डॉ. रागिब नईमी का पाकिस्तान के कट्टरपंथियों पर प्रहार, कहा-किसी भी कानून में कुरान के अपमान पर मौत की सजा का प्रावधान नहीं

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डॉ. रागिब नईमी का पाकिस्तान के कट्टरपंथियों पर प्रहार, कहा-किसी भी कानून में कुरान के अपमान पर मौत की सजा का प्रावधान नहीं


इस्लामाबाद, 30 अगस्त (हि.स.)। पाकिस्तान के कट्टरपंथियों पर काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (सीआईआई) के अध्यक्ष डॉ. रागिब हुसैन नईमी ने बड़ा शाब्दिक हमला किया है। उन्होंने कहा है, कोई भी कानून पवित्र कुरान के अपमान के लिए मौत की सजा का प्रावधान नहीं करता है, लेकिन धार्मिक तत्व संदिग्धों को मारने के लिए भीड़ का सहारा लेते हैं। यह न केवल गैर-इस्लामिक, बल्कि पाकिस्तान के कानून के विपरीत भी है।

डॉन अखबार के अनुसार, डॉ. रागिब ने राजधानी इस्लामाबाद स्थित सीआईआई कार्यालय में गुरुवार को मीडिया से कहा, ईश निंदा कानून में चार अलग-अलग सजा का प्रावधान है। पवित्र कुरान के अपमान की सजा आजीवन कारावास है। पवित्र पैगंबर (उन पर शांति हो) के परिवार के सदस्यों और उनके साथियों (सहाबा) का अपमान करने की सजा सात साल की कैद है। कादियानियत निषेध अध्यादेश के उल्लंघन की सजा तीन साल है। कानून में केवल पवित्र पैगंबर के खिलाफ ईश निंदा करने का दोषी साबित होने वाले व्यक्ति के लिए मौत की सजा की परिकल्पना की गई है। लेकिन धार्मिक समूहों का मानना ​​है कि सभी चार अपराधों की सजा एक ही है- मौत। ऐसे लोग कानून को अपने हाथ में लेते हैं।

उन्होंने कहा, धार्मिक संगठन अपनी पसंद और नापसंद के अनुरूप इस्लामी कानूनों में हेरफेर करते हैं। किसी को भी ईश निंदा करने के संदेह में किसी व्यक्ति की हत्या के लिए फतवा जारी करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए जन भावनाओं से खेलने के लिए धार्मिक तत्वों की आलोचना की। मीडिया ने उनका ध्यान आकर्षित कराया कि सीआईआई उन मौलवियों की पहचान करने और उन्हें अलग-थलग करने में विफल रही जो भड़काऊ बयान जारी करते हैं या ईश निंदा पर जनता को उकसाते हैं। इस पर सीआईआई अध्यक्ष ने अपना हालिया अनुभव सुनाया।

डॉ. रागिब ने कहा, “मैंने घोषणा की थी कि पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश की मौत का फतवा हराम था। इसके तुरंत बाद मुझे 500 से अधिक धमकी भरे संदेश मिले। इनमें से कुछ में अपमानजनक भाषा थी। उन्होंने माना कि धार्मिक समूहों के उदारवादी नेता कट्टरपंथियों से डरते हैं। उन्होंने कहा कि हत्या करने का फतवा जारी करना या कानून हाथ में लेना गैरकानूनी, असंवैधानिक और शरिया के सिद्धांतों के खिलाफ है। शरिया किसी भी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की जान लेने का अधिकार नहीं देता है। उन्होंने समाज में बढ़ती असहिष्णुता पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, यह सभी मामलों में स्पष्ट है कि केवल राज्य के पास ही ईश निंदा के दोषी पाए गए लोगों को दंडित करने का अधिकार है।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद

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