गैलेक्सी में आयनित ऑक्सीजन का केवल 50% सीजीएम से, बाकी आईजीएम से
नई दिल्ली, 19 दिसंबर (हि.स.)। भारतीय वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि आकाशगंगाओं (गैलेक्सी) के चारों ओर मौजूद गैसीय घेरे यानी ‘हेलो’ के द्रव्यमान को मापने की मौजूदा पद्धति सटीक नहीं है और आयनित ऑक्सीजन के स्राेत को लेकर पूर्व की अवधारणा भी त्रुटिपूर्ण है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) के वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन के अनुसार, आकाशगंगा के आसपास मौजूद अंतर-आकाशगंगीय माध्यम (आईजीएम) का प्रभाव अब तक समझे गए अनुमान से कहीं अधिक हो सकता है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, किसी भी आकाशगंगा के बाहर एक विशाल और धुंधला सा आवरण फैला होता है, जिसे हेलो कहा जाता है। इस हेलो में गैस और रहस्यमय डार्क मैटर मौजूद होता है। हेलो के भीतर मौजूद गैसीय हिस्से को ‘सर्कमगैलेक्टिक मीडियम’ (सीजीएम) कहा जाता है, जबकि इसके बाहर का क्षेत्र ‘इंटरगैलेक्टिक मीडियम’ (आईजीएम) कहा जाता है। अब तक वैज्ञानिकों का मानना था कि देखी जाने वाली आयनित ऑक्सीजन ज्यादातर सीजीएम से ही आती है।
अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने बताया कि इसकी निगरानी के दौरान वैज्ञानिक दूर चमकीली आकाशगंगाओं से आने वाले प्रकाश का अध्ययन करते हैं। जब यह प्रकाश किसी दूसरी आकाशगंगा के सीजीएम से गुजरता है, तो कुछ तत्व खास तरंगदैर्ध्य को अवशोषित कर लेते हैं। इन्हीं संकेतों के आधार पर सीजीएम के द्रव्यमान का अनुमान लगाया जाता है। लेकिन, इसमें समस्या यह है कि प्रकाश के रास्ते में सीजीएम और आईजीएम दोनों आते हैं, जिससे दोनों को अलग-अलग पहचान पाना बहुत मुश्किल होता है।
आरआरआई के खगोल भौतिक विज्ञानिक और इस शोध के लेखक डॉ. कार्तिक सरकार के अनुसार ने बताया कि नया अध्ययन इस धारणा को चुनौती देता है कि देखी जाने वाली सारी आयनित ऑक्सीजन सीजीएम से ही आती है। शोध में गणितीय मॉडल के जरिए यह दिखाया गया है कि आयनित ऑक्सीजन का एक बड़ा हिस्सा आईजीएम से भी आ सकता है। इसका मतलब यह है कि सीजीएम का द्रव्यमान अब तक ज्यादा आंका जा रहा था।
डॉ. सरकार ने इसे एक सरल उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे किसी जादूगर के चारों ओर भीड़ इकट्ठा हो जाती है, लेकिन भीड़ की एक सीमा होती है। जादूगर आकाशगंगा है, भीड़ सीजीएम है और उसके बाहर का क्षेत्र आईजीएम है। जैसे-जैसे आकाशगंगा बड़ी होती है, सीजीएम भी बड़ा होता है, लेकिन इसके बाहर आईजीएम का प्रभाव भी बना रहता है।
अध्ययन के अनुसार, हमारी मिल्की-वे जैसी बड़ी आकाशगंगाओं में देखी जाने वाली आयनित ऑक्सीजन का केवल करीब 50 प्रतिशत हिस्सा सीजीएम से आता है, जबकि बाकी आईजीएम से आता है। छोटी आकाशगंगाओं में यह और भी कम होकर लगभग 30 प्रतिशत तक हो सकता है।
यह अध्ययन आकाशगंगाओं के निर्माण और विकास को समझने में बेहद अहम है। इससे यह भी साफ होता है कि भविष्य में सीजीएम से जुड़े अध्ययनों की व्याख्या करते समय आईजीएम के योगदान को जरूर ध्यान में रखना होगा। आरआरआई के वैज्ञानिक अब इस मॉडल को और अधिक वास्तविक व व्यापक बनाने पर काम कर रहे हैं, ताकि इस अंतर को सटीक रूप से मापा जा सके।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रशांत शेखर

