चंद्रगिरी तीर्थ स्थल में आचार्य विद्यासागर महाराज हुए पंचतत्व में विलीन
रायपुर, 18 फरवरी (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ स्थल में दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य विद्यासागर महाराज को रविवार दोपहर दो बजे पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके अंतिम संस्कार में मध्यप्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के जैन संत व अनुयायी शामिल हुए।
आचार्य विद्यासागर जी के समाधि लेने के बाद दोपहर एक बजे उनका डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से निकाला गया। पौने दो बजे उन्हें समाधि स्थल पर लाया गया, जहां पर उनके शिष्यों की भारी भीड़ थी। हजारों की तादाद में लोग उपस्थित थे। गमगीन माहौल में आचार्य श्री को चंदन की लकड़ी नारियल और घी से बनाए गए अग्नि कुंड के पञ्चतत्व में विलीन किया गया। इस अवसर पर पुलिस की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी।
महाराज ने तीर्थ में छह फरवरी को आचार्य पद त्यागने के साथ समय सागर महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा कर दी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष पांच नवंबर को विद्यासागर महाराज का आशीर्वाद लिया था। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया। साथ ही सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द कर दिए गए।
विश्व विख्यात जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी के देवलोक गमन के बाद जैन समाज में शोक की लहर दौड़ गई है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का समाधि स्थल डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी पर्वत पर बनाया जाएगा।यहां पूरे जिले ही नहीं देश के अलग-अलग राज्यों से जैन समुदाय के लोग पहुंचते हैं। रविवार को हजारों की तादाद में लोगों ने यहां यहां आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का अंतिम दर्शन किया।
रविवार दोपहर संत परंपरा अनुरूप उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान विद्यासागर जी महाराज के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं की आंखें छलक उठी। राजनांदगांव सकल जैन समाज के अध्यक्ष मनोज बैद्य ने कहा कि आचार्य विद्यासागर जी महाराज लगभग 78 वर्ष आयु के थे। कुछ समय से वे अस्वस्थ थे लेकिन संत परंपरा का निर्वाहन करते हुए उन्होंने कोई भी दवाइयां नहीं ली और अपना देह त्याग दिया। उन्होंने कहा कि मुनि श्री द्वारा दी गई बहुमूल्य शिक्षा हमेशा समाज को सद मार्ग दिखाती रहेगी। जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज इस धरती पर लोगों के बीच हमेशा ही स्मरणीय और पूजनीय रहेंगे।
पद्मश्री डॉक्टर पुखराज बाफना ने बताया कि आचार्य श्री विद्यासागर जी का जीवन सात्विक रहा है। वह एक महान विभूति थे और पूरे समाज के लिए उन्होंने योगदान दिया। पूरे विश्व में जितने जैन समुदाय के लोग हैं, उनके लिए एक परमात्मा की तरह पूजनीय थे। जीवन के आखिरी क्षण तक शक्कर, नमक, मिर्च, मसाले और अंग्रेजी दवाइयां इन सभी का त्याग करके उन्होंने रखा था। वह अपने आप में एक महान हस्ती थे। उनका जाना जैन समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।
विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर, 1946 में कर्नाटक के बेलगांव जिले के सलगा ग्राम में हुआ था। वह लंबे समय से डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ में विराजमान थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, मध्यप्रदेश के सीएम डॉ मोहन यादव सहित कई राजनेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी वह दवाई नहीं ले रहे थे। उन्होंने आजीवन अंग्रेजी दवाई, चीनी, नमक, दही, हरी सब्जी आदि का त्याग किया था। आचार्य विद्यासागर ने देशभर के 505 मुनियों को दीक्षा दी थी।
हिन्दुस्थान समाचार/केशव शर्मा/आकाश
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