कांवड़ रूट पर दुकानदारों की पहचान जाहिर करने के खिलाफ जमीअत उलमा जाएगी सुप्रीम कोर्ट

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कांवड़ रूट पर दुकानदारों की पहचान जाहिर करने के खिलाफ जमीअत उलमा जाएगी सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली, 20 जुलाई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा के रास्ते में दुकानदारों की पहचान जाहिर करने के आदेश के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रही है। जमीअत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि कल कानूनी विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई गई है जिसमें इस आदेश के सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के जरिए कांवड़ यात्रा के रूट पर धार्मिक पहचान स्पष्ट करने वाला आदेश धर्म की आड़ में राजनीति करने का नया खेल है। यह एक भेदभावपूर्ण और साम्प्रदायिक फैसला है। इस फैसले से देश विरोधी तत्वों को लाभ उठाने का अवसर मिलेगा और इस नए आदेश के कारण साम्प्रदायिक सौहार्द्र को गम्भीर क्षति पहुंचने की आशंका है, जिससे संविधान में दिए गए नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है।

मौलाना ने कहा कि पहले मुजफ़्फ़रनगर प्रशासन की ओर से इस प्रकार का आदेश जारी हुआ लेकिन अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का आधिकारिक आदेश सामने आ गया है, जिसमें केवल मुजफ़्फ़रनगर और इसके आसपास ही नहीं बल्कि कांवड़ यात्रा के रास्ते में जितने भी फल-सब्जी विक्रेता, ढाबों और होटलों के मालिक हैं, सबको कहा गया है कि वह अपने नाम का कार्ड अपनी दुकान, ढाबा या होटल पर चिपकाएं। मौलाना मदनी ने कहा कि अब तक हमारे पास ऐसी सूचनाएं पहुंची हैं कि बहुत से ढाबों और होटलों के मैनेजर या मालिक जो मुसलमान थे, कांवड़ यात्रा के दौरान उन्हें काम पर आने से मना कर दिया गया है। ज़ाहिर है कि सरकारी आदेश के उल्लंघन का साहस कौन कर सकता है।

मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि देश के सभी नागरिकों को संविधान में इस बात की पूरी आजादी दी गई है कि वह जो चाहें पहनें, जो चाहें खाएं, उनकी व्यक्तिगत पसंद में कोई बाधा नहीं डालेगा, क्योंकि यह नागरिकों के मूल अधिकारों का मामला है। संविधान में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि देश के किसी नागरिक के साथ उसके धर्म, रंग और जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा और हर नागरिक के साथ समान व्यवहार किया जाएगा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से शासन-प्रशासन का जो व्यवहार सामने आया है, उसमें धर्म के आधार पर भेदभाव आम बात हो गई है, बल्कि अब ऐसा लगता है कि शासकों का आदेश ही संविधान है।

मौलाना मदनी ने कहा कि यह कितनी दुखद बात है कि सरकार गठन के समय संविधान के नाम पर शपथ ली जाती है परन्तु शपथ लेने के बाद उसी संविधान को किनारे रख दिया जाता है। उन्होंने कहा कि हम सभी धर्मों का आदर करते हैं और दुनिया का कोई धर्म यह नहीं कहता कि आप दूसरे धर्म के मानने वालों से नफ़रत करें। यह कोई पहली कांवड़ यात्रा नहीं है, लंबे समय से यह यात्रा निकलती आ रही है लेकिन पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी नागरिक को अपनी धार्मिक पहचान बताने के लिए विवश किया गया हो, बल्कि यात्रा के दौरान आम तौर पर देखा गया है कि मुसलमान जगह-जगह कांवड़ यात्रियों के लिए पानी और लंगर का आयाजन करते आए हैं। मौलाना मदनी ने कहा कि यह पहली बार है कि इस प्रकार का आदेश जारी करके एक विशेष समुदाय को अलग-थलग करने के साथ साथ नागरिकों के बीच भेदभाव और नफ़रत फैलाने का जानबूझकर प्रयास किया गया है।

हिन्दुस्थान समाचार/मोहम्मद ओवैस

हिन्दुस्थान समाचार / मोहम्मद शहजाद

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