भारतीय भाषा दिवस पखवाड़ा समापन समारोह संपन्न, मातृभाषा में न्याय और शिक्षा पर जोर

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भारतीय भाषा दिवस पखवाड़ा समापन समारोह संपन्न, मातृभाषा में न्याय और शिक्षा पर जोर


नई दिल्ली, 18 दिसंबर (हि.स.)। भारतीय विविध परिषद और भारतीय भाषा अभियान नेसंयुक्त रूप से भारतीय भाषा दिवस पखवाड़ा समापन समारोह में भारतीय भाषाओं की एकता और विविधता को देश की ताकत बताते हुए मातृभाषा में न्याय और शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया। समारोह में आए लोगों ने कहा कि भारतीय भाषाओं के माध्यम से ही आम जनता को न्याय व्यवस्था और शिक्षा से प्रभावी रूप से जोड़ा जा सकता है तथा महाकवि सुब्रमण्यम भारती जैसे राष्ट्रवादी विचारकों ने भाषा को राष्ट्रीय चेतना का माध्यम बनाया।

समारोह में मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. महादेवन ने कहा कि मां, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता। भारतीय भाषाओं की एकता और विविधता ही भारत की वास्तविक शक्ति है। महाकवि सुब्रमण्यम भारती ने अपने साहित्य और विचारों के माध्यम से राष्ट्र को जीवंत किया और राष्ट्रीय एकता को सर्वोपरि रखा।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि राज्यसभा सदस्य मनन कुमार मिश्रा और डॉ. अतुल कोठारी ने भी संबोधित किया। डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि वर्ष 2023 से पहले देश में कोई भारतीय भाषा दिवस नहीं मनाया जाता था। केंद्र सरकार ने 2023 में भारतीय भाषा दिवस मनाने का निर्णय लेकर इसे एक ऐसे महापुरुष के नाम से जोड़ा, जिनका स्मरण करते ही राष्ट्रीयता की भावना जागृत होती है। उन्होंने कहा कि अब तक अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता था, लेकिन भारतीयों के लिए भारतीय भाषा दिवस का विशेष महत्व है।

वरिष्ठ अधिवक्ता राघवेंद्र शुक्ल ने कहा कि सुब्रमण्यम भारती ने सदैव राष्ट्र को प्रथम स्थान दिया। देश में भारतीय भाषाओं पर ध्यान लगातार बढ़ रहा है। 8 दिसंबर से शुरू हुए भारतीय भाषा दिवस पखवाड़े के दौरान देशभर में 70 से अधिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिन्हें जनता ने उत्साहपूर्वक मनाया।

समारोह में अन्य प्रमुख अतिथियों में सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता जयदीप राय और दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता कृष्ण कुमार शर्मा शामिल रहे। कार्यक्रम के दौरान तमिल, हिंदी, पंजाबी, मराठी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में प्रस्तुतियां दी गईं। महाकवि सुब्रमण्यम भारती की जयंती के अवसर पर एक विशेष सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें उनके साहित्य और राष्ट्रवादी विचारों पर चर्चा हुई।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रशांत शेखर

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