शख्सियत: उस्ताद विलायत ख़ाँ ने सितार वादन में अपनी एक अलग शैली विकसित की थी
अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सितार वादक उस्ताद विलायत ख़ाँ का जन्म 28 अगस्त, 1928 को तत्कालीन पूर्वी बंगाल के गौरीपुर नामक स्थान पर एक संगीतकार परिवार में हुआ था। सितार के इस महान् वादक को फेफड़े के कैंसर ने अपनी चपेट में ले लिया था। इसके इलाज के लिए वे मुंबई के ''जसलोक अस्पताल'' में भर्ती हुए थे। यहीं पर उन्होंने अपने जीवन की अंतिम साँसें लीं। 13 मार्च, 2004 को उनका निधन हुआ।
सितार वादन व संगीत के क्षेत्र में विलायत खां के विशेष योगदान के लिए उन्हें 1964 में ''पद्मश्री'' और 1968 में ''पद्मविभूषण'' सम्मान दिए गए थे, किंतु उन्होंने ये कहते हुए कि भारत सरकार ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान का समुचित सम्मान नहीं किया, दोनों सम्मान ठुकरा दिए । विलायत खां ने सितार वादन की अपनी अलग शैली, गायकी शैली, विकसित की थी, जिसमें श्रोताओं पर गायन का अहसास होता था। सितार वादन में संगीत सीधे आत्मा से निकलता है और अच्छा संगीत बिना कहे अपनी बात दुनिया तक पहुंचाता है। सितार वादन में उन्होंने अपनी एक अलग शैली विकसित की थी। सितार-वादन में तंत्रकारी कौशल के साथ-साथ गायकी अंग की स्पष्ट झलक मिलती है। एक ऐसा कलाकार, जो इतनी पीढ़ियों की विरासत को न सिर्फ संभाल कर चल रहा हो, बल्कि उसमें बहुत कुछ जोड़ भी रहा हो, नाराज हो ही जाता है, जब उसका देश उसकी काबिलियत को नजरअंदाज कर दे।
आजाद भारत के वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इंग्लैंड जाकर संगीत का कार्यक्रम पेश किया। अच्छा संगीत बिना कहे अपनी बात दुनिया तक पहुंचाता है। सितार वादन को न सिर्फ गायकी अंग से जोड़ा, बल्कि सितार के सुरों में भी कई ऐसे बदलाव किए, जिसके बाद यह वाद्ययंत्र अब नए अवतार में नजर आता है। सितार के बजने पर अब ऐसा लगता है, जैसे कोई गा रहा है। विलायत खां ने सितार वादन की अलग गायन शैली विकसित की, जिसमें सुनने वालों को स्पष्ट अक्षरों के गायन होता महसूस होता है।
हिन्दुस्थान समाचार/ लोकेश चंद्रा/सुनील
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