नेपाल सरकार के टीआरसी बिल पर तीन अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं ने आपत्ति जताई

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नेपाल सरकार के टीआरसी बिल पर तीन अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं ने आपत्ति जताई


काठमांडू, 21 अगस्त (हि.स.)। नेपाल सरकार की प्रतिनिधि सभा से पारित किए हुए संक्रमणकालीन न्याय संबंधी विधेयक के कई प्रावधानों को लेकर तीन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने विरोध जताया है। नेपाल की शांति प्रक्रिया से संबंधित ट्रांजिशनल जस्टिस (टीआरसी) बिल पर तीनों संगठनों ने इसमें आवश्यक सुधार करने की मांग की है। यह बिल इस समय उच्च सदन में रखा गया है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच और इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स ने एक संयुक्त बयान में संसद की प्रतिनिधि सभा से पारित टीआरसी विधेयक के कई प्रावधानों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने की मांग की गई है। इस कानून को अंतरराष्ट्रीय कानूनी मानकों के अनुरूप बनाने के लिए नेपाल की संसद को इसमें गंभीर जवाबदेही के साथ पुनरावलोकन करने की मांग की गई है। इन तीन अन्तरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों का दावा है कि संसद के निचले सदन से पारित संक्रमणकालीन न्याय कानून में कई सकारात्मक बातें हैं लेकिन वांछित सफलता प्राप्त करने के मामले में यह कमजोर है।

संयुक्त बयान के मुताबिक अदालतों, संक्रमणकालीन न्याय आयोगों और अटॉर्नी जनरल के कार्यालय सहित न्याय प्रशासन में शामिल सभी संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय कानून और नेपाल के संविधान के आधार पर विधेयक में सुधार लाने की मांग की गई है। बयान में यह भी कहा गया है कि नेपाल में संक्रमणकालीन न्याय कई वर्षों से लंबित है और नया कानून पीड़ितों को न्याय प्रदान करने, कानून के शासन को मजबूत करने और इस क्षेत्र में एक सकारात्मक मिसाल कायम करने का अवसर हो सकता है।

ह्यूमन राइट्स वॉच की एशिया उप निदेशक मिनाक्षी गांगुली ने कहा कि न्याय के बिना मुआवज़े को प्रोत्साहित करने की परम्परा से न्याय के प्रति लोगों का विश्वास उठ सकता है। न्याय पर भरोसा बनाए रखने के लिए दोषियों को सजा और पीडितों को मुआवजा दोनों ही प्रावधान को साथ में रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि नए कानून में कई महत्वपूर्ण सुधार और सकारात्मक प्रावधान शामिल हैं लेकिन इसके कुछ हिस्सों को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे युद्धकालीन अपराधों के लिए जिम्मेदार लोगों को अभियोजन से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स की वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय कानूनी सलाहकार मंदिरा शर्मा ने कहा कि अगर कानून में मौजूदा कमियों को दूर नहीं किया गया तो संक्रमणकालीन न्याय प्रक्रिया के समग्र परिणाम को खतरे में डालने और पीड़ितों के प्रभावी न्याय पाने के अधिकार से वंचित पराजित करने की संभावना है। उनका तर्क है कि संशोधनों के साथ विधेयक को मंजूरी देने के बाद नेपाली अधिकारियों को संक्रमणकालीन न्याय का समर्थन करने के लिए वित्तीय निधि प्रबंधन के लिए एक निगरानी प्रणाली विकसित और कार्यान्वित करनी चाहिए।

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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज दास / सुनीत निगम

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