बिमल गुरुं ग ने ममता को पत्र लिखकर जीटीए चुनाव स्थगित करने की मांग की
पत्र में गुरुंग ने जोर देकर कहा कि इस स्थायी राजनीतिक समाधान के तरीके खोजने के लिए इस मुद्दे पर एक द्विदलीय चर्चा बेहद जरूरी है।
इस पत्र के बाद इस बात को लेकर आशंकाएं जताई जा रही हैं कि क्या भविष्य में पहाड़ियों पर फिर उथल-पुथल मचेगी।
उत्तर बंगाल और पूर्वोत्तर भारत के मामलों के विशेषज्ञ और द बुद्धा एंड द बॉर्डर्स पुस्तक के लेखक, निर्माल्य बनर्जी ने कहा कि हालांकि गुरुं ग के पत्र में केवल 11 गोरखा संप्रदायों के लिए अनुसूचित जनजाति की स्थिति का उल्लेख है, लेकिन ऐसा नहीं है, स्थायी राजनीतिक समाधान ही एकमात्र उपाय है।
इसलिए, उनके अनुसार कोई भी गारंटी नहीं दे सकता कि अगले चरण में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग नहीं उठेगी।
उनके अनुसार, हालांकि जीजेएम और गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) दोनों ही जीटीए चुनावों के खिलाफ हैं, लेकिन इन टो पहाड़ी ताकतों के दृष्टिकोण में बुनियादी अंतर है।
जीएनएलएफ, जो पहाड़ियों में भाजपा की सहयोगी है, जीटीए के बिल्कुल खिलाफ है।
उन्होंने कहा, हालांकि, जीजेएम चाहता है कि जीटीए बना रहे, लेकिन इसके चुनाव स्थायी राजनीतिक समाधान के बाद ही होने चाहिए। अब फिर सवाल उठता है कि वास्तव में स्थायी राजनीतिक समाधान क्या है। इस संबंध में गुरुंग के पत्र में यह ग्रे क्षेत्र है।
--आईएएनएस
एसजीके/एएनएम
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