औद्योगिक बेड़ों को हिंद महासागर में टूना मछली पकड़ने की अनुमति ने वैश्विक चिंता बढ़ाई: परषोत्तम रुपाला
नई दिल्ली, 4 दिसंबर (हि.स.)। टूना और पेलजिक प्रजातियां सिर्फ समुद्री संसाधन नहीं हैं, वे आर्थिक जीवन रेखाएं हैं। उन्हें बहुराष्ट्रीय बेड़े से मछली पकड़ने के उच्च खतरों का सामना करना पड़ता है। हाल के वर्षों में औद्योगिक मछली पकड़ने की वृद्धि ने हिंद महासागर के उष्ण-कटिबंधीय टूना स्टॉक की स्थिरता के लिए चुनौतियां पैदा की हैं। उनके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी प्रबंधन के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुधन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रुपाला ने सोमवार को हिंद महासागर टूना आयोग (आईओटीसी) डेटा संग्रह के शुभारंभ और समापन सत्र में अपने आभासी संबोधन के दौरान यह बात कही।
परषोत्तम रुपाला ने कहा कि टूना और टूना जैसे संसाधनों के टिकाऊ उपयोग के लिए भारत की प्रतिबद्धता अनुकरणीय है। हालांकि हाल ही में कुछ देशों द्वारा औद्योगिक मछली पकड़ने में वृद्धि ने वैश्विक चिंताएं बढ़ा दी हैं। कई देशों ने अपने बड़े औद्योगिक बेड़े को हिंद महासागर की टूना संपदा का दोहन करने और उसे ख़त्म करने की अनुमति दी है। उन्होंने कहा कि मछली पकड़ने वाले विकसित देशों को हिंद महासागर में टूना स्टॉक को हुए नुकसान की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
इस अवसर पर डा. एल मुरुगन, मत्स्य पालन, एएचडी और आईबी राज्य मंत्री सुधीर मुनगंटीवार, महाराष्ट्र सरकार के मत्स्य पालन मंत्री डा. पॉल डी ब्रुने, आईओटीसी के कार्यकारी सचिव व आईओटीसी वैज्ञानिक समिति के अध्यक्ष डा. तोशीहिदे किताकाडु (जापान), संयुक्त सचिव (समुद्री मत्स्य पालन), डीओएफ नीतू कुमारी प्रसाद, महाराष्ट्र सरकार के मत्स्य पालन सचिव और आयुक्त डॉ. अतुल पटने, महाराष्ट्र मत्स्य विकास निगम के प्रबंध निदेशक पंकज कुमार, एफएओएचक्यू की निगरानी और मूल्यांकन अधिकारी कैथरीन हैट व प्रतिनिधिमंडलों के प्रमुख व्यक्तिगत रूप से उपस्थित थे। आईओटीसी सदस्य देशों के प्रतिनिधि, सदस्य देशों और दुनिया के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ, आईओटीसी के पर्यवेक्षक, महाराष्ट्र राज्य सरकार के अधिकारी भी मौजूद रहे ।
हिन्दुस्थान समाचार/ बिरंचि सिंह/दधिबल
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