फिल्म समीक्षा: थिएटर से निकलने के बाद 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' के दर्शकों का फीका पड़ा उत्साह

फिल्म समीक्षा: थिएटर से निकलने के बाद 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' के दर्शकों का फीका पड़ा उत्साह
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फिल्म समीक्षा: थिएटर से निकलने के बाद 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' के दर्शकों का फीका पड़ा उत्साह


बॉलीवुड एक्टर रणदीप हुडा की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ 22 मार्च सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यह फिल्म गांधी जी और नेहरू जी के दौर से पहले देश की खातिर अपना सब कुछ दांव पर लगा देने वाले नायकों की दर्दनाक संघर्ष बताती है। इस फिल्म को लेकर दर्शकों में काफी उत्साह था लेकिन थिएटर से निकलने के बाद दर्शकों का उत्साह कहीं फीका पड़ता नजर आ रहा है। फिल्म को समीक्षकों से भी अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला।

‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ की कहानी

स्वतंत्रता सेनानी सावरकर के जीवन की समीक्षा करने वाली इस फिल्म की कहानी विनायक दामोदर सावरकर के बचपन से शुरू होती है। उन्होंने बचपन में ही अपनी मां की छत्रछाया खो दी थी और एक महामारी के चलते युवावस्था में ही अपने पिता को भी खो दिया। हालांकि, मृत्यु से पहले पिता ने अपने बेटे सावरकर को ‘क्रांतिकारी मत बनो’ की चेतावनी दी थी। इसके बावजूद विनायक दामोदर सावरकर ने क्रांतिकारी बनने का मन बना लिया था। सावरकर ने एक गुप्त संगठन अभिनव भारत संगठन की शुरुआत की।

फिल्म में दिखाया गया है कि उनके बड़े भाई गणेश सावरकर भी अपने भाई के हर क्रांतिकारी कदम में उनका साथ देने के लिए डटे रहे। अपने भाई को लंदन में पढ़ाने के लिए गणेश सावरकर ने अपने ससुर से आर्थिक मदद ली। इस फिल्म में विनायक दामोदर सावरकर के पूरे जीवन की समीक्षा की गई है। विदेश में शिक्षा, फिर जेल से लेकर काला पानी की सज़ा, आख़िरकार कई सालों बाद विनायक दामोदर सावरकर की घर वापसी, ये सारी घटनाएं फिल्म में देखने को मिलती हैं।

कलाकारों ने दी है शानदार परफॉर्मेंस

फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ में हमेशा की तरह इस बार भी रणदीप हुड्डा ने अपना किरदार बखूबी निभाया है। उनकी एक्टिंग फिल्म की जान है। उन्होंने फिल्म में किरदार की जरूरतों के मुताबिक खुद को ढालने की कोशिश की है। इसमें उनकी मेहनत साफ नजर आ रही है। उन्होंने इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के अलावा इसके डायरेक्शन व प्रॉडक्शन का काम भी संभाला है। साथ ही उन्होंने उत्कर्ष नैथानी के साथ मिलकर इसकी कहानी भी लिखी है। इस फिल्म में अंकिता लोखंडे ने वीर सावरकर की पत्नी यमुनाबाई सावरकर का किरदार निभाया है। हालांकि, उन्हें बहुत कम स्क्रीन स्पेस मिला है। एक्टर अमित स्याल ने भी बेहतरीन काम किया है। राजेश खेड़ा ने महात्मा गांधी के किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। नेताजी के किरदार में सचिन पिलगांवकर नजर आए हैं।

कैसी है फिल्म

अभिनेता रणदीप हुड्डा ने फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ से निर्देशन के नए क्षेत्र में कदम रखा है। करीब तीन घंटे लंबी फिल्म शुरुआत में आपको इसके किरदारों के साथ जोड़ती है। फिल्म का इंटरवल एक बेहद रोचक मोड़ पर होता है। इस फिल्म में उन्होंने अच्छा काम किया, लेकिन निर्देशक के तौर पर वह असफल नजर आए। फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य भी हैं, जिन्हें केवल सावरकर को गहराई से जानने वाले ही समझ सकते हैं। फिल्म में कई ऐसे सीन हैं, जो दर्शकों के मन में भ्रम और कई लोगों के मन में सवाल भी पैदा करते हैं। इतना ही नहीं, फिल्म में दिखाए गए इतिहास को काफी तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। इस सबके बावजूद अगर आप आजादी की लड़ाई के बारे में जानने की दिलचस्पी रखते हैं तो आप जरूर इस फिल्म का टिकट ले सकते हैं।

फिल्म : स्वातंत्र्यवीर सावरकर

कलाकार : रणदीप हुड्डा, अमित सियाल, अंकिता लोखंडे, राजेश खेड़ा

डायरेक्टर : रणदीप हुड्डा

अवधि: 2 घंटे और 58 मिनट

रेटिंग : 3/5

हिन्दुस्थान समाचार/लोकेश चंद्रा/सुनीत

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