न्यायालय को लोग मंदिर समझते हैं लेकिन न्यायाधीश खुद को देवता ना समझें : सीजेआई
कोलकाता, 29 जून (हि.स.) । देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि देश की जनता न्यायालय को मंदिर समझती है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इसमें बैठने वाले न्यायाधीश खुद को देवता समझने लगें। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को संवेदनशील और सहानुभूति रखने वाला बनना पड़ेगा।
सीजेआई ने कलकत्ता हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन की लाइब्रेरी के दो सौ साल पूरे होने के मौके पर एक विशेष परिचर्चा कार्यक्रम में बोल रहे थे। उनके साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद थीं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि जनता कहती है कि न्यायालय न्याय का मंदिर है। ऐसे में न्यायाधीश अगर खुद को देवता समझते हैं तो यह बहुत बड़ी भूल होगी। मुझे लगता है कि न्यायाधीश जनता के सेवक हैं। वे मामलों की सुनवाई करें लेकिन अपराध के प्रति पहले से कोई धारणा तैयार न करें। उन्हें सहानुभूति रखनी होगी। उन्हें इस बात का ख्याल रखना होगा कि हमारे सामने खड़ा हुआ शख्स मनुष्य है। न्यायाधीश भी सामाजिक रीति-रिवाजों के मुताबिक अपनी धारणा नहीं बना सकते। उन्हें संविधान के मुताबिक काम करना होगा। संवैधानिक नैतिकता कहती है कि एक भारतीय जो चाहे सोच सकता है, जो चाहे बोल सकता है। जिसकी चाहे पूजा कर सकता है, जिसका चाहे अनुसरण कर सकता है। किसी के साथ शादी कर सकता है और जो चाहे खा सकता है। संविधान में दी गई स्वतंत्रता का हमेशा ख्याल रखना होगा।
इसके बाद उन्होंने टेक्नोलॉजी का जिक्र करते हुए कहा कि इससे हमें बहुत सारे मौके मिले हैं। कोर्ट अपनी भाषा में जो फैसला सुनाता है उसे जिस भाषा में चाहें अनुवाद कर सकते हैं। हम लोगों (सुप्रीम कोर्ट) ने 51 हजार से अधिक आदेशों का कई भाषाओं में अनुवाद किया है। बंगाली और ओडिया सहित संविधान जिस किसी भी भाषा की स्वीकृति देता है, उन सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मैं बंगाली और ओडिया भाषा का जिक्र कर रहा हूं, क्योंकि मेरी पत्नी ओडिया को बहुत पसंद करती हैं और बंगाली भी बहुत करीब है। उन्होंने कहा कि बहुत सारे हाई कोर्ट हैं, जो जमानत से संबंधित मामलों में तत्परता नहीं दिखाते हैं। इसे लेकर मैं बहुत चिंतित हूं। यह न्याय व्यवस्था का आदर्श मॉडल नहीं है।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम प्रकाश/दधिबल
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