अमेरिका और चीन के राजदूत की वापसी के बयान पर यूएमएल महासचिव घिरे
काठमांडू, 24 दिसंबर (हि.स.)। सीपीएन-यूएमएल के महासचिव शंकर पोखरेल नेपाल की संवेदनशील भू-राजनीतिक स्थिति से राजदूतों की वापसी को जोड़ने वाले बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना हो रही है। हालांकि, आलोचनाओं के बीच यूएमएल के कुछ समर्थक पोखरेल के बयान का समर्थन करते भी नजर आए, जबकि अन्य लोगों ने इसे भ्रामक बताया।
देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पोखरेल ने मंगलवार देर रात फेसबुक पर पोस्ट करते हुए दावा किया कि नेपाल की भू-राजनीति एक नाजुक दौर में है, क्योंकि प्रमुख शक्तिशाली देशों के राजदूत एक साथ अपने-अपने देश लौटने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने लिखा, “नेपाल की भू-राजनीति बहुत संवेदनशील स्थिति में है, यह बात प्रमुख शक्तियों के देशों के राजदूतों के एक साथ लौटने की योजना से समझी जा सकती है।”
हालांकि, उनके इस बयान के बाद पत्रकारों और विश्लेषकों ने उनकी कड़ी आलोचना की और उनके भू-राजनीति तथा कूटनीतिक मानदंडों की समझ पर सवाल उठाए। आलोचकों ने स्पष्ट किया कि चीन के राजदूत अपने कार्यकाल की समाप्ति और पदोन्नति के बाद लौट रहे हैं, जबकि अमेरिकी राजदूत की वापसी अमेरिका की आंतरिक नीति के तहत लगभग 30 देशों से राजदूतों और कूटनीतिक अधिकारियों को वापस बुलाने के फैसले का हिस्सा है।
पत्रकार अनिल गिरी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “इतनी कमजोर जानकारी और समझ के साथ कोई यूएमएल जैसी पार्टी का नेता कैसे बन सकता है?” उन्होंने कहा कि चीनी राजदूत की वापसी कार्यकाल पूरा होने और पदोन्नति के कारण है, जबकि अमेरिका का फैसला पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति के तहत कई देशों से राजदूतों को वापस बुलाने की प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि “चीन और अमेरिका ने वर्तमान सुशीला कार्की नेतृत्व वाली सरकार से असंतुष्टि के कारण अपने राजदूत वापस नहीं बुलाए हैं।”
राजनयिक मामलों के पत्रकार पर्शुराम काफ्ले ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नेपाल की संवेदनशील भू-राजनीति का राजदूतों की वापसी से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने लिखा, “एक राजदूत कार्यकाल पूरा होने के बाद लौट रहा है, जबकि दूसरा अपने देश की आंतरिक योजना के तहत। उस देश ने नेपाल ही नहीं, बल्कि 29 से अधिक देशों से अपने राजदूत वापस बुलाए हैं।”
पत्रकार राजेश बराल ने भी टिप्पणी करते हुए पोखरेल के बयान पर सवाल उठाए और कहा कि यह सामान्य कूटनीतिक प्रक्रिया है, न कि नेपाल से जुड़ा कोई भू-राजनीतिक कदम।
इस प्रकरण ने सोशल मीडिया पर यह व्यापक बहस छेड़ दी है कि वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं से अंतरराष्ट्रीय संबंधों और भू-राजनीति जैसे संवेदनशील विषयों पर टिप्पणी करते समय कितनी जिम्मेदारी और सावधानी की अपेक्षा की जाए।
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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज दास

