Bakrid: ईद-उल-अजहा यानी कुर्बानी की ईद: क्यों मनाते हैं बकरीद, जानें इसके पीछे की कहानी

WhatsApp Channel Join Now

ईद-उल-अजहा (Eid-ul-Adha) एक अरबी शब्द है इसका मतलब ‘ईद-ए-कुर्बानी यानी बलिदान की भावना। इसे ‘कुर्बानी की ईद’ और सुन्नत-ए-इब्राहीम भी कहते हैं।' ईद-उल-फितर प्रेम और मिठास घोलती है, वहीं ईद-उल-जुहा अपने फर्ज (कर्तव्यों) के लिए कुर्बानी की भावना सिखाती है। इस दिन अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दी जाती है। आमतौर पर बकरों की कुर्बानी दी जाती है, लेकिन भैंस, बकरा, दुम्भा (भेड़) या ऊंट की भी कुर्बानी दी जाती है, लेकिन ऐसा क्यों है। इसके पीछे की क्या कहानी है। जानिए-

n
अल्लाह की राह में बेटे को कुर्बान करने निकले हजरत इब्राहीम

मुफ्ती अफ्फान असदी बताते हैं कि इस्लाम में इस दिन का बेहद महत्व है। वह बताते हैं कि हजरत इब्राहिम की अल्लाह ने आजमाइश (परीक्षा) के लिए हुक्म (आदेश) दिया। यह हुक्म दिया गया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान करें। हजरत इब्राहीम मुश्किल में पड़ गए कि आखिर क्या सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान करें। फिर उन्हें अपने बेटे हजरत इस्माइल का ख्याल आया और उन्होंने अपने बेटे को ही कुर्बान करने का इरादा मजबूत कर लिया। हजरत इब्राहीम को अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे, क्योंकि बेटे का जन्म 86 साल बाद हुआ था। 

n

हुक्म पर किया अमल, इसलिए अल्लाह ने बचाई बेटे की जिंदगी

इसके बाद वह अपने बेटे को कुर्बान करने निकल पड़े। बेटे की कुर्बानी देते समय उनके हाथ रुक न जाएं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली।  उन्होंने जैसे ही कुर्बानी के लिए हाथ चलाए और फिर आंखों पर बंधी पट्टी को हटाकर देखा तो उनके बेटा हजरत इस्माईल सही सलामत थे और रेत पर एक दुम्बा (भेड़) जिबाह (कटा) होकर पड़ा हुआ था, जबकि उनका बेटा सही सलामत था। अल्लाह ने उनको कर्तव्य की परीक्षा में पास मान लिया और उनके बेटे हजरत इस्माइल को जीवनदान दे दिया।  इस वाकये के बाद से ही कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ। जानवरों की कुर्बानी को अल्लाह का हुक्म और हजरत इब्राहीम की सुन्नत मान लिया गया। 

n

इन जानवरों को पालने के बाद देते हैं कुर्बानी

अरब में दुम्बा (भेड़), ऊंट की कुर्बानी दी जाती है। जबकि भारत में बकरे, ऊंट और भैंस की कुर्बानी दी जाती है।  अल्लाह सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने को कहा था, और अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के बेटे को बचाकर दुम्बा कुर्बान करा दिया। इसलिए अरब में दुम्बा की कुर्बानी का चलन शुरू हुआ। बकरे या अन्य जानवरों की भी कुर्बानी दी जाने लगी। जिन जानवरों की कुर्बानी देते हैं उसे कई दिन पहले से अच्छे से खिलाया-पिलाया जाता है।  उससे लगाव किया जाता है, फिर उसी की कुर्बानी दी जाती है। 

Share this story