नड्डा ने बोले, पहले उदासीन भरा था राजनीति का रवैया, नेता ये तय नहीं कर पाए- मानवता जरूरी है या राजनीति
- आजादी से लेकर अमृत काल तक की राजनीति का रवैया बताया, बोले- मोदी ने बदल दी परिभाषा
- भाजपा के पक्ष में मांगा समर्थन, देवभूमि पर पंच कमल खिलाने के लिए दिया जीत का मंत्र
देहरादून, 15 अप्रैल (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और स्टार प्रचारक जगत प्रकाश नड्डा ने आजादी से लेकर अमृत काल तक की राजनीति का रवैया बताया। उन्होंने कहा कि पहले लोग ये तय नहीं कर पाए कि अर्थ जरूरी है, अर्थशास्त्र जरूरी है या मानवता जरूरी है। जापान, आस्ट्रेलिया, रूस कोई देश के नेता ये तय नहीं कर पाए कि मानवता जरूरी है या राजनीति। वे सोमवार को टिहरी लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत मसूरी के गांधी चौक पर आयोजित विजय संकल्प जनसभा में बोल रहे थे।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि 10 वर्ष पहले राजनीति का रवैया उदासीन भरा था, लेकिन मोदी ने राजनीति की परिभाषा, संस्कृति, चाल-ढाल, तौर-तरीका और राजनीतिक दृष्टि से संकल्प की परिभाषा बदल दी है। आज मोदी सरकार विकसित भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है।
विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने का चुनाव है लोस चुनाव-
मसूरी के गांधी चौक पर विजय संकल्प जनसभा में भाजपा उम्मीदवार माला राज्यलक्ष्मी शाह के समर्थन में लोगों से जनसमर्थन मांगा और देवभूमि पर पंच कमल खिलाने के लिए जीत का मंत्र दिया। उन्हाेंने कहा कि ये चुनाव की बेला है और यह चुनाव मोदी के नेतृत्व में विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने का चुनाव है।
कोरोना के समय लोगों ने देखा नेतृत्व का असर-
नड्डा ने कहा कि पहले कोई दवा आने में वर्षों नहीं शताब्दी लगते थे, लेकिन नेतृत्व का क्या असर होता है ये लोगों ने कोरोना के समय देख लिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना काल के दौरान केवल नौ माह के भीतर भारत को लड़ने के लिए तैयार किया और वैज्ञानिकों के सहयोग से वैक्सीन तैयार करवाई।
ये है बदलता भारत-
कोरोना काल का जिक्र करते हुए नड्डा ने कहा कि तमाम देश जूझते रहे, लेकिन मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने सख्त फैसला लिया और सख्ती से लॉकडाउन लगाया। दो महीने के अंदर देश को काेरोना से लड़ने के लिए तैयार किया। उस समय लोग कहते थे, जान है तो जहान है। जब हम तैयार हो गए लड़ने के लिए तो मोदी ने कहा कि जान भी है और जहान भी है। ये बदलता भारत है।
हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/रामानुज
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