दादी नवाजबाई की सादगी की सीख आजीवन जीते रहे रतन टाटा

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दादी नवाजबाई की सादगी की सीख आजीवन जीते रहे रतन टाटा


मुंबई, 10 अक्टूबर (हि.स.)। शीर्ष उद्योगपति रतन टाटा आजीवन अपनी दादी नवाजबाई टाटा की सादगी की सीख को आजीवन जीते रहे। रतन टाटा के जीवन का सफर आसान नहीं था। टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन को भी पारिवारिक कलह का भी सामना करना पड़ा था। उनकी दादी ने पालन-पोषण किया और सादगीभरा शांत जीवन जीने की सीख दी थी, जिसका निवर्हन रतन टाटा ने अपने जीवन के आखिरी पड़ाव तक किया।

रतन टाटा का जन्म 28 सितंबर, 1937 को मुंबई में हुआ था। रतन टाटा के पिता नवल टाटा को टाटा परिवार ने गोद ले लिया था। नवल टाटा होर्मुसजी टाटा के रिश्तेदार भी थे। 1948 में जब रतन टाटा 10 साल के थे, तब उनके पिता नवल और मां सोनू का तलाक हो गया। तब रतन टाटा की देखभाल उनकी दादी नवाजीबाई ने की थी। उन्होंने रतन टाटा और उनके भाई दोनों का पालन-पोषण किया। इसलिए रतन टाटा को अपनी दादी की दी हुई सीख हमेशा याद रहती थी।

एक इंटरव्यू में बोलते हुए रतन टाटा ने अपनी दादी की यादों से जुड़े कुछ किस्से बताए थे। रतन टाटा ने कहा था कि अगर आप इस तरह से देखें तो मेरा बचपन मजेदार था। लेकिन जैसे-जैसे मैं और मेरा भाई बड़े हुए, हमें उग्रता और कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसका कारण हमारे माता-पिता का तलाक था। लेकिन हमारी दादी ने हमें अच्छे से पाला। जब मेरी माँ ने दूसरी शादी की, तो स्कूल में कुछ बच्चे हमारे बारे में इधर-उधर बातें कर रहे थे। हालाँकि, हमारी दादी ने हमें हमेशा सिखाया कि सीमा पार नहीं करनी चाहिए। यह शिक्षा आज तक हमारे साथ है।

रतन टाटा ने आगे कहा था कि दादी की इसी सीख के कारण हम अक्सर ऐसे बयानों को नजरअंदाज कर देते थे और इस तरह आगे की बहस भी टाल जाते थे। मुझे अभी भी याद है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद गर्मियों की छुट्टियों के दौरान मेरी दादी मुझे और मेरे भाई को लंदन ले गई थीं। वहां मुझे जीवन का मूल्य सीखने को मिला। वह हमेशा हमसे कहती थी कि ऐसा मत कहो, जो किसी को बुरा लगे। इसीलिए हमें बचपन से सिखाया गया है कि मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। दादी हमेशा हमारे साथ थीं।

रतन टाटा ने कहा था कि मैं वायलिन सीखना चाहता था लेकिन मेरे पिता ने मुझसे पियानो सीखने को कहा। मैं अमेरिका में कॉलेज जाना चाहता था लेकिन मेरे पिता ने मुझे यूके जाने पर ज़ोर दिया। मैं आर्किटेक्ट बनना चाहता था और वे चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं लेकिन अगर मेरी दादी नहीं होती तो मैं कभी भी अमेरिका विश्वविद्यालय में नहीं जा पाता। यह उन्हीं की वजह से था कि मैं मैकेनिकल इंजीनियरिंग में आया लेकिन वास्तुकला में डिग्री लेकर निकला। मेरे पिता बहुत परेशान थे और बहुत बहस हुई। लेकिन आखऱिकार मैं अपने पैरों पर खड़ा हो गया। मेरी दादी ने मुझे यही सिखाया है कि साहस सौम्य सम्मानजनक भी हो सकता है। रतन टाटा ने दादी की सीख को आजीवन मानते टाटा नामक ब्रांड को बड़ी नैतिकता और समर्पण के साथ पूरी दुनिया में विस्तार किया। इसके अलावा, अपने परोपकारी व्यक्तित्व के कारण, वह भारत के युवाओं के चहेते बन गए।

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हिन्दुस्थान समाचार / राजबहादुर यादव

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