फलाहरी के लिए आप जो साबूदाना लाए हैं, कहीं वो नकली तो नहीं? तो ऐसे करें असली-नकली की पहचान
नवरात्रि व्रत में भक्त साबूदाना खाना पसंद करते हैं। लेकिन, आप जानते हैं कि फलाहारी कहे जाने वाला साबूदाना किससे बनता है? साबूदाना नकली भी हो सकता है? बाजार में दोनों प्रकार के साबूदाना बिक रहे हैं। इनकी असली-नकली की पहचान कर पाना मुश्किल है। मगर, नामुमकिन नहीं. कुछ ट्रिक हैं, जिनके जरिए आप नकली साबूदाने को एक्सपोज कर सकते हैं। आइए जानते हैं वो ट्रिक-
1-सबसे आसान ट्रिक है, इसे चबाकर देखें। अगर साबूदाना खाने में किरकिरा लग रहा है तो वो नकली साबूदाना है। जो साबूदाना दातों में चिपक रहा है वह साबूदाना असली है। दुकान में रखे साबूदाने के बोरे से एक दाना चबाकर देखना कोई मुश्किल नहीं।
2- असली साबूदाना पानी में भिगोने पर फूल जाता है। पानी लसलसा हो जाता। वहीं नकली साबूदाना काफी देर तक पानी में रहने के बावजूद भी नहीं फूलता है।
3- आप असली साबूदाने को जलाते हैं तो उसमें से साबूदाने की खुशबू आती है। वह राख नहीं छोड़ता। वहीं नकली साबूदाना को जलाने पर उसकी राख बनती है। धुआं निकलता है।
4- नकली साबूदाने को व्हाइट एजेंट्स को डालकर चमकदार बनाया जाता है। चमकदार साबूदान कतई न खरीदें।
ऐसे बनता है साबूदाना
भारत में टैपिओका स्टार्च से साबूदाना बनाया जाता है। कसावा नामक कंद का इस्तेमाल टैपिओका स्टार्च के लिए किया जाता है, जो शकरकंद जैसा होता है। साबूदाना में कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें कैल्शियम भी भरपूर होता है।
नकली साबूदाना को खाने से होने वाले नुकसान को जानें
नकली साबूदाना बनाने के लिए कई कैमिकल्स, ब्लीचिंग एजेंट्स, फॉस्फोरिक एसिड और सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल होता है। इसे सफेद बनाने, चमकाने के लिए आर्टिफिशियल व्हाइटनिंग एजेंट्स मिलाए जाते हैं। हम नकली साबूदाना खाते हैं तो इससे हमारे लिवर और किडनी के साथ शरीर के दूसरे अंगों को नुकसान पहुंचता है।
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