डॉ. डीके सुनील को मिला एचएएल के सीएमडी का अतिरिक्त प्रभार, कार्यभार संभाला

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डॉ. डीके सुनील को मिला एचएएल के सीएमडी का अतिरिक्त प्रभार, कार्यभार संभाला


- नए लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों के निर्यात को बढ़ावा देने की होगी चुनौती - भारत में अमेरिकी एफ-414 इंजन के उत्पादन का सौदा फाइनल करना होगा

नई दिल्ली, 31 अगस्त (हि.स.)। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे सीबी अनंतकृष्णन शनिवार को सेवानिवृत्त हो गए। उनकी जगह एचएएल के निदेशक (इंजीनियरिंग और आरएंडडी) डॉ. डीके सुनील ने आज ही एचएएल के सीएमडी (अतिरिक्त प्रभार) का पदभार संभाल लिया है। उनके पास विभिन्न भूमिकाओं में लगभग 37 वर्षों का अनुभव है। अब उनके सामने स्वदेशी नए लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों के निर्यात को बढ़ावा देने और देश में जेट इंजन के उत्पादन की चुनौतियां होंगी।

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के प्रमुख का बदलाव ऐसे समय हुआ है, जब सरकारी विमान निर्माता कंपनी एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। एचएएल इस समय हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस मार्क-1ए की भारतीय वायु सेना को समय से आपूर्ति करने के कार्यक्रम को अंतिम रूप दे रहा है। देश में जेट इंजन के संयुक्त उत्पादन के लिए सौदे को अंतिम रूप देने की दिशा में भी काम किया जा रहा है। एचएएल को नए लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों के लिए हजारों करोड़ रुपये के ऑर्डर का इंतजार है। स्वदेशी लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों के निर्यात को बढ़ावा देने का भी एचएएल पर दबाव है। इसके अलावा एचएएल भारत में एफ-414 इंजन के संयुक्त उत्पादन के लिए अमेरिकी कंपनी जीई एयरोस्पेस के साथ सौदे पर बातचीत कर रहा है।

एचएएल के निदेशक (इंजीनियरिंग और आरएंडडी) डीके सुनील को पहले से ही इस शीर्ष पद के लिए सबसे आगे माना जा रहा था।उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और आईआईटी, मद्रास से एयरक्राफ्ट प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में एमटेक किया है। उन्होंने वर्ष 2019 में हैदराबाद विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स विज्ञान में पीएचडी भी पूरी की। वह 1987 में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में प्रबंधन प्रशिक्षु के रूप में शामिल हुए और उन्हें कंपनी में विभिन्न प्रमुख पदों पर लगभग 33 वर्षों का अनुभव है।

डॉ. सुनील 1993 में लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए पहले एयरबोर्न रेडियो के प्रमाणन में शामिल थे, जो इस समय सफलतापूर्वक उड़ान भर रहा है। वे उस टीम का भी हिस्सा थे, जिसने वर्ष 2000 में मिग-21 अपग्रेड प्रोग्राम के लिए पहला सिक्योर रेडियो बनाया था, जिसका रूस में सफलतापूर्वक प्रमाणित करने के बाद बड़ी संख्या में उत्पादन किया गया। उनके नेतृत्व में हाई पावर रडार पावर सप्लाई, वॉयस एक्टिवेटेड कंट्रोल सिस्टम, कंबाइंड इंट्रोगेटर ट्रांसपोंडर जैसी नई तकनीकें विकसित की गईं। उन्होंने डेटालिंक्स के लिए आईआईटी कानपुर और वॉयस रिकग्निशन तकनीकों के लिए आईआईआईटी, हैदराबाद के साथ सहयोग में भी अग्रणी भूमिका निभाई।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनीत निगम

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