(अपडेट) प्रजातांत्रिक मूल्यों की दृष्टि से दुनिया के लिए आदर्श राष्ट्र है भारत: उपराष्ट्रपति

(अपडेट) प्रजातांत्रिक मूल्यों की दृष्टि से दुनिया के लिए आदर्श राष्ट्र है भारत: उपराष्ट्रपति
WhatsApp Channel Join Now
(अपडेट) प्रजातांत्रिक मूल्यों की दृष्टि से दुनिया के लिए आदर्श राष्ट्र है भारत: उपराष्ट्रपति


- नवनिर्वाचित विधानसभा सदस्यों के लिए प्रबोधन कार्यक्रम का हुआ उद्घाटन

जयपुर, 16 जनवरी (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र भारत की सबसे बड़ी ताकत है। पूरी दुनिया के लिए भारत प्रजातांत्रिक मूल्यों की दृष्टि से आदर्श राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि सदन में प्रत्येक सदस्य का आचरण अनुकरणीय और मर्यादित होना चाहिए। यदि सदन परिवार की तरह चलेगा तो देश-प्रदेश का हित होगा।

धनखड़ मंगलवार को राजस्थान विधानसभा में 16वीं विधानसभा के नवनिर्वाचित विधायकों के लिए आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने की। धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र में विकास रूपी गंगा की शुरुआत विधायिका से होती है। विधायिका का यह दायित्व है कि वह न्यायपालिका और कार्यपालिका को सही दृष्टिकोण में रखकर कार्य करे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि विपक्ष का कर्तव्य सरकार के कार्यों की सकारात्मक आलोचना करना होता है, जिसका लाभ सरकार को मिलता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज का भारत आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से काफी बदल चुका है। उन्होंने कहा कि भारत आज दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति बन चुका है और आगामी वर्षों में यह अर्थव्यवस्था की दृष्टि से दुनिया में तीसरे पायदान पर होगा। भारत वर्तमान में जिस गति से आगे बढ़ रहा है, उससे पूरी दुनिया अचंभित है। देश को यहां तक पहुंचाने में सरकार और विपक्ष के साथ ही आम नागरिकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। धनखड़ ने कहा कि भारतीय होना हमारी पहचान और गर्व है। आज का भारत विकास की दृष्टि से गति पकड़ चुका है और पूरी दुनिया भारत की प्रशंसा कर रही है। यह अवसर केवल राज्य को ही नहीं बल्कि पूरे देश को दिशा देने का है।

धनखड़ ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रभावी बात वही होती है, जो सदन में नियमों के माध्यम से रखी जाए। व्यवधान के लिए कही जाने वाली बातों का असर ज्यादा दिनों तक नहीं रहता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान सभा के समक्ष कई प्रकार की चुनौतियां और जटिल विषय थे, लेकिन संविधान सभा द्वारा किया गया कार्य सभी के लिए अनुकरणीय है।

उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष किसी दल से जुड़े नहीं होते हैं। उनका पहला कर्तव्य है कि वह प्रतिपक्ष का संरक्षण करें। हालांकि कई बार उन्हें कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। यदि वे अपने कर्तव्य पर अडिग रहते हैं तो नतीजे सर्वदा अनुकूल ही प्राप्त होते हैं। उन्होंने कहा कि सदन को चलाने की जिम्मेदारी पक्ष-विपक्ष, दोनों की होती है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आसन पर बैठने वाले को सबका ध्यान रखना होता है। कई हल्की-फुल्की बातें ऐसी हो जाती हैं कि उन्हें लेकर नहीं बैठ सकते। उन्होंने कहा कि आज किसी भी सदस्य के बारे में सोशल मीडिया पर ऐसी भ्रांति फैलाई जा सकती है, जो एक बड़ी आग का रूप ले लेगी। इस सदन को तय करना है कि ऐसी चीजों पर अंकुश कैसे लगाया जाए? ताकि सार्थकता से हमारा जीवन चलता रहे, हमारे चरित्र हनन का प्रयास न हो। इसे रोकने के उपाय पर चिंतन करना होगा। सोशल मीडिया किसी का भी चरित्र हनन कर देता है।

धनखड़ ने यह भी कहा कि भारत के संविधान में समाहित चित्र देश की 5000 साल की संस्कृति का सार है। उन्होंने कहा कि भारत की कार्यपालिका ने दुनिया को दिखा दिया है कि यदि उसे सही नीति दी जाती है तो नतीजे बेहतरीन हो सकते हैं। विधायिका और कार्यपालिका के बीच सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध होने चाहिए। यदि जनप्रतिनिधि और अधिकारी साथ मिलकर चलते हैं तो प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि स्वतंत्रता और प्रजामंडल आन्दोलनों में लोकतांत्रिक मूल्यों का बड़ा महत्व रहा है। उन्होंने कहा कि नवनिर्वाचित सदस्यों को सदन की प्रक्रिया, कार्य संचालन एवं आचरण सम्बन्धी नियमों से अवगत करवाने के लिए यह प्रबोधन कार्यक्रम आयोजित किया गया है। सभी सदस्यों को नियमों की जानकारी होना बहुत आवश्यक है।

देवनानी ने कहा कि विधायक जितना अधिक समय सदन में बिताएंगे उतना ही अधिक उन्हें सीखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि हमें जनहित के मुद्दे नियमों के तहत सदन में उठाने होंगे तथा सदन में सार्थक एवं प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदन में सदस्यों का व्यवहार शालीन होना चाहिए। यहां मुद्दों को लेकर पक्ष-विपक्ष में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं होने चाहिए। देवनानी ने कहा कि सफल विधायक बनने के लिए विधायकों को विधानसभा की प्रक्रिया और नियमों की जानकारी होना अति आवश्यक है। शालीनता, मर्यादा और श्रेष्ठ परम्पराओं को सदन में देखकर तथा विधानसभा की कार्यवाही का अध्ययन करके सीखा जा सकता है।

मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने कहा कि प्रबोधन कार्यक्रम से संसदीय पद्धति, प्रक्रिया, कार्य संचालन के नियम, अभिसमय, शिष्टाचार और परंपराओं से जुड़े विभिन्न आयामों को समझने का सुअवसर मिला है। इससे लोकतांत्रिक ढांचे में विधानमंडलों की संवैधानिक भूमिका और स्थिति की बेहतर समझ हो पाएगी। उन्होंने कहा कि इस प्रबोधन कार्यक्रम के विचारों को अपनाकर हम विधायक के रूप में अपने कर्तव्यों का बेहतर निर्वहन कर सकेंगे।

शर्मा ने कहा कि यह सदन पक्ष-प्रतिपक्ष का नहीं है। यह सदन सबका है। यह ऐसा मंच है, जहां जनता की अपेक्षाओं को प्रभावी ढंग से रखकर अपनी भूमिका निभा सकते है। उन्होंने कहा कि निर्वाचन क्षेत्र और सर्व हित में हमारे विषयों को सदन में सुना जाए, इसके लिए हमे संसदीय साधनों का विधिपूर्वक उपयोग करना होगा। उन्होंने कहा कि हमारा मूल दायित्व है कि सदन के समय का बुद्धिमानी और विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करें।

मुख्यमंत्री ने कहा कि बीते वर्षों में संसदीय कार्यों के सुचारू संचालन के लिए संसदीय पद्धतियां व प्रक्रियाएं भी विकसित की गई हैं। संसदीय पद्धति और प्रक्रिया के तहत कोई भी सदस्य लोक महत्व के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा सकता है। जनता की शिकायतों को प्रस्तुत कर सकता है। उनके समाधान की मांग कर सकता है और सरकार के नीति निर्धारण पर सार्थक प्रभाव डाल सकता है।

सरकारी मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने कार्यक्रम में सभी का आभार व्यक्त किया। प्रारम्भ में अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर प्रबोधन कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। विधानसभा अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री ने पौधा भेंट कर उपराष्ट्रपति का स्वागत किया। विधानसभा अध्यक्ष देवनानी ने उपराष्ट्रपति को स्मृति चिह्न भी भेंट किया। कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी एवं डॉ. प्रेमचन्द बैरवा, मंत्री, विधायक तथा संसदीय नियम एवं प्रक्रियाओं के विशेषज्ञ उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/दिनेश सैनी/सुनीत

हमारे टेलीग्राम ग्रुप को ज्‍वाइन करने के लि‍ये  यहां क्‍लि‍क करें, साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर और वाराणसी से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप डाउनलोड करने के लि‍ये  यहां क्लिक करें।

Share this story