चीन के ऋण में डूबे पोखरा अंतरराष्ट्रीय विमान स्थल को नहीं मिली एक भी उड़ान, सलाना डेढ़ अरब का घाटा
काठमांडू, 01 जनवरी (हि.स.)। पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का उद्घाटन हुए आज ठीक एक वर्ष हो गया है लेकिन आज तक एक भी अन्तरराष्ट्रीय उड़ान नहीं मिल पाई है। चीन के 25 अरब रुपये ऋण के बोझ तले दबे इस विमानस्थल को सलाना करीब डेढ़ अरब रुपये का घाटा हो रहा है। उधर, चीन की तरफ से ऋण के ब्याज के लिए लगातार तकादा करने से सरकार की परेशानी बढ़ गई है।
पिछले वर्ष आज के ही दिन यानि 1 जनवरी 2023 को सरकार ने बड़ी धूमधाम से इस अन्तरराष्ट्रीय विमानस्थल का उद्घाटन किया था। वैसे तो चीन ने इस विमान स्थल निर्माण के लिए 25 अरब रुपये का ऋण दिया था लेकिन उद्घाटन के दिन मंच पर मौजूद चीनी राजदूत से लेकर बीजिंग में रहे चीन के विदेश मंत्रालय तक ने इस परियोजना को बीआरआई के अन्तर्गत रहने की घोषणा कर दी थी।
नेपाल की वामपंथी सरकार इस विमान स्थल के नहीं चलने के पीछे की वजह भारत को बता रही है। भारत ने कभी भी इस विमान स्थल से किसी उड़ान को लेकर कोई अनुमति नहीं दी। इसके पीछे इस परियोजना में चीन सरकार का निवेश ही नहीं बल्कि रणनीतिक और सामरिक रूप से चीन द्वारा किया गया षडयंत्र है। भारत के अलावा चीनी सरकार ने भी पोखरा विमान स्थल पर नियमित उड़ानों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है, जिसे अपने ऋण की मदद से बनाया गया था।
गत वर्ष सितंबर 2023 में प्रधानमंत्री की चीन की उच्च स्तरीय यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच विभिन्न राजनीतिक और राजनयिक चर्चाओं और बैठकों में, पोखरा विमानस्थल के लिए नियमित उड़ानों के लिए चीनी पक्ष से बार-बार अनुरोध किया गया लेकिन चीन ने दो चार चार्टर्ड फ्लाइट के अलावा कभी इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई जिस कारण पोखरा अंतरराष्ट्रीय विमान स्थल के निर्माण योजना, उद्देश्य और भविष्य पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है।
पूरी तरह परिचालन में आ चुके इस विमान स्थल को एक साल के बाद भी कोई कारोबार नहीं मिलने से सालाना डेढ़ अरब रुपये से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ रहा है। चीन के तरफ से भले ही एक भी नियमित उड़ान उपलब्ध नहीं कराया गया लेकिन अपने द्वारा दिए गए ऋण के ब्याज के भुगतान को लेकर वो बहुत ही मुस्तैद है। दोनों देशों के बीच हुए समझौते के तहत पिछले वर्ष यानि 2022 से ही चीन इसके नियमित ब्याज भुगतान के लिए नेपाल सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था।
समझौते के अनुसार, नेपाल सरकार की गारंटी के तहत नागरिक उड्डयन प्राधिकरण द्वारा लिए गए 25 अरब रुपये बराबर चीनी ऋण की पुनर्भुगतान अवधि 20 वर्ष तय की गई है। पहले 6 साल की छूट अवधि तय है। इसका मतलब है कि नेपाल को 6 साल तक कर्ज पर कोई ब्याज नहीं देना होगा। लेकिन सितम्बर 2022 से शुरू होने वाली ऋण भुगतान की किस्तों के लिए, नेपाल सरकार को शेष 14 वर्षों में 51 अरब 72 करोड़ 23 लाख 14 हजार रुपये (मूलधन और ब्याज) का भुगतान करना होगा।
चीन का यह ऋण पांच प्रतिशत के महंगे ब्याज पर मिला है। आमतौर पर विश्व बैंक, एशियाई बैंक या कोई अन्य बड़े देश के ऋण का ब्याज अधिकतम 2.5 प्रतिशत और समयावधि भी 30 से 40 वर्षों का होता है लेकिन चीन के द्वारा लिए गए ऋण का ब्याज दर पांच प्रतिशत है और ऋण चुकता अवधि सिर्फ 20 वर्षों की है। नेपाल सरकार को ब्याज के रूप में ही चीनी पक्ष को करीब 17 अरब रुपये देना होगा।
हिन्दुस्थान समाचार / पंकज दास /प्रभात
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