नृत्य-संगीत भी हमारी प्राचीनतम धरोहर, प्रागैतिहासिक काल में भी मिलते हैं इसके प्रमाण
- खजुराहो नृत्य समारोह का समापन
भोपाल, 26 फरवरी (हि.स.)। यूनेस्को विश्व धरोहर खजुराहो में आयोजित सात दिवसीय 50वें खजुराहो नृत्य समारोह सोमवार को संपन्न हुआ। समारोह में आयोजित कलावार्ता की अंतिम सभा पुरातात्विक साक्ष्यों के सन्दर्भ में हमारे संगीत और सांस्कृतिक अतीत के कलात्मक पहलुओं के नाम रही। इस अवसर पर प्रख्यात पुरातत्वविद डॉ. शिवाकांत वाजपई ने कहा कि पुरातत्व जीवन के हर हिस्से से संबंधित है। कोई भी चीज जो हमारे वेद पुराणों में है वह पुरातात्विक पैमानों से पुष्ट और प्रमाणित होती है। नृत्य संगीत भी कोई आज की चीज नहीं है, बल्कि यह हमारी प्राचीनतम धरोहर है, पुरा और प्रागैतिहासिक काल में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। बल्कि यूं कहें कि ये धरोहर तो पौराणिक और वैदिक काल से हमारे पास है।
उन्होंने कहा कि नृत्य संगीत या दूसरी कलाएं हमारी प्राचीनतम परम्पराओं में पहले से विद्यमान रही हैं। खजुराहो सहित तमाम प्राचीन मंदिर और स्मारक इसके प्रमाण हैं। नृत्य संगीत की परंपरा प्रागैतिहासिक काल से चली आ रही है। उन्होंने प्राचीन सिंधु घाटी और हड़प्पा सभ्यता का जिक्र करते हुए बताया कि हमारा संगीत और नृत्य इससे भी प्राचीन हैं। अशोक से लेकर शुंग काल से लेकर मौर्य और गुप्तकालीन पुरातात्विक प्रमाणों से यह बात सामने रखने की कोशिश की कि तब भी कला-संस्कृति अपनी उत्कृष्ट अवस्था में थी।
उन्होंने बेल्लारी कर्नाटक से खुदाई में मिले एक पाषाणकालीन डांसिंग पैनल को स्लाइड के माध्यम से उदधृत करते हुए कहा तब भी लोग खेती बाड़ी करते हुए खाली समय में कुछ तो करते ही थे, ये पैनल उसी का उदाहरण हैं। उन्होंने अवनद्ध वाद्यों, घन वाद्यों, सुशिर वाद्यों और तार वाद्यों के बारे में बताया कि ये वाद्य प्रागैतिहासिक काल और उसके बाद भी थे। एक हजार साल पुराने मंदिरों में अंकित इन मूर्तियों में ये वाद्य दृष्टव्य हैं। उन्होंने हड़प्पन सभ्यता की खुदाई में मिली पांच हजार साल पुरानी डांसिंग गर्ल या अर्नेस्ट मैके द्वारा कही गई अंडाकार सीटी और घुंघरुओं की तस्वीरें बताते हुए कहा कि ये वाद्य आज के नहीं है, बल्कि सदियों पहले से या मानव सभ्यता के साथ विकसित हुए हैं। उन्होंने मौर्य काल के संगीत में भी वाद्यों की मौजूदगी का जिक्र किया और कहा कि पुरातत्व हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को पुष्ट करता है। सिंधु घाटी और मोहन जोदड़ो जो सर्वाधिक प्राचीन सिविलाइजेशन मानी जाती है, उनके दौरान भी कला संगीत नृत्य अपने उरूज पर थे।
खजुराहो मंदिरों की स्लाइड्स के माध्यम से उन्होंने बताया कि इन मंदिरों पर उत्कीर्ण नृत्यरत प्रतिमाएं इस बात का सबूत हैं कि नृत्य संगीत की परंपरा बहुत प्राचीन हैं और आज जो नृत्य मुद्राएं हम देखते हंर वे सब इन प्रतिमाओं से अभिप्रेरित होकर गढ़ी गई हैं।
लोकरंजन
मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन, छतरपुर, दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर के सहयोग से खजुराहो नृत्य समारोह परिसर में पारंपरिक कलाओं के राष्ट्रीय समारोह लोकरंजन के अंतिम दिन राजस्थान का मांगणियार गायन, घूमर, चरी, भवई एवं कालबेलिया एवं आंध्रप्रदेश का गुसाड़ी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। समारोह की शुरुआत सुरमनाथ कालबेलिया एवं साथी, राजस्थान द्वारा मांगणियार गायन से की गई। उन्होंने केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश..., गोरबंद नखरालो..., वह मन आवे हिचकी रे..., निंबुडा निंबुडा निंबुडा... जैसे कई गीतों की प्रस्तुति दी। अगले क्रम में राजस्थान के चरी नृत्य को प्रस्तुत किया गया। इस नृत्य में बांकिया, ढोल एवं थाली का प्रयोग किया जाता है। महिलाएं अपने सिर पर चरियाँ रखकर नृत्य करती हैं।अगले क्रम में आंध्रप्रदेश के गुसाड़ी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। गुसाड़ी नृत्य आंध्रप्रदेश में गोंड जनजाति के द्वारा किया जाता है। इनके द्वारा मनाये जाने वाले उत्सवों में इनकी संस्कृति की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है।
लयशाला
खजुराहो नृत्य समारोह की अनुषांगिक सभा लयशाला की अंतिम सभा सोमवार को रायगढ़ घराने के कथक और सत्रिया नृत्य के नाम रही। देश के जाने-माने नृत्य गुरु पद्मश्री पंडित रामलाल, बिलासपुर ने यहां रायगढ़ घराने से नई पीढ़ी के कलाकारों और कला रसिकों को परिचित कराया। उन्होंने घराने की रचनाएं, प्रस्तुतिकरण की शैली, बंदिशें इत्यादि के बारे प्रदर्शन के साथ अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि आमद को रायगढ़ घराने में उपोदघात कहा जाता है। मैत्रावरण और बृजन छिंद बंदिशों पर भी प्रकाश डाला। महाराजा चक्रधर की ध्वनात्मक बंदिशें दल बादल, चमक बिजली, काव्यात्मक बंदिशें राधाकृष्ण लास्य, कृष्ण लास्य, चित्रात्मक बंदिशें दावानल, मत्स्य रंगावली बंदिशों के विषय में भी जानकारी साझा की। पंडित रामलाल जी ने कहा कि वे एक बार उज्जैन में महाकाल के दर्शन के लिए गए, जहां उन्होंने महाकाल नाम की बंदिश बनाई और उन्हें अर्पित कर दी।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/प्रभात
हमारे टेलीग्राम ग्रुप को ज्वाइन करने के लिये यहां क्लिक करें, साथ ही लेटेस्ट हिन्दी खबर और वाराणसी से जुड़ी जानकारी के लिये हमारा ऐप डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें।