जनजातीय समुदाय राष्ट्र के निर्माण में अपने योगदान और क्षमता को नहीं पहचानते: किरन रिजिजू
नई दिल्ली, 23 दिसंबर (हि. स.)। केन्द्रीय संसदीय एवं अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरन रिजिजू ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्र के निर्माण में जनजातीय समुदाय का योगदान अतुलनीय है, फिर भी वे अक्सर अपने योगदान और सामर्थ्य को नहीं पहचानते।
किरन रिजिजू ने यह बात आज नई दिल्ली स्थित इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) में “भारतीय जनजातीय समाज (शिक्षित एवं सशक्त भूमिका में आत्मनिर्भरता की ओर)” नामक पुस्तक विमोचन के दौरान कही। इस पुस्तक की लेखिका डॉ. स्वीटी तिवारी हैं।
मंत्री ने कहा, जनजातीय समुदाय ने राष्ट्र के निर्माण में व्यापक भूमिका निभाई है, लेकिन विडंबना यह है कि हम, जनजातीय लोग, स्वयं अपने इस गौरवशाली योगदान और अपनी असीमित क्षमताओं को पहचानने में पीछे रह गए हैं।
उन्होंने धर्मांतरण के प्रयासों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अगर आप आदिवासियों के बीच में जाकर उनकी सेवा के नाम पर उनका धर्मांतरण करेंगे, तो उनकी पहचान बदल जाएगी। उनके सशक्तिकरण के नाम पर आप उनके कल्चर को कमजोर कर देंगे। मूल रूप से, आदिवासी की पहचान अगर आप खत्म कर देंगे तो फिर सेवा का कोई मतलब नहीं होता है।
मंत्री ने स्पष्ट किया कि आदिवासियों के लिए उनकी पहचान और सम्मान दोनों बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
जनजातीय समाज के प्रति बरती गई उपेक्षा को उजागर करते हुए, समाजशास्त्री एवं शिक्षिका डॉ. स्वीटी तिवारी ने कहा, हम ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ की बात करते हैं, लेकिन ‘गंगा-दामोदर तहज़ीब’ बात नहीं करते। उन्होंने कहा कि घोर अंधकार में भी जनजातीय समाज की लौ क्षीण नहीं हुई।
यह आयोजन आईजीएनसीए के जनपद सम्पदा विभाग द्वारा 'ज्ञानपथ शृंखला' के अंतर्गत किया गया था।
इस मौके पर मुख्य अतिथि किरन रिजिजू, राष्ट्रीय जनजातीय समाज के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य, सदस्य डॉ. आशा लकरा, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय सदस्य सुरेश कुलकर्णी, आईजीएनसीए के प्रमुख प्रो. के. अनिल और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रद्धा द्विवेदी

