(अपडेट) इसरो का 'पुष्पक' सफल, स्पेस मिशन की लागत 10 गुना कम होगी
- चिनूक हेलीकॉप्टर से 4.6 किमी. की ऊंचाई पर हवा में छोड़ा गया रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल
- व्हीकल ने धीमी गति से उड़ान भरने के बाद लैंडिंग गियर के साथ एटीआर में लैंड किया
नई दिल्ली, 22 मार्च (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का शुक्रवार को सुबह लॉन्च व्हीकल ‘पुष्पक’ का परीक्षण पूरी तरह कामयाब रहा। पुष्पक को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर ने 4.5 किमी. की ऊंचाई से हवा में छोड़ा। इसरो का यह शटल बार-बार अंतरिक्ष में जाकर सुरक्षित धरती पर लौट सकता है। कर्नाटक के चित्रदुर्ग स्थित एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (एटीआर) में रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल ने खुद ही आधा घंटे बाद जमीन पर लैंड किया।
इसरो ने एक बयान में बताया कि इस रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल ऑटोनॉमस लैंडिंग मिशन को आज सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर कर्नाटक के चित्रदुर्ग के एटीआर से संचालित किया गया। आरएलवी लेक्स-2 को भारतीय वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर से 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाकर 4.6 किलोमीटर की ऊंचाई पर छोड़ा गया। इसके बाद रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल ने धीमी गति से उड़ान भरी। इसके कुछ देर बाद उसने लैंडिंग गियर के साथ खुद ही एटीआर में 7.40 बजे लैंड किया। यह परीक्षण सफल होने के बाद रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के सहारे रॉकेट को दोबारा लॉन्च किया जा सकता है।
इस परीक्षण में इसरो के साथ भारतीय वायु सेना, सेंटर फॉर मिलिट्री एयरवर्थनेस एंड सर्टिफिकेशन, वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान और एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ने योगदान दिया। इसरो बीते कुछ सालों में लगातार एक के बाद एक कामयाबी की इबारत लिख रहा है। इसी क्रम में यह परीक्षण भी एक और बड़ा कदम माना जा रहा है। इसरो इस पर काफी लंबे समय से काम कर रहा है कि कम लागत में कैसे अच्छी तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसरो ने पिछले साल 02 अप्रैल को आरएलवी लेक्स-1 का सफलतापूर्वक संचालन किया था।
इस दूसरे मिशन के साथ इसरो ने अंतरिक्ष में लौटने वाले वाहन की उच्च गति स्वायत्त लैंडिंग करने के लिए स्वदेशी रूप से विकसित प्रौद्योगिकियों को फिर से मान्य किया है। आरएलवी लेक्स-1 में उपयोग किए गए वाहन को उचित मंजूरी के बाद आरएलवी लेक्स-2 मिशन में पुन: उपयोग किया गया था। इसलिए इस मिशन में उड़ान हार्डवेयर और उड़ान प्रणालियों की पुन: उपयोग क्षमता का भी प्रदर्शन किया गया है। आरएलवी लेक्स-1 के अवलोकनों के आधार पर उच्च लैंडिंग भार को सहन करने के लिए एयरफ्रेम संरचना और लैंडिंग गियर को मजबूत किया गया था।
इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा कि आने वाले दिनों में इसरो अधिक से अधिक अनुसंधान और उसके डेवलपमेंट पर ध्यान देकर अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ा कामयाबी हासिल करेगा। यह एक स्वदेशी स्पेस शटल है, जिसे ऑर्बिटल री-एंट्री व्हीकल (ओआरवी) के नाम से भी जाना जाता है। आज का परीक्षण सफल होने के बाद भारत अंतरिक्ष में ना सिर्फ सैटेलाइट लॉन्च कर सकेगा, बल्कि भारत की आसमानी सुरक्षा और मजबूत होगी। ऐसी ही टेक्नोलॉजी का फायदा चीन, अमेरिका और रूस भी लेना चाहते है, क्योंकि ऐसे यानों की मदद से किसी भी दुश्मन के सैटेलाइट्स को उड़ाया जा सकता है।
इतना ही नहीं, इन विमानों से डायरेक्टेड एनर्जी वेपन भी चलाया जा सकता है, जिससे दुश्मन की संचार तकनीक को ऊर्जा की किरण भेजकर खत्म किया जा सके। भारत इसी यान की मदद से अपने दुश्मन के इलाके में किसी कंप्यूटर सिस्टम को नष्ट करने या बिजली ग्रिड उड़ाने में सक्षम हो सकता है। इसरो इस प्रोजेक्ट को 2030 तक पूरा करने की तैयारी में है, ताकि बार-बार रॉकेट बनाने का खर्च बच सके। ये सैटेलाइट को अंतरिक्ष में छोड़कर वापस लौट आएगा, जिससे स्पेस मिशन की लागत 10 गुना कम हो जाएगी।
हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत/पवन
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