तिमुंडिया पूजन के साथ बदरीनाथ धाम की यात्रा का आगाज
-बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से सप्ताह भर पहले शनिवार को होता है तिमुंडिया पूजा
जोशीमठ/देहरादून, 04 मई (हि.स.)। श्रीबदरीनाथ धाम के कपाट 12 मई को प्रात: छह बजे खुलेंगे। ऐसे में श्रीबदरीनाथ धाम यात्रा की सफलता एवं कुशलता के लिए शनिवार को श्रीनृसिंह मंदिर जोशीमठ में तिमुंडिया पूजा संपन्न हुई। ऐसी परंपरा है कि बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से सप्ताह भर पहले पड़ने वाले शनिवार को तिमुंडिया पूजा होता है। इसका उद्देश्य बदरीनाथ धाम की यात्रा का सुखद संचालन है। ऐसी मान्यता है कि तिमुंडिया पूजन से बदरीनाथ धाम की यात्रा निर्विघ्न संपन्न होती है।
अचंभित रह गए श्रद्धालु
पूजा-अर्चना के बाद तिमुंडिया वीर का आह्वान हुआ। भरत बैंजवाड़ी पर पश्वा (अवतारी पुरुष) तिमुंडिया वीर जागृत हुआ। उन्होंने पांच किलो से अधिक चावल-गुड़ कई घड़े पानी का भोग ग्रहण किया। यह देख सभी श्रद्धालु अचंभित रह गए। पश्वा ने श्रीबदरी विशाल यात्रा के निविघ्न शुरू होने का भी आशीर्वाद दिया।
चमत्कारिक दृश्य के साक्षी बने श्रद्धालु
इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन को पहुंचे थे। इस दौरान महिलाओं ने पारंपरिक झुमेलो और चाचड़ी नृत्य किया। इस चमत्कारिक दृश्य के साक्षी हजारों की तादाद में नरसिंह मंदिर प्रांगण में मौजूद श्रद्धालु बने। इस दौरान श्रीबदरीनाथ-श्रीकेदारनाथ मंदिर समिति के उपाध्यक्ष किशोर पंवार, डीजीसी प्रकाश भंडारी, भाजपा नेता सुभाष डिमरी, मंदिर समिति पूर्व सदस्य ऋषि प्रसाद, नरेश नौटियाल, भगवती प्रसाद नंबूदरी, गिरीश चौहान, राजेंद्र चौहान, विजेंद्र बिष्ट, कुलदीप भट्ट आदि थे।
ये है मान्यता
मान्यता है कि मां दुर्गा से स्थानीय लोगों ने तिमुंडिया के भय से बचाने की प्रार्थना की तो मां दुर्गा ने उसके तीन में से दो सिर काट दिए। डर के मारे एक सिर का तिमुंडिया छमा याचना कर मां दुर्गा की शरण में चला गया। मां दुर्गा ने तिमुंडिया को क्षमा कर वचन लिया कि तुम किसी भी आमजन को दु:खी नहीं करोगे। बाद में मां दुर्गा ने आशीर्वाद दिया कि जब भी श्रीबदरीनाथ धाम यात्रा शुरू होगी, उससे पहले श्रीनृसिंह मंदिर में तिमुंडिया की पूजा की जाएगी। इसी मान्यता के तहत हर वर्ष श्रीबदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पहले शनिवार को तिमुंडिया पूजा होती है।
कौन है तिमुंडिया वीर देवता
पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार तिमुंडिया वीर देवता जनपद चमोली के लांजी पोखनी के निकट के गांव हियूणा में राक्षस स्वरूप में रहते थे। वे नित्य एक ना एक मनुष्य की बलि लेकर गांव में भय फैलाता था। मान्यता है कि एक दिन जोशीमठ क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा अपने क्षेत्र भ्रमण पर निकली तो लोगों से उनकी भेंट हुई। मां दुर्गा से ग्रामीणों ने अपना दु:ख साझा किया और इस राक्षस का कुछ उपाय करने को कहा उसके बाद मां दुर्गा ने इस राक्षस को राक्षसी योनि से मुक्त कर देवयोनि प्रदान की और अपने साथ अपने क्षेत्र जोशीमठ में इस आश्वासन पर ले आई कि मां दुर्गा इस राक्षस को प्रतिवर्ष एक बकरे की बलि देगी और उसके बदले में यह राक्षस मां और मां के क्षेत्र की रक्षा करेगा। उस पौराणिक समय से तिमुंडिया को वीर देवता के नाम से पूजा जाने लगा और साल में एक बकरे की बलि आज भी दी जाती है।
मां दुर्गा ही कर पाती हैं काबू
पौराणिक समय से लेकर आज तक नरसिंह मंदिर में जब जब इस देव मेले का आयोजन होता है, तब अवतारी पुरुष पर तिमुंडिया वीर का आवेश आने पर मात्र मां दुर्गा ही उसे काबू करने में सक्षम हैं। जब तिमुंडिया वीर के अवतारी पुरुष पर वीर का अवतरण होता है, उससे कुछ मिनट पहले अवतारी पुरुष पर मां दुर्गा भी अवतरित होती हैं और इस वीर के बाल पकड़कर इसे काबू करती हैं। पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार वीर की प्रवृत्ति आज भी अत्यंत डरावनी और तेजवान है।
हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/आकाश
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