8वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में वैश्विक शांति व समृद्धि के लिए रोड मैप बनाने पर मंथन शुरू
- मुख्यमंत्री ने डिब्रूगढ़ में आयोजित 8वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बुजुर्गों की सभा में लिया हिस्सा
- स्वदेशी धर्म को पुनर्जीवित करना व सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने के प्रयासों की जांच करना हमारा संकल्प: मुख्यमंत्री
डिब्रूगढ़ (असम), 28 जनवरी (हि.स.)। मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा ने डिब्रूगढ़ में 8वें त्रैवार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन और बुजुर्गों की सभा का उद्घाटन किया। इस मौेके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत सहित लगभग 33 देशों के आध्यात्मिक नेता मौजूद रहे।
दरअसल, इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज के तत्वावधान में पांच दिवसीय सम्मेलन डिब्रूगढ़ के शिक्षा वैली स्कूल में आयोजित हो रहा है। 1 फरवरी तक चलने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आध्यात्मिक नेता वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए सामूहिक रूप से काम करने के लिए रोडमैप तैयार करने के तरीकों और साधनों पर विचार-विमर्श करेंगे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. सरमा ने कहा कि दुनियाभर में स्वदेशी धर्मों को पुनर्जीवित करना और हमारी सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने के प्रयासों की जांच करना हमारा सामूहिक संकल्प है। भारत की संस्कृति, परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने वाली ताकतों का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. सरमा ने कहा कि देश के लोगों को ऐसी ताकतों को हराने के लिए एक निवारक बनाना चाहिए। वह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन और बड़ों की सभा के लिए सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के साथ मंच साझा करके खुश हैं। यह सम्मेलन दुनियाभर के आध्यात्मिक नेताओं के साथ विचार मंथन से सामाजिक बंधन को मजबूत करने में मदद करेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान युग स्वदेशी परंपराओं और विश्वासों पर नकारात्मक वैश्विक प्रभाव का है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए यह जरूरी है कि स्वदेशी धर्मों में निहित ज्ञान को आकर्षित करने और एक स्थायी भविष्य के लिए इन विश्वासों के संरक्षण और प्रसार के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए एक ठोस प्रयास किया जाए। उन्होंने कहा कि भारत में प्रमुख धर्मों के अलावा कई स्वदेशी विश्वास फले-फूले, जो राष्ट्र की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता को दर्शाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत में स्वदेशी विश्वास केवल धार्मिक प्रथाएं नहीं हैं, वे ज्ञान के भंडार हैं। वे समुदायों और प्राकृतिक दुनिया के बीच घनिष्ठ संबंध को रेखांकित करते हैं। इन विश्वास प्रणालियों को संरक्षित करना धर्म में विविधता की रक्षा करने के बारे में है।स्वदेशी आस्था की विशाल भूमिका को देखते हुए डॉ. सरमा ने एक ऐसा विभाग बनाने में राज्य सरकार के कदम के बारे में कहा, जो विशेष रूप से स्वदेशी जनजातीय आस्था और संस्कृति से संबंधित है।
मुख्यमंत्री ने आशा व्यक्त की कि सम्मेलन स्वदेशी आस्था और संस्कृति को पुनर्जीवित करने और वर्तमान समाज में हो रहे सांस्कृतिक क्षरण को रोकने में मदद करेगा। यह वर्तमान पीढ़ी को अतीत के आंतरिक मूल्यों से जोड़ने में भी मदद करेगा। एक तरह से यह वर्तमान लोगों को देश के प्राचीन अतीत और इसकी संसाधनशीलता को फिर से देखने में मदद करेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सम्मेलन लाभार्थियों को वर्तमान समाज को साझा दृष्टि तक ले जाने और सामूहिक शांति और कल्याण के रोडमैप पर काम करने में मदद करेगा।
मुख्यमंत्री डॉ सरमा ने सरसंघचालक मोहन भागवत के मार्गदर्शन के लिए उनका आभार भी व्यक्त किया। उन्होंने डिब्रूगढ़ में 8वें त्रैवार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के लिए इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज के अध्यक्ष शशिबाला को भी धन्यवाद दिया। सरसंघचालक डॉ. भागवत ने भी इस अवसर पर भारत के समृद्ध अतीत के साथ वैश्विक शांति को अभूतपूर्व ऊंचाई पर ले जाने के लिए विश्व नेताओं की ओर से सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज के अध्यक्ष शशिबाला, बुजुर्गों के आध्यात्मिक नेता लिथुआनिया इनिजा तेनकुने, ग्वाटेमाला के आध्यात्मिक नेता एलिजाबेथ अराजाओ, अमेरिका के बुजुर्गों की आध्यात्मिक नेता ज्योति, अफ्रीका के बुजुर्गों के आध्यात्मिक नेता एडमंड, इदु मिसमी अचा मिमी के आध्यात्मिक नेता, शिक्षा वैली के प्रबंध निदेशक पुलिन चंद्र गोगोई के साथ अन्य गणमान्य उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीप्रकाश/ अरविंद/सुनील
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