दिव्यांग बच्ची से दुष्कर्म व हत्या के दोषी की मौत की सजा बरकरार

दिव्यांग बच्ची से दुष्कर्म व हत्या के दोषी की मौत की सजा बरकरारनई दिल्ली, 24 जून (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग एक साढ़े सात साल की बच्ची की निर्मम हत्या और नृशंस दुष्कर्म के लिए एक व्यक्ति को दी गई मौत की सजा बरकरार रखी।

शीर्ष अदालत ने राजस्थान उच्च न्यायालय के 29 मई, 2015 के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें दोषी को मौत की सजा सुनाई गई थी।

जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी.टी. रविकुमार की तीन जजों की बेंच ने कहा: वर्तमान प्रकृति के मामले में, अपराध अत्यधिक क्रूरता का था, जो अंतरात्मा को झकझोर देता है, विशेष रूप से लक्ष्य को देखते हुए (साढ़े सात वर्षीय मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग लड़की) और फिर, हत्या करने के तरीके को देखते हुए, जहां असहाय पीड़ित का सिर सचमुच कुचल दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप कई चोटें आईं, जिसमें सामने की हड्डी का फ्रैक्च र भी शामिल था।

पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा किए गए अपराधों की प्रकृति और उसके आचरण को देखते हुए बिना किसी छूट के पूरे प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास की सजा देने का विकल्प भी उचित नहीं लगता है। आरोपी मनोज प्रताप सिंह ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग लड़की के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या दुर्लभतम मामले की श्रेणी में आती है।

शीर्ष अदालत ने कहा: भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 302 के तहत अपराध के लिए मौत की सजा सहित अपीलकर्ता को दी गई सजा की भी पुष्टि की जाती है। आरोपी ने 17 जनवरी 2013 को बच्ची का अपहरण कर बेरहमी से बलात्कार और हत्या कर दी थी।

--आईएएनएस

आरएचए/एएनएम

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