाब देते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने वैश्विक अध्यात्मिकता को वेदांत के रूप में देखा है। उपनिषद् स्वयं में वेदांत है, लेकिन हमारे यहां बहुत से वैचारिक विद्यालय हैं, जिन्होंने वेदांत को प्रचारित और प्रसारित करने का कार्य किया। अद्वैत वेदांत उन्हीं विद्यालयों में से एक है। हमने रामानुजाचार्य और मद्धवाचार्य के बारे में काफी सुना है, जो ऐसे ही वैचारिक विद्यालयों से आते हैं। श्रीमद भगवद् गीता वेदांत का सबसे बड़ा ग्रंथ है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अद्वैत वेदांत को भारतीय दर्शन का सबसे सुंदर पुष्प माना है। हमारी गृह परंपरा में अद्वैत वेदांत है जो रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद जैसे विद्वानों द्वारा प्रचारित किया गया।
मध्य प्रदेश शंकर न्यास द्वारा बुधवार को भोपाल के भारत भवन में वेदांत के सूक्ष्म ज्ञान की दृष्टि से एकात्म संवाद का आयोजन किया गया, जिसमें प्रसिद्ध ओटीटी प्लेटफार्म 'प्राच्यम' के संस्थापक प्रवीण चतुर्वेदी की मध्यस्थता में प्रख्यात वेदांत वक्ता स्वामी सर्वप्रियानन्द ने अद्वैत की सूक्ष्मता और व्यापकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विभिन्न संतों के साथ भोपाल के ब्यूरोक्रेट, उद्यमी, समाजसेवी, अकेडमिक आदि जगत के प्रसिद्ध प्रबुद्धजनों तथा बड़ी संख्या में शंकर दूत उपस्थित रहे, जिनकी अद्वैत वेदांत की जिज्ञासा को लेकर पूछे गए प्रश्नों का स्वामी सर्वप्रियानन्द ने समाधान किया। इस दौरान मप्र संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला ने मंचस्थ अतिथियों का स्वागत किया तथा भारत भवन के न्यासी विजय मनोहर तिवारी ने अभिनंदन वक्तव्य दिया। कार्यक्रम का संचालन एकात्म धाम प्रोजेक्ट की सहायक कार्यक्रम अधिकारी स्मृति शर्मा ने किया।
पश्चिमी देशों में 'रिलीजन इज फेथ', वेदांत में 'रिलीजन इज रियलाइजेशनः स्वामी सर्वप्रियानन्द
वेदांत की गहनता और व्यापकता के आधार पर एकात्म संवाद का यह आयोजन चार चरणों में सम्पन्न हुआ। प्रत्येक सत्र के प्रारंभ में संयोजक प्रवीण चतुर्वेदी ने स्वामी सर्वप्रियानन्द से वेदांत आधारित प्रश्न किए तथा अंत में उपस्थित प्रबुद्धजनों ने भी स्वामी सर्वप्रियानन्द के समक्ष अपनी शंका प्रकट की, जिसका उन्होंने वेदों की व्याख्या के आधार पर समाधान किया।
एकात्म की दृष्टि बताते हुए स्वामी सर्वप्रियानन्द ने कहा कि वेदांत बहुत अधिक व्यापक है, जिसकी व्याख्या शब्दों में वर्णित नहीं की जा सकती। लेकिन यदि वेदांत को सरल भाषा में समझे तो ब्रह्म सत्यं-जगत मिथ्या यही वेदांत है। वेदों के ब्रह्म वाक्य- अहम् बृह्मास्मि, तत्व त्वम् असि आदि या ओम् मात्र ही स्वयं में संपूर्ण वेदांत हैं। यहाँ तक कि मौन को भी वेदांत की ही परिभाषा माना गया है। वेदांत ही उपनिषद् है और उपनिषद् आध्यात्मिक विज्ञान है। यह तर्क और संदर्भों पर आधारित है। जब हम उपनिषद् को पढ़ते हैं तो ये हमसे ही प्रश्न करता है कि हम कौन और क्या हैं। उपनिषदों का अध्ययन हमारे व्यवहार का अध्ययन है। यह उपनिषद् ही है जो हमारे जीवन के पवित्रतम भाग का हमसे परिचय करवाता है।
स्वामी सर्वप्रियानन्द ने कहा कि यदि आप एक बार इस अद्वैत वेदांत का रसास्वादन कर लिया तो ये आपके लिए कीमती रत्न के समान है। मैंने विश्व भर के दर्शनों का अध्ययन किया है लेकिन उनमें से कोई भी अद्वैत वेदांत के आस-पास भी नजर नहीं आता है। यदि आप इसको अपनाते हैं तो न केवल मोक्ष बल्कि प्रतिदिन आपको इसका लाभ प्राप्त होगा। ये आपको शक्ति देता है सभी कठिनाइयों का सामना करने के साथ ही ये आपके सबसे कठिन प्रश्न का सबसे गहरा उत्तर देता है। वेदांत का प्रयोग करके आधुनिक समय की समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। हम अद्वैत वेदांत के प्रणेता शंकराचार्य के समय में वापस नहीं जा सकते, हम वैदिक युग में वापस नहीं जा सकते मगर उनकी विरासत को तो आगे ले जा सकते हैं।
आगामी 12 महीनों में 11 अद्वैत शिविर आयोजित करेगा न्यास
मध्यप्रदेश के शंकर न्यास द्वारा 2020 के बाद से ही निश्चित अवधि में अद्वैत जागरण हेतु शिविरों का आयोजन किया जाता है। इन शिविरों में न्यास द्वारा चयनित युवा सात दिन आश्रमचर्या का पालन करते हुए वेदांत के प्रख्यात सन्यासियों के सानिध्य में आत्मबोध और तत्वबोध का अध्ययन करते हैं। जिसे पूर्ण करने वाले युवाओं को न्यास द्वारा शंकर दूत की उपाधि दी जाती है। अद्वैत जागरण हेतु प्रथम शिविर ब्रह्मलीन स्वामी संवित सोमगिरी के सानिध्य में माउंट आबू में सम्पन्न हुआ था, जिसमें प्रदेश के चयनित 25 युवाओं ने सहभागिता की थी। इसके बाद से निरंतरता के साथ शिविर जाने वाले युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। बढ़ती संख्या को देखते हुए साल 2024 में 11 शिविरों के माध्यम से युवाओं को एकात्म दर्शन कराया जाएगा। इन शिविरों के माध्यम से अब तक 350 से अधिक शंकर दूतों का दीक्षांत हो चुका है।
हिन्दुस्थान समाचार/मुकेश/आकाश
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