फिल्म समीक्षा: समाज को अपने अंदर झांकने के लिए मजबूर करती है 'आयुष्मती गीता मैट्रिक पास'

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फिल्म समीक्षा: समाज को अपने अंदर झांकने के लिए मजबूर करती है 'आयुष्मती गीता मैट्रिक पास'


महिला शिक्षा और सशक्तिकरण पर पहले भी अलग-अलग भाषाओं में कई फिल्में बन चुकी हैं लेकिन देश में बच्चियों और महिलाओं के प्रति हमारे समाज की सोच आज भी कई मायनों में पुरानी है। सरकारें की योजनाएं भी तब तक सफल नहीं होंगी, जब तक हमारा समाज और हम खुद महिलाओं बेटियों के बारे में नहीं सोचेंगे। इन्हीं सब विषयों को केंद्र में रखकर फिल्म 'आयुष्मती गीता मैट्रिक पास' बनाई गई है, जो दर्शकों के मन मस्तिष्क पर एक गहरी छाप छोड़ने के साथ ही समाज को अपने अंदर झांकने और नए सिरे से सोचने के लिए तैयार करती है।

फिल्म की कहानी की शुरुआत बनारस के पास विद्वानपुर नाम के छोटे से गांव के निवासी और प्रग्रेसिव सोच वाले पंडित विद्याधर त्रिपाठी से होती है, जो अपनी मोपेड रोककर सड़क के किनारे लगे 'बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ' के बड़े से साइन बोर्ड को निहारकर सरकार की इस पहल की प्रशंसा कर रहे हैं। दूसरी तरफ, गांव वालों को उनकी यह बात मूर्खतापूर्ण लगती है कि भला लड़कियों को चूल्हा चौका छुड़ाकर पढ़ाने में कौन पैसे खर्च करता है। फ़िल्म की मूल कहानी यहीं से शुरू हो जाती है कि गांव का एक बड़ा हिस्सा एक तरफ और पंडितजी और उनकी प्रोग्रेसिव सोच दूसरी तरफ दिखाई देती है। इन्हीं दोनों पक्षों की खींचतान से आगे बढ़ती है फिल्म 'आयुष्मती गीता मैट्रिक पास' की कहानी।

फिल्म की कहानी में पहला मोड़ तब आता है जब कुंदन (अनुज सैनी) अपनी मां (अलका अमीन) के साथ गीता (कशिका कपूर) से शादी की बात करने उसके घर आता है। उसी समय गीता का मैट्रिक का रिजल्ट आ जाता है, जिसमें गीता फेल हो जाती है। इस बात से गीता और पंडितजी इतने दुखी होते हैं कि उन्होंने कुंदन और उसकी मां को यह कहकर लौटा दिया कि जब तक गीता मैट्रिक पास नहीं कर लेती, तब तक गीता के विवाह के बारे में सोच भी नहीं सकते। क्या गीता अपने पिता और दिवंगत मां का वचन पूरा कर पाएगी, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। फिल्म के अगले भाग में गीता और कुंदन की लव स्टोरी परवान चढ़ती है। कहानी में दूसरा मोड़ तब आता है जब गांव वालों की किसी गलतफहमी के कारण बवाल हो जाता है, जिससे गीता, कुंदन और पंडितजी की जिंदगी में भी उथल-पुथल मच जाती है।

फिल्म में सभी कलाकारों ने अपने किरदार के साथ भरपूर न्याय किया है। गीता के रोल में कशिका कपूर ने बहुत ही शानदार डेब्यू किया है। उन्होंने एक ग्रामीण लड़की के किरदार को अत्यंत सहज और सुंदर ढंग से परदे पर उतारा है। गीता के पिता के रोल में अतुल श्रीवास्तव ने अपना पूरा अनुभव उड़ेल दिया है। अपने अनोखे अंदाज़, फेशियल एक्सप्रेशन और डायलॉग डिलिवरी से वो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। बात की जाए अनुज सैनी की तो उनका क्यूट लुक दर्शकों को बहुत पसंद आने वाला है। फिल्म में उनके किरदार की मांग के हिसाब से उनका इनोसेन्ट फेस मैच करता है, जिसका उनको भरपूर लाभ मिला है। अब बात करते हैं प्रणय दीक्षित की, जो कि फिल्म में कुंदन के दोस्त का किरदार निभा रहे हैं और अपनी कॉमिक टाइमिंग से सबको हंसा हंसा कर लोटपोट कर देते हैं। अभिनेत्री अल्का अमीन ने कुंदन की मां का रोल बखूबी निभाया है। वरिष्ठ अभिनेत्री अलका अमीन ने कुंदन की मां (मालती देवी) के रोल में बहुत ही शानदार अभिनय किया हैं। सपोर्टिंग कास्ट भी अच्छी रही है।

निर्देशक प्रदीप खैरवार की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बिना किसी फूहड़ता और मेलोड्रामा के गीता और कुंदन के बीच बहुत ही सादगी से रोमांस फ़िल्माया है। प्रदीप खैरवार फ़िल्म की कहानी की गंभीरता को अच्छे से समझते हैं, इसलिए दर्शकों की रुचि बनाए रखने के लिए नाटकीयता और रियलिटी में संतुलन बनाने में सफल रहे हैं। उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र का माहौल, भाषा शैली, बॉडी लैंग्वेज का अच्छा ध्यान रखा है। रियल लोकेशन पे शूट की गई फिल्म गांव का पूरा फ़ील देती है और फ़िल्म की कहानी को पर्दे पर असरदार तरीके से दर्शाने में सफल होती है।

फिल्म में म्यूजिक देने वाले संजीव आनंद झा कमाल कर दिया है। फिल्म से सभी गाने बहुत सुरीले हैं लेकिन 'अंखियों से मुझे जो तू छू के गया' दर्शकों के दिल को छू लेता है। 18 अक्टूबर को रिलीज होने वाली यह पारिवारिक फिल्म है, जिसे बच्चे, जवान, प्रौढ़ और बुजुर्ग एक साथ बैठकर ना केवल आनंद उठा सकते हैं, बल्कि बेटियों और महिलाओं के प्रति हम कैसी सोच रखें, यह सीखा भी जा सकता है।

फिल्म समीक्षा : आयुष्मती गीता मैट्रिक पास

कलाकार : कशिका कपूर, अनुज सैनी, अतुल श्रीवास्तव, प्रणय दीक्षित, अलका अमीन

निर्देशक : प्रदीप खैरवार

निर्माता : प्रदीप खैरवार, शानू सिंह

रेटिंग: 3.5 स्टार

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हिन्दुस्थान समाचार / लोकेश चंद्र दुबे

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