प्रयास ऐसे हों कि आजादी के शताब्दी वर्ष में भारत फिर से विश्व गुरु के रूप में स्थापित होः केन्द्रीय मंत्री सिंधिया

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प्रयास ऐसे हों कि आजादी के शताब्दी वर्ष में भारत फिर से विश्व गुरु के रूप में स्थापित होः केन्द्रीय मंत्री सिंधिया


- आरोग्य भारती के दो दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि मंडल सम्मेलन का हुआ समापन

ग्वालियर, 22 सितंबर (हि.स.)। केन्द्रीय संचार एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि भारत अमृतकाल से शताब्दीकाल की ओर बढ़ रहा है। भारत आजादी के शताब्दी वर्ष 2047 में फिर से विश्व गुरू के रूप में स्थापित हो, यह सभी का संकल्प होना चाहिए। इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में आरोग्य भारती जैसी संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने कहा कि यदि हम सुंदर कल चाहते हैं तो हमारा आज स्वस्थ होना जरूरी है। इसी भाव के साथ आरोग्य भारती संस्था देशभर में स्वस्थ जीवन शैली जीने की कला सिखा रही है।

केंद्रीय मंत्री सिंधिया रविवार को राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्व विद्यालय ग्वालियर के दत्तोपंत ठेंगड़ी सभागार में आयोजित हुए दो दिवसीय आरोग्य भारती के अखिल भारतीय प्रतिनिधि मंडल सम्मेलन के समापन समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने आरोग्य भारती के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्था नर सेवा और नारायण सेवा के मूलमंत्र के साथ काम में जुटी हुई है। इस अवसर पर आरोग्य भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.राकेश पंडित, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ.मुधुसूदन देशपांडे, मिहिर कुमार, स्वामी नारायण, प्रवीण प्रभाकर मंचासीन रहे।

केन्द्रीय मंत्री सिंधिया ने कहा कि आज समय बदल चुका है। जीवन में आपाधापी और काम का दबाव ज्यादा होने से लोग तनाव में जी रहे हैं। शारीरिक रोग के साथ-साथ मानसिक रोग तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। इसकी रोकथाम के लिए आरोग्य भारती नए-नए अनुसंधान व नवाचार सामने लाने का काम भी प्रमुखता से करे। उन्होंने कहा कि तनाव से पाचनतंत्र खराब होने के साथ ही आर्थराइटिस और मनोविकार बढ़ते जा रहे हैं। इस समस्या के निजात के लिए आरोग्य भारती सेवाभावी युवाओं को अपने साथ जोडऩे के प्रयास प्रमुखता से करें।

सिंधिया ने कहा कि भारत केवल देश ही नहीं दर्शन शास्त्र है। जीवन कैसे जिया जाए, विचार कैसे होने चाहिए यह हजारों साल पहले हमारे शास्त्रों में बताया गया है। उपनिषद का श्लोक सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मां कश्चिद दु:ख भाग्भवेत्। अर्थात सभी सुखी रहें, सभी रोग मुक्त रहें। सभी देखें कि क्या शुभ है यानी मंगलमय के साक्षी बनें, किसी को भी दु:ख का भागी न बनना पड़े। इसका एक उदाहरण है। भारत आज भी इसी सोच और विचार पर कायम है। हमारी सोच समाज और राष्ट्र तक सीमित नहीं है बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम की है। इसी वजह से कोरोनाकाल में हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में न केवल दो वैक्सीन बनाई गई बल्कि देशवाशियों को सफलतापूर्वक लगाकर यह वैक्सीन विदेश में भी भेजी गई। यही नहीं आज हमारे योग को भी विदेश में अपनाया गया है। पूरा विश्व योगमय हो गया है।

उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्रों में स्वास्थ्य और सेवा पर विशेष जोर दिया गया है। भारत आज न केवल आर्थिक शक्ति के रूप में बल्कि आध्यात्मिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। हमारी सोच, हमारी विचार धारा वैश्विक है। इसलिए वसुधैव कुटुंबकम् की तहत प्रधानमंत्री मोदी ने जी-20 में वन अर्थ, वन वर्ल्ड, वन फैमिली, वन फ्यूचर की बात कही। विश्व को सुंयुक्त रूप से अपने कल्याण की भावना उत्पन्न करनी होगी और उसका मूल मंत्र है अगर मनुष्य स्वस्थ रहेगा तो समाज, प्रथ्वी और विश्व स्वस्थ रहेगा।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

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