चाणक्य डिफेंस डायलॉग में बना भारत-प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों के लिए रोडमैप

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चाणक्य डिफेंस डायलॉग में बना भारत-प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों के लिए रोडमैप

- रक्षा विशेषज्ञों ने छह अलग-अलग सत्रों में वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा की

- सेनाध्यक्ष ने भारत के बहुपक्षीय प्रयासों में सैन्य कूटनीति के महत्व पर प्रकाश डाला

नई दिल्ली, 04 नवंबर (हि.स.)। दक्षिण एशिया और भारत-प्रशांत क्षेत्र में उभरती चुनौतियों से मुकाबले के लिए रोडमैप तैयार करने के साथ ही शनिवार को चाणक्य डिफेंस डायलॉग का समापन हुआ। मानेकशॉ सेंटर में इकट्ठा हुए रक्षा विशेषज्ञों ने छह अलग-अलग सत्रों में वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर महत्वपूर्ण चर्चा की। थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने कहा कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था ने हमें रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान आर्थिक मंदी का सामना करने में मदद की।

सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (सीएलएडब्ल्यूएस) के सहयोग से भारतीय सेना के दो दिवसीय कार्यक्रम चाणक्य डिफेंस डायलॉग में दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा चुनौतियों पर व्याख्यान हुए। छह अलग-अलग सत्र 'भारत और इंडो प्रशांत क्षेत्र की व्यापक सुरक्षा के लिए सहयोग' विषय पर केंद्रित थे। प्राचीन रणनीतिकार चाणक्य की दूरदर्शिता से प्रेरित इस संवाद में दक्षिण एशियाई और भारत-प्रशांत की सुरक्षा गतिशीलता, क्षेत्र में सहयोगात्मक सुरक्षा के लिए एक रोडमैप, उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन पर विशेष जोर देने के साथ वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पहले दिन वैश्विक सुरक्षा और शांति के लिए समकालीन चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए इस विचार मंच की अवधारणा के लिए भारतीय सेना को बधाई दी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि चाणक्य रक्षा संवाद दक्षिण एशिया और भारत-प्रशांत में सुरक्षा जटिलताओं के गहन विश्लेषण के लिए एक उपयुक्त मंच बन जाएगा, जो अंततः क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक राष्ट्र की ताकत सबसे प्रभावशाली रक्षा और निवारक है। उन्होंने कहा कि शक्ति से शांति स्थापित की जा सकती है। इसके अलावा उन्होंने सुरक्षा माहौल को बढ़ाने में अभिन्न घटकों के रूप में देश की सॉफ्ट पावर और आर्थिक ताकत का उपयोग करने के महत्व पर प्रकाश डाला।

थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने समापन भाषण में कहा कि वैश्विक परिदृश्य में अभूतपूर्व मंथन ने घटनाओं और नई प्रवृत्ति रेखाओं की एक श्रृंखला को गति दी है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कोरोना महामारी के दौरान भारत को विविध क्षमताओं की कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा और हमारे देश ने इसका अच्छी तरह से सामना किया। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था ने हमें रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान आर्थिक मंदी का सामना करने में मदद की। भारत के बहुपक्षीय जुड़ाव प्रयासों में सैन्य कूटनीति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने टिप्पणी की कि मित्रवत विदेशी साझेदार देशों के साथ संयुक्त अभ्यास का दायरा और पैमाना बढ़ाया गया है। उन्होंने कल्पना की कि चाणक्य रक्षा संवाद का परिणाम इंडो-पैसिफिक के भीतर व्यापक सुरक्षा के पाठ्यक्रम को संचालित करना है।

चाणक्य डिफेंस डायलॉग में डॉ. अरविंद विरमानी (नीति आयोग), प्रोफेसर अजय कुमार सूद (भारत सरकार के पीएसए), राजदूत वी मिस्री (डिप्टी एनएसए), विजय के. गोखले, राजदूत अशोक के कांथा, एडमिरल सुनील लांबा (सेवानिवृत्त), लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन (सेवानिवृत्त), लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा (सेवानिवृत्त) और लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा (सेवानिवृत्त) ने अपनी अंतर्दृष्टि प्रदान की, जिससे संवाद समृद्ध हुए। संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जापान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, श्रीलंका, फिलीपींस और नेपाल सहित दुनिया भर के देशों के अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों ने विविध दृष्टिकोण और सहयोगी भावनाओं के साथ चर्चा में योगदान दिया।

हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत/प्रभात

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