फिल्म समीक्षा: बेहतरीन कहानी के बावजूद 'मैं अटल हूं' कहां रह गई कम?

फिल्म समीक्षा: बेहतरीन कहानी के बावजूद 'मैं अटल हूं' कहां रह गई कम?
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फिल्म समीक्षा: बेहतरीन कहानी के बावजूद 'मैं अटल हूं' कहां रह गई कम?


भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने जीवनकाल में सबसे पहले देश को प्राथमिकता दी। अटल जी देश के 10वें प्रधानमंत्री थे। उन्हें एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता है। निर्देशक रवि जाधव अटल जी के जीवन पर ‘मैं अटल हूं’ फिल्म बनाई जो हाल ही में रिलीज हुई है। प्रतिभाशाली अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने फिल्म में उनकी भूमिका निभाई है। बढ़िया कहानी और पंकज त्रिपाठी जैसे एक्टर्स के बावजूद फिल्म दर्शकों को पसंद नहीं आ रही है।

फिल्म ‘मैं अटल हूं’ में अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन से लेकर कारगिल युद्ध का पूरा घटनाक्रम दिखाया गया है। इसमें पोखरण में परमाणु बम के परीक्षण को भी दिखाया गया है। अटल बिहारी वाजपेई असल जिंदगी में कैसे इंसान थे, वो अपने जीवन में देश के प्रति कितना सम्मान रखते थे, इसका अंदाजा इस फिल्म से लगाया जा सकता है। वह अपनी कविताओं के माध्यम से अपना संदेश बखूबी देते थे। एक कवि, पत्रकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य के रूप में उन्होंने क्या किया, इसकी एक झलक फिल्म में देखी जा सकती है। कुल मिलाकर इस फिल्म के जरिए वाजपेयी की जीवन यात्रा का पता चलता है।

सकारात्मक बातें

आज की पीढ़ी अटल के राजनीतिक करियर के बारे में ज्यादा नहीं जानती। तो ये फिल्म उनके लिए खजाना साबित हो सकती है। लेकिन जो लोग उनके बारे में जानते हैं उनके लिए फिल्म कुछ खास नहीं होगी। फिल्म में दिखाई गई कहानी देखने लायक है। क्योंकि इसमें अटल के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। फिल्म को दर्शकों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है। अटल जी के कॉलेज के दिन, आरएसएस में उनका योगदान, राष्ट्र धर्म पुस्तिका के लिए उनका नाम, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के साथ उनके संबंध, अखिल भारतीय जनसंघ का गठन, पंडित नेहरू के साथ उनकी मुलाकात, राम मंदिर विवाद और कारगिल युद्ध सभी यादगार हैं। इंटरवल के बाद का एपिसोड दर्शकों को ज्यादा पसंद आता है।

नकारात्मक पक्ष

फिल्म में एक भी दृश्य ऐसा नहीं है जो आपकी याद में हमेशा बना रहेगा। पंकज त्रिपाठी फिल्म की जान हैं। उनकी एक्टिंग शानदार है। भले ही अटल बिहारी वाजपेई का किरदार निभाना बेहद चुनौतीपूर्ण है, लेकिन पंकज त्रिपाठी ने यह काम बखूबी किया है। अटल की कविता हो या भाषण, पंकज त्रिपाठी उसमें जान फूंकते नजर आते हैं। लेकिन फिर भी उनसे जो अपेक्षा थी उसे वे कुछ हद तक पूरा करने में सफल रहे हैं। रवि जाधव उनका निर्देशन एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी। ऐसा लगता है कि उन्होंने इसके लिए काफी रिसर्च की है। हालांकि, डायरेक्शन के मामले में फिल्म को झटका लगा है। पहला भाग थोड़ा स्लो है, दूसरे भाग से फिल्म गति पकड़ती है। कुल मिलाकर फिल्म एक बार जरूर देखने लायक है, लेकिन डायरेक्शन और सिनेमैटोग्राफी के मामले में फिल्म पिछड़ गई है।

हिन्दुस्थान समाचार/लोकेश चंद्रा/सुनीत

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