वाराणसी में सबसे पहले लगाएं इस मंदिर में हाजिरी, नहीं तो अधूरे रह जाएंगे काशी विश्वनाथ के दर्शन
वाराणसी अति प्राचीन नगरों में आता है, जिसकी स्थापना स्वयं बाबा भोलेनाथ ने की थी। बनारस कहें या काशी ये अपने आप में कई बड़ी विरासतें संजोए हुए है। बाबा की नगरी के साथ ही काशी अपने मंदिरों और घाटों के लिए भी प्रसिद्ध है। इसी कड़ी में काल भैरव मंदिर भी अपनी मान्यता और पौराणिकता के लिए विख्यात है। आइए जानते हैं काल भैरव के दर्शन के बिना क्यों सफल नहीं माने जाते हैं बाबा के दर्शन-
काल भैरव ने काटा था भगवान ब्रह्मा जी का सिर
शास्त्रों के अनुसार शिवपुराण में बताया गया है कि ब्रह्मा द्वारा शिव के अपमान से क्रोधित होकर शंकर जी ने अपना रौद्र रूप धरा और काल भैरव को अवतरित किया। काल भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा जी का सर अपने नाखून से काट दिया। इससे काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। हत्या के बाद ब्रह्मा जी का पांचवा सिर काल भैरव के हाथ से चिपक गया। काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा और उस दोष से मुक्ति पाने के लिए मुक्ति पाने के लिए शिव ने काल भैरव को पृथ्वी पर जाने के लिए कहा और उन्हें बताया कि जब ब्रह्मा का कटा हुआ सिर हाथ से गिर जाए तो समझ लेना तुम्हें पाप से मुक्ति मिल गई है।
फिर ये तीनों लोकों का भ्रमण करने लगे। काशी में गंगा तट पर पहुंचने के बाद काल भैरव के हाथ से ब्रह्मा जी का पांचवा सिर गिर गया। तब काल भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी। उसी समय भगवान शंकर ने उन्हें काशी में ही रहकर तप करने का आदेश दिया था।
काशी के मुख्य कोतवाल हैं काल भैरव
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ स्वयं काशी के राजा हैं जबकि उन्हीं की ओर से कालभैरव को शहर के कोतवाल नियुक्त किया गया है। इस मंदिर में विशेष तौर पर रविवार और मंगलवार के दिन श्रद्धालुयों की भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालु विधि विधान से पूजन कर अपने सभी बाधाओं, क्लेश और दुख का निवारण कर सफल मनोकामनाओं की प्राप्ति करते हैं।
काल भैरव के दर्शन के बिना सफल नहीं होते हैं विश्वनाथ दर्शन
वाराणसी के विशेश्वरगंज में काल भैरव मंदिर स्थित है और मंदिर से थोड़ी दूरी पर ही बाबा काशी विश्वनाथ का मंदिर है। मान्यताओं के अनुसार बिना काल भैरव मंदिर का दर्शन किए काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन का लाभ नहीं मिलता अर्थात काशी विश्वनाथ के दर्शन के साथ ही काशी के कोतवाल के दर्शन भी अनिवार्य है।
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